रोजगार मूलक विकास की दरकार

देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में प्रथम पंच वर्षीय योजना के दौर में प्रशासन को विकासोन्मुख बनाया गया। 1947 में भारत जब आजाद हुआ देश के पांच लाख गांवों में से मात्र पांच हजार कस्बों में बिजली थी। इस्पात का केवल एक कारखाना टाटा स्टील जमशेदपुर में था। भारी उद्योग शून्य थे, हम न मोटरकार बनाते थे, न समुद्री जहाज, न विमान। टेहैए. लीफोन सेवा अति सीमित थी, ग्रामीण क्षेत्रों में तो लगभग शून्य। खाद्यान्न में हम आत्मनिर्भर नहीं थे। उर्वरक बनाने का कारखाना नहीं था, रेल्वे इंजन आयात होते थे। भारत में साईकिल तक नहीं बनती थी।


हमारे बड़े-बडे़ उद्योग, भाखड़ा-नांगल, चम्बल, तुंगभद्रा, जैसे बड़े बांध, नई सड़क, विद्युत उत्पादन संयन्त्र, ग्रामीण विद्युतीकरण, सिंचाई पेयजल के लिए नलकूप, एवं हरित क्रान्ति द्वारा आत्मनिर्भरता, पंचायत-राज, जागीरदारी उन्मूलन, सहकारिता का विकास, करोड़ो को शिक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं प्रावधिकी में अग्रणी विश्वविख्यात संस्थाएं जिनमे स्नातक विश्व के सबसे बडे़ चिकित्सक, यांत्रिक प्रबन्धक व वैज्ञानिक तैयार होते हैं वे सब पंचवर्षीय योजना काल में बनने लगे।


पं. जवाहरलाल नेहरू के समय विकास की मजबूत बुनियाद डल गई। हमारा जनतंत्र इतना सुदृढ़ हो गया, कि लोग आत्मनिर्भरता की और बढे़ भारत आर्थिक समस्याओं पर काबू पाने योग्य बन गया। परन्तु रोजगार देने की क्षमता पूरी तरह सरकार के पास नहीं हुई। असमानता हमारे साथ प्रागैतिहासिक काल से रही है। औद्योगिक क्रान्ति के बाद की स्थितियाँ व बढ़ती जनसंख्या ने हालात को दुश्वार बना दिया। गरीबी उन्मूलन व रोजगार आधारित कार्यक्रम प्रारम्भ किया जाना आवश्यक हो गया। सेंसेक्स का रिकार्ड ऊंचाई में रहना। किसानों की आत्महत्याए , व बहुराष्ट्रीय भारतीय कंपनियों के समानान्तर दैनिक मजदूरों के जीवन की की विषमता दिखाई पड़ रही है।


भारत आज भी एक कृषि प्रधान देश है। उदार ढ़ांचे से एक ओर अमीर व गरीब के बीच खाई पैदा हुई है। वहीं क्षेत्रीय असमानताओं को बल मिला है। यह मानकर चला जा रहा है कि राष्ट्रीय आय वृद्धि, सार्वजनिक कल्याण नीतियों से गरीबों का जीवन स्तर स्वतः उन्नत हो जायेगा। इसलिए प्रोडेक्शन ओरियेटेंड एप्रोच ही है। इससे विकास के लाभ संसाधनों के स्वामी ही लील गये।


असल में आयोजना का केन्द्र रोजगार होना चाहिए। वर्तमान नीतियों में बढ़ती हुई विकास दर का लाभ, सब को नहीं मिला। गरीबी व बेरोजगारी तीव्रता से बढ़ी गरीबी का मूल कारण अधिकांश जनता का रोजगार के अवसरों से वंचित रहना है। औद्योगिक क्षेत्र में रोजगार की लोच इतनी कम है कि 12 फीसदी वृद्धि होने पर रोजगार मात्र एक फीसदी ही वृद्धि होेती है। साक्षरता वृद्धि के कारण शिक्षित बेरोजगारी की समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है। ग्रामीण बेरोजगारी अत्यधिक व्यापक रूप धारण करती जा रही है। बेरोजगारी की वजह से प्रवासी श्रमिकों की संख्या बढ़ रही है और शहरों में गंदी बस्तियां बढ़ रही है।


जब से आर्थिक सुधार कार्यक्रम शुरू हुए गरीबी निवारण कार्यक्रमों की उपेक्षा हुई। कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक, सरकारी निवेश लगातार कम होता गया है। ग्रामीण विकास पर खर्च घटाया गया इससे ग्रामीण रोजगार की वृद्धि शून्य हो गई। ग्रामीण अर्थव्यवस्था गरीबी के संकट से ग्रस्त हो गई। उत्पादन लागत बढ़ रही है, फसल का उचित मूल्य नहीं मिलता। सीमान्त खेतीहर कर्ज के बोझ से दबते जा रहें है। उदारीकरण के दौर में देश की एक तिहाई आबादी रोटी, कपड़ा और मकान जैसी अनिवार्य आवश्यकता की पूर्ति से दूर है। अकुशल श्रमिकों, शिक्षित बेरोजगारी की संख्या बढ़ती जा रही है। वर्तमान आर्थिक मंदी में करोड़ो बेरोजगार हुए है। सरकार बड़ उद्योगों को छुट देकर गरीबी को और गरीब बनाने की नीति अपना रही है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) के सर्वेक्षण के अनुसार करोड़ों लोग लगभग चौथाई संख्या मामूली आमदनी पर अपना जीवन यापन करते है।


देश की एक तिहाई आबादी रोटी, कपड़ा, मकान जैसी अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति से दूर है। कुपोषण के शिकार लोगों व बच्चों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है। बच्चों को पोष्टिक आहार नहीं मिल रहा है। गांवो में बेरोजगारी के बढ़ने से महिलाओं व बच्चो में संक्रमण बढ़ रहा है, गंभीर बीमारियां फैल रही है। करोड़ों छात्र-छात्रायें स्कूली शिक्षा से वंचित है छोटी उम्र में परिवार के भरणपोषण के लिए मजदूरी करते है।


भारत में ऐसे विकास की आवश्यकता नहीं है जो असमानता को बढ़ाता हो. औद्योगिक क्षेत्र में रोजगार की लोच कम है जिससे रोजगार में व्यापक वृद्धि नहीं होती। खाद्य पदार्थो जैसी प्राथमिक वस्तुओं के दाम बढ़ने से जीडीपी की औसत वृद्धि अर्थहीन रहती है। इसलिए आवश्यक है ऐसे ग्रामीण विकास को बढ़ावा देना जिसका केन्द्र बिंदु गरीब वर्ग व बेरोजगारी हो। सरकारों को रोजगार के अवसरों को बढाना होगा ताकी जनसंख्या की मांग पूरी हो सके, अल्पपोषण कम किया जा सकें। मुद्रास्फिति को नियंत्रित कर विकास के साथ समानता के लक्ष्य को हांसिल किया जा सके। आर्थिक सुधारों से जुडे़ विभिन्न मुदों पर बयानबाजी के स्थान पर विकास ऐजेन्डे पर पुर्नविचार के साथ विकास और सामाजिक न्याय के बीच उचित समन्वय की सख्त दरकार है।


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