संविदा युवाओं के लिय सामाजिक वरदान या अभिशाप

संविदा पर इंजीनियर, संविदा पर डाॅक्टर, संविदा पर प्रबंधक, संविदा पर शिक्षक, संविदा पर कर्मचारी लगभग हर विभाग मंे  सबसे अधिक प्रचलित और आसानी से सुना जाने वाला शब्द बन गया है संविदा होता क्या है और क्यों विभागों मंे संविदा पर कर्मचारी रखे जाते है? आजकल किसी भी विभाग मंे कोई भी भर्ती निकालती है तो साफ-साफ लिखा होता है संविदा। विभागों मंे संविदा पर रखने का मतलब क्या होता है? संविदा नौकरी एक प्रकार से नियमित नौकरी की तरह होती है, जिसमंे संविदा नौकरी करने वाले व्यक्ति से बिल्कुल सरकारी नौकरी करने वाले कर्मचारी की तरह कार्य लिया जाता है किन्तु उन्हें सरकारी कर्मचारी जैसा कोई भी सुविधा नही दी जाती है और उनसे अधिक मात्रा मंे कार्य भी लिया जाता है संविदा/अनुबंध या काॅट्रक्ट जैसे ष्षब्द को राज्य या केंद्र सरकार विभिन्न विभागों मंे भर्ती के लिए प्रयोग करती है नौकरियांे की भर्ती के मामले मंे अब यह शब्द आम होता जा रहा है यह अंशकालीन अनुबंध आधारित नौकरी अधिकतर एक या दों वर्षो की समय अवधि के लिये होते है उनकी शैक्षणिक योग्यता तथा कार्य तो अन्य नियमित कर्मचारियों के जैसा ही या कभी-कभी उनसे भी अधिक होता है। लेकिन उन्हे विभाग द्वारा मिलने वाली सुविधाओं से लगभग वंचित रखा जाता है। मानदेय के नाम पर भी साधारण से कुशल श्रमिकों से भी साधारण से कुषल श्रमिकांे से भी कम दिया जाता है। अक्सर समाचार पत्रों, सोशल मीडिया तथा टीवी प्रसारणों मंे संविदा कर्मियों के द्वारा अपने हकंों के लिये किये जा रहे आदोंलनके बारे में पढने सुनने एवं देखने को मिलता है। कुछ संविदा कर्मी तो फिल्मी दुनियाॅ के उस जूनियर कलाकारों की तरह हो जाते है जिनकी भर्ती भी जूनियर कलाकार के रूप में होती है। और रिटायरमेंट भी। ऐसा नहीं है कि संविदा की नौकरी आसानी से मिल जाती है। उसके लिये भी एक उच्च कोटि की प्रतिस्पर्धा होती है। किसी प्रकार नौकरी मिल भी जाये तो प्रत्येक वर्श बाद उसका नवीनीकरण कराना होता है। वो भी आसान नहीं होता, उसके लिये भी आपको संबंधित अधिकारी को खुश करके रखना पडता है। हर पल खतरे की तलवार गले में लटकी रहती है। वर्श में आप किसी भी प्रकार के बोनस, भत्ता की उम्मीद तो न हीं करें क्योंकि आपको सिर्फ एक वर्श का ही नियत मानदेय मिलेगा। अगर किसी विभाग की कृपा दृष्टि संविदा कर्मियों पर पढा जाये तो लगता है मानों रेगिस्तान में बूंदे पड गयी हो जो यदा-कदा ही देखने को मिलती है। उत्तर प्रदेश में दो दषकों से सभी विभागों एवं कार्यालयों में कार्य बोझ काफी बढ गया किन्तु उस अनुपात में विभिन्न पदों पर उत्पन्न रिक्तियों के विरूद्ध नियमित नियुक्ति करने में सरकार सफल नहीं रहीं जिसके परिणाम स्वरूप राज्य के विभिन्न विभागों द्वारा आवश्यकतानुसार संविदा के आधार पर नियोजन किया गया ऐसे संविदा नियोजन को सरकार द्वारा दशकों से समय समय पर अवधि विस्तार दिया जाता है। वर्तमान परिपे्रक्ष्य में अगर बात की जाये तो आप किसी भी कार्यालय को देख लें, सभी कार्यालयों में सविदा नियोजित कर्मियों की संख्या नियमित कर्मियों से बहुत ज्यादा है एवं आज के परिपेक्ष्य में कोरोना महाकारी के दृष्टिकोण से उ0प्र0 के स्वास्थ्य विभाग में संविदा कर्मचारियों की भर्ती से रोजगार के मौके भी बहुत मिल रहे है। विभिन्न कार्यालयों में नियमित कर्मियों की संख्या तेजी से घटते हुये नगण्यता की ओर बढ रहीं है। आज उत्तर प्रदेश के बहुत सारे विभाग/कार्यालय में सिर्फ और सिर्फ संविदा कर्मी कार्यरत है और अपने परिश्रम से राज्य को प्रगति के पथ पर आगे बढा रहे है। ऐसे में सवाल है कि आखिर दशकों से राज्य के सर्वागीण विकास में अपना बहुमूल्य समय एवं परिश्रम से योगदान दे रहे संविदा कर्मियों के परिवारों के लिये सरकार ने क्या की ? क्या सरकार की नैतिक जबावदेही नहीं है कि इन कर्मियों को भी नियमित एवं सरकारी कर्मियों जैसी सुविधाएं  दी जायें। जब संविदा कर्मी दशकों से अपने दायित्वों एवं कर्वव्यों के साथ विभागीय कार्यो के निष्पादन करने में सक्षम है तो उन्हें सरकारी सेवक का दर्जा क्यों नहीं दिया जा रहा है ? हमने कुछ वैसे अधिकारियों से बात की जो या तो सेवानिवृत्त हो चुके है अथवा जो आज भी सेवा में है। इससे एक बात की जो या तो सेवा निवृत्त हो चुके है अथवा जो आज भी सेवा में है। इससे एक बात निकलकर सामने आती है कि संविदा पर कर्मचारियों को रखने का मूल उद्देष्य ये था कि कोई भी नया कर्मी अपने कार्य में लापरवाही न बरते। कार्य को अच्छी तरह सीखे। दूसरे षब्दों में कहें तो संविदा के समय में कर्मी को एक प्रकार का प्रषिक्षण के दौरान सिर्फ जेब खर्ची दी जाती थी। प्रशिक्षण के उपरान्त उसे स्थायी कर दिया जाता था जिसे साथ वो अन्य कर्मियों की तरह सभी प्रकार की सुविधाओं को पा लेता था। पर आज एक फैषन सा चल गया है कि लोगों को संविदा के आधार पर रखों और उनका शोषण करते रहो। ज्यादा बोले तो बिना कारण बताये उसकी संविदा या करार को स्थगित करके उसी पद पर दूसरा संविदा कर्मी रख लो। हमें यहाॅ अर्थ को अनर्थ करने में समय नहीं लगता। अब ये तय आपको करना है कि वास्तव में संविदा एक वरदान है या समाज के लिये अभिशाप। संविदा शब्द को अभिशाप बनने से रोकने के लिये सरकार से अनुरोध होगा कि सरकार कोई बीच का रास्ता निकाले जिससे न ही सरकार को दिक्कत हो और न ही आम जनता को। संविदा केा एक अनुकूल अवस्था बनाये रखा जाये न कि शोषण का माध्यम। सोचिये, समझिये क्योंकि आपके एक छोटे से सहयोग से संविदा कर्मियों की पूरी दूनियाॅ बदल सकती है। 


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