आओ मेरे ,,राम,, यहाँ







भोग वादिता के इस युग मे, भोगों का विस्तार हो रहा ।

परम लक्ष्य जीवन का बनकर इसका सघन प्रचार हो रहा  । ।

स्वार्थ लिप्त भावनाओं से आहत वसुधा चीख पडी़ है । 

पशुता वृत्ति प्रचंड हो रही मानवता अब विवश खड़ी है ।।

हिंसा हुंकारों की कलुषित काया क्रोधित डोल रही है । 

नास्तिकता के नग्न -नृत्य में आपाधापी बोल रही है । ।

धर्म नीति अध्यात्म कहां प्रभु? कहाँ गये वे सद आचार ।

जिनसे प्राणी भवसागर से सहसा हो जाता था पार । ।

पाप ताप से धरा धुंधकती जग मे अत्याचार नचा है ।

दीन हीन निबलों  पर देखो कैसा हाहाकार मचा है  । ।

माया-मोह महामद सन्मुख -वस्त्र हीन निरीह मर्यादा ।

सदाचार असहाय सिसकता, पाप प्रतारण प्रति आमादा ।।

हे सुरनायक दीन सहायक धर्म ध्वजा के रख वारे।

शपथ आपको भग्त जनों की ,जो लगते हैंअति प्यारे ।।

सरयू अपलक बाट जो रही अव विलंब का काम कहाँ । 

प्रबल - प्रतीक्षा मे रत युग है,  आओ मेरे ,,राम,,यहाँ ।।


 

 




 

 



 



 



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