श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष -सखी री मन माने की बात

सखी री मन माने की बात मोरपखा सोभे
घुंघर लट में,हिय  मोतिन की माल ।
हेमजड़ित कुंडल कानन में,केसर सुरभित  भाल
घुटरुन चलत देवकीनंदन और जसुमति के लाल।
माखन मुख लपटावत धावत सबको मन लिए जात।
सखी री मन माने की बात।
जान परत है सामनों ठाढ़ो लियो मुरली को हाथ
खंजन नयन दियो अंजन को बतरस को बरसात।
ग्वाल बाल सखि छन भर निरख्यो कान्ह कान्ह ह्वै जात।
सखी री मन माने की बात।
बालपने में बूझत नाहीं सखा सखा की बात
तुम संग नेह को नातो मोहन हमहिं तजत कंह जात।
सखी री मन माने की बात।
भादों माह आयो नंदलाला है गयी आधी रात
मुरली संग सुंदरसन थामौ जग जोहत है बांट।
आवहु देखहु दीन दसा सब करहु कृपा बरसात।
इंहां करोना जग के कण-कण काटहु कष्ट मिटै उत्पात।
सुनहु अरज हमहिं सबकी तुम,तुम संग सबकी आस।
दीनबंधु प्रनतारित कृष्णा हम सब जोरत हाथ
काटहु कष्ट हरहु दुःख दारिद सुनहु हमहिं सब बात।
निरखि निरखि सखि छवि मोहन नैनन नहीं अघात।
सखी री मन माने की बात।



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