जसराज को आर्यसमाज ने बनाया था मीरासी मुसलमान से पंडित।

 पण्डित जसराज पाकिस्तान की अमानत हो जाते अगर मुंह बोली बहन रामप्यारी विश्नोई उन्हें भारत में नहीं रोकती .


बंटवारे के समय जसराज अपने परिवार के साथ पाकिस्तान जाने के लिए निकले थे लेकिन रास्ते में उन्हें अपने मामा के गांव की एक मुंह बोली बहन मिली और इस तरह उनका पूरा जीवन ही बदल गया। यहीं वो जसराज से पण्डित जसराज बने गये।


कई दशक पुरानी बात है पंडित जी राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर के दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे थे। हरियाणा के फतेहाबाद जिले के पीली मंदौरी से संबंध रखने वाले पंडित जसराज के पास समारोह समाप्त होने के बाद अल्पाहार के समय एक युवती अलका भीड को चीरती हुई   पहुंची। अपना परिचय देकर, चरण स्पर्श करते हुए उसने पंडित जसराज को "नानाजी प्रणाम" कहा।


पंडित जसराज को कुछ याद व समझ नहीं आया और उन्होंने पूछा कि बेटा अलका आपने अपना नाम तो मुझे बता दिया है लेकिन मैं आपको बारे में कुछ और नहीं जानता हूं कि मैं आपका नाना कैसे हुआ? तब अलका ने बताया कि वो श्री चाननराम बिश्नोई और उनकी पत्नी रामप्यारी बिश्नोई की दोहती हैं। चाननराम बिश्नोई अवकाश प्राप्त लेखा अधिकारी रहे थे। इतना सुनते ही पंडित जसराज खडे हो गए और अलका को अपनी बेटी की तरह सीने से लगा लिया। भाव विभाेर होते हुए उन्होंने "रामप्यारी कहां है" पूछा। अलका ने पूरा विवरण देते हुए बताया कि उनकी उम्र काफी हो गई है, पूरा परिवार दुर्गापुरा में रहता है और आपको अक्सर याद करते हैं इसलिए आपसे मिलने का साहस कर पाई।


पंडित जसराज ने तुरंत कार्यक्रम के आयोजक को बुलाकर कहा कि शाम के कार्यक्रम को आधा घंटा देरी से करें, मैं अपनी बहन रामप्यारी से मिलना चाहता हूं और मैं अभी उससे मिलने के लिए निकलना चाहता हूं। प्रशासन ने तुरंत ही उनके लिए इसका इंतजाम किया और पंडित जसराज इस तरह अचानक अपनी बहन से मिलने पहुंचे। वहां पंडित जसराज आएंगे इसकी कोई सूचना तो थी नहीं लेकिन संयोग से रामप्यारी दरवाजे पर ही खडी मिली। इतने ज्यादा लोग एकाएक घर आए देखकर उन बुजुर्ग रामप्यारी को कुछ समझ नहीं आया लेकिन पंडित जसराज को देखते ही आंखों से अश्रुधारा फूट पडी।


उनके मुंह से पंडित जसराज को गले लगाते ही इतना ही निकल पाया-भाई जसराज। बड़े भावुक पल थे। एक चारपाई पर पंडित जसराज और रामप्यारी बैठ गए और देखते ही देखते पुरानी बातों में बह निकले। अधिकारी दाएं बाएं बैठे थे लेकिन दोनों को इसका कोई भान ही नहीं रहा। अलका सभी के जलपान की व्यवस्था में जुट गई। थोडी देर बाद जब पंडित जसराज को इसका ध्यान आया तो उन्होंने बताया कि मैं पीली मंदौरी से हूं और सीसवाल गांव में मेरी ननिहाल है। मेरे ननिहाल की ही मेरी मुंह बोली बहन रामप्यारी है।  मेरा जन्म मिरासी परिवार में हुआ था, हमें मुस्लिम माना जाता था। पर मैं आज जो कुछ भी हूं इसमें मेरी बहन रामप्यारी का बहुत योगदान है।


पंडित जसराज ने बताया कि जब 1947 में जब देश का बंटवारा हुआ तो पाकिस्तान बना। मेरे सभी पूर्वज और संबंधी पाकिस्तान जा रहे थे, मैं भी उनके साथ जाने वाला था। मैं ना तो बहुत बडा था और ना ही बहुत अधिक छोटा था। मिरासी होने के कारण हमें मुसलमान माना जाता था। मेरे बडे भाई मनीराज भी हमारे साथ थे और हम बीकानेर के रास्ते पाकिस्तान जा रहे थे, उसी समय बाजार में मेरी बहन रामप्यारी और उसके भाई मिल गए। हमारी परिस्थिति को देखकर रामप्यारी की आंखों में आंसू आ गए। हम थोडी दूर ही गए थे कि पीछे से रामप्यारी और उसके पति चाननराम ने हमें आवाज लगाकर रोका। रामप्यारी ने अधिकार से कहा कि मैं अपने भाई जसराज को पाकिस्तान नहीं जाने दूंगी। आधे घंटे तक हम भ्रम की स्थिति में रहे लेकिन इसके बाद रामप्यारी ने हमें अपने साथ चलने को राजी कर ही लिया। चाननराम ने ही हम सबके ठहरने की व्यवस्था मोहता धर्मशाला में की। शाम को भोजन आदि बहन रामप्यारी के घर से बनकर आया और खुद मुझे खिलाया।


दूसरे दिन प्रात आठ बजे आर्यसमाज मंदिर में बिश्नोई समाज के प्रमुख लोग चाननराम के प्रयास से इकट्ठा हुए। जसरासर के एक पंडित ने पाहल बनाया व हरीरामजी ने पाहल के ऊपर हाथ रखकर अमृत बनाया और उसे पंडित जसराज और उसके साथ रुके सभी संबंधियों को पिलाकर हिंदू धर्म में प्रविष्ट करवाया। हमारे वस्त्र भी इन्हीं लोगों ने बदलवाए और इस तरह हम विपंडित हो गए। अब आप बताएं मैं अपनी बहन रामप्यारी का ये उपकार किस तरह चुका सकता हूं। इतना कहकर उन्होंने रामप्यारी को फिर से गले लगा लिया और दोनों की आंखें गीली हो गई।


साभार: ये पूरा विवरण हिसार से नरसीराम बिश्नोई ने अमर_ज्योति पत्रिका में प्रकाशित किया था।**


 


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