खुदीराम 19 साल में हुए थे शहीद

हमीरपुर। विमर्श विविधा के तहत जरा याद करो कुर्बानी के अंतर्गत जंगे आजादी की पहली शहादत खुदीराम बोस की पुण्यतिथि पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए संस्था के अध्यक्ष डॉ. भवानी दीन ने कहा कि श्री राम बोस तहसीलदार थे। उनके दो बच्चे पहले ही चल बसे थे। इसलिये बुजुर्ग महिलाओं की सलाह पर एक टोटका के द्वारा बडी बहन अपरूपा ने तीन मुट्ठी खुददी अर्थात चावल के छोटे टुकडे देकर अपने पैदा हुये भाई को खरीदा था। इसलिए खुददी के नाम पर खुदीराम नाम पड़ गया। ये नौवीं कक्षा के बाद आन्दोलन मे कूद पड़े। ये क्रान्तिकारी दल में शामिल हो गये थे। खुदीराम बचपन से ही विद्रोही स्वभाव के थे। 1905 के बंग भंग विरोधी आन्दोलन में बढ़ चढ़ कर भाग लिया। ये सत्येंद्र नाथ बोस से प्रभावित थे। सबसे पहले इन्होंने वन्दे मातरम नाम का पम्पलेट बाटा था। छोटी उम्र में इन पर राजद्रोह का मुकदमा चला था। ये पिस्तौल तथा बम चलाने में माहिर थे। ये अत्याचारी गोरों के खिलाफ थे। इन्हें सबक सिखाने के 2906,1907,और 30 अप्रैल 1908 को अत्याचारी जज किंग्स फोर्ड पर बम फेका। मुकदमा चला, फांसी की सजा मिली। 11 अगस्त 1908 को खुदीराम बोस मात्र 19 वर्ष की उम्र में फांसी में चढ़ कर अमर हो गये। इनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। वर्णिता संस्था ने मां गीता माहेश्वरी इन्टर कालेज और रोटी राम महाराज इन्टर कालेज  सुमेरपुर के दो मेधावी छात्रों को स्मृति चिन्ह और प्रशस्ति पत्र देकर इस मौके पर सम्मानित किया। श्रीमती विजय कुमारी, पुनीत किशोर सिंह, भारत, जितेन दीक्षित, अभिषेक, प्रांशु सोनी शामिल हुए।


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