राम-भक्ति की नाव से, भवसागर हो पार


दोहे


मन-मंदिर में  झाँक ले, मिल जायें श्रीराम। 
गम  तो  सारे दूर  हों, मिल  जाये  आराम।। 


राम-भक्ति की  नाव से, भवसागर  हो पार। 
अन्धतमस को  चीर के,जगमग  हो   संसार।। 


मन  मंदिर  हो  प्रेम  का, सदा  राम से प्रीत। 
मधुर मधुर सुर में बजे, जीवन का मधु गीत।। 


राम-राम  रसना  रटे, हृदय  हरि   का  धाम। 
प्रेम, भक्ति, सद्गुण बसे,भाव  रहे निष्काम।। 


भक्ति सिन्धु में  ही मिले, अद्भुत मोती ज्ञान। 
आत्म भाव सब शुद्ध हों, कुन्दन हो इन्सान।। 


मन मेरा चन्दन भया, तन में  सुगंध समाय। 
कस्तूरी सी मिल गयी, शरण राम की आय।। 


तन मन धन सब सौंप दे, उसी राम के नाम। 
पूर्ण समर्पण कर उसे, वही शक्ति का धाम।। 


राम-नाम  अनमोल  है, वह  ही  सच्चा मीत। 
निर्बल का  है बल  वही, कर ले उससे प्रीत


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