बुन्देला इतिहास का टर्निंग प्वाइंट -अबुल_फजल_की_हत्या!!



बुन्देली साम्राज्य यद्धपि वाया महोनी,कुण्डार ,ओरछा में अपनी राजधानी वना चुका था और बुन्देले अपने दुस्साहस और शूरवीरता के लिए प्रसिद्ध हो चुके थे लेकिन कम संसाधनों,छोटा राज्य और आपसी फूट इसमें स्थायित्व नहीं ला पा रही थी ।

इसके लिए जरुरत एक बड़े केन्द्रीय क्षत्रप की थी।

बुन्देलों के दुस्साहस के वारे में बदायुंनी जैसे लेखकों ने भी लिखा है।

...............इसके इतिहास में हम भी देखते कि इसका सटीक उदाहरण मधुकर शाह बुन्देला हैं जो कि जब राजस्थान और भारत के बड़े बड़े राजा अकबर के शरणागत थे कोर्निश में तल्लीन रहते थे .......तब कभी छोटे से राज्य ओरछा के मधुकर शाह दरवारी तहजीव को एक किनारे कर वेअदूवी से बादशाह के सामने से ही दरवार छोड़ निकल जाते थे,...........या फिर कभी अपने सीमित संसाधनों के बल पर सीधे दिल्ली के शाह अकबर से ही भिड़ जाते थे ।



एक युद्ध का विवरण देते हुये अबुल फजल अपने अकबरनामा में लिखता है ""मधुकर शाह बुन्देला ने करेरा के परमानन्द पबांर के साथ मिलकर शाही सेना से युद्ध छेड़ दिया । युद्ध कई दिनों तक चला और अन्त में हजारों बलिदानों के साथ ओरछा में वेतवा किनारे बुन्देलों की हार हुई।"

इस घटनाक्रम से ही बुन्देलों का दुस्साहस का प्रत्यक्ष प्रमाण वन कर सामने आ जाता है ।

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.........इन्हीं मधुकर शाह बुन्देला के चौथे पुत्र वीरसिंह देव थे जिन्हें बड़ौनी की छोटी जागीर मिली थी और बड़े के नाते रामशाह को ओरछा की गद्दी

.......,राजा रामशाह बुन्देला शान्तिप्रिय और संटुष्टी जीव थे जब कि वीरसिंह देव महत्त्वाकांक्षी और सतत नये सपने देखने बाले जीव थे , इसलिए वे अपनी छोटी जागीर से संटुष्ट नहीं थे ।

..................शीध्र ही उनके हाथ अच्छा मौका आया । जहांगीर जो उस समय सलीम कहलाता था और इलाहाबाद की जागीर देखता था ने वीर सिंह को एक आफर दिया ।



चुंकि अकबर उस समय सलीम से नाराज़ था और उसने अबुल फजल को शीघ्र आगरा बुलाया था ।अबुल फजल दच्छिण से आगरा चल पड़ा और सलीम को शक था कि फजल पिता पुत्र की खाई को और गहरा कर देगा।



सलीम ने वीर सिंह से आग्रह किया कि तुम अगर फजल की हत्या कर दो तो मैं भविष्य में बादशाह वनने पर तुम्हारा सदैव अहसान मन्द रहूंगा ।



.......यह एक अन्धा जुआ था ?

क्यों कि महाबली अकबर जीवित था और बादशाह था ......,........भविष्य के गर्त का किसी को कुछ पता नहीं था कि कौन बादशाह वनेगा, ...........लेकिन फिर भी वीरसिंह ने यह जुआ खेलने का निर्णय लिया और सोचा या तो जान जायेगी या राजपाट हाथ आयेगा



अन्तत फजल का पीछा करने का निर्णय लिया गया ।



उज्जैन पहुंचने पर मालवा के शासकों ने उसे सलाह दी कि वीच में वीरसिंह का देश है इसलिए उसे सुरक्षा की द्रष्टि से घाटी चांदा होकर आगरा जाना चाहिए. ... . लेकिन अबुल फजल.घमण्ड से बोला कि वह हिन्दुस्तान के बादशाह का प्रमुख सेनापति , नवरत्नों में एक अगर मुट्ठी भर डाकुओं के डर से रास्ता वदल दे तो लोग क्या कहेंगे ।

.......,..........खैर वीर सिंह ने फजल का पीछा किया और ग्वालियर से कुछ पहले फजल को मार गिराया गया और सिर सलीम के पास इलाहाबाद भेज दिया गया ।



लेकिन क्या यह सब कुछ इतना आसान था ?

विलकुल नहीं !

..............................अबुल फजल ,अकबर का सबसे प्रिय रत्न था अकबर उसकी मृत्यु से पागल हो गया उसने अपने बाल नोंच लिए और दीवानों की तरह चिल्लाने लगा ।

उसने फजल के पुत्र अब्दुल रहमान को मालवा का भार देकर तथा राय रायान विक्रमाजीत जो नरवर में था को आदेश दिया कि वीरसिंह के देश को उजाड़ डालो और जिन्दा या मुर्दा मेरे सामने वीरसिंह को पेश करो ।

................अब वीर सिंह का भागना और शाही सेना के पीछा करने का क्रम शुरू हुआ और कई मुठभेड़ हुयी।

एक बार तो ऐरच के किले में वीरसिंह को घेर लिया गया लेकिन वह आधीरात को किले से राजा राज सिंह की सेना के वीच से भाग निकले ।इन दो तीन बरसों में वीरसिंह को ना चैन से खाना न सोना नसीव हुआ।



.................।।।।खैर जब सलीम जहांगीर के नाम से गद्दी पर बैठा तो उसने वीरसिंह का सम्मान किया और ओरछा का राजा वनाया और ओरछा के राजा रामशाह को भी उचित सम्मान देकर चन्देरी, तालबेहट,बार का राज्य दिया ।अब सम्मिलित बुन्देली राज्य ललितपुर,गुना, दतिया, शिवपुरी,ग्वालियर,झांसी,भिंड टीकमगढ़,जालौन इत्यादि में पूर्णरुपेन या आंशिक के तौर पर एक बड़े राज्य के तौर पर भारत के मानचित्र पटल पर सामने आता हैं ।



..........महाराज वीरसिंह देव ने इसे एक विशाल स्वरुप दिया ।

ओरछा के महल किले, झांसी का किला , दतिया का महल तालाब सहित सैकड़ा भर इमारतें उन्होंने वनवायी।

.........मथुरा में विश्वप्रसिद्ध केशवराय मन्दिर वनवाया , जिसे औरंगजेब ने इस कारण गिरवा दिया था कि उसे यह काफिरों का बुतखाना आगरे के किले से भी दिखता था ‌।



सही मायने में बुन्देलों के विशाल साम्राज्य को महाराज वीर सिंह जू देव ने ही मूर्त रुप दिया ।



देवेन्द्र गुरु  की एफ बी से साभार



(अबुलफजल अकबर के दरबार.में.चित्र सौजन्य गूगल)


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