सृजनशील ह्रदय की अभिव्यक्ति है सविता की कविताऐं

प्रयागराज।महिला काव्य मंच प्रयागराज ईकाई के तत्वावधान में अध्यक्ष रचना सक्सेना और महासचिव ऋतन्धरा मिश्रा के संयोजन में 19 जुलाई से" पुस्तक परिचर्चा"संबधित एक आयोजन का प्रारम्भ किया गया जिसमें सर्वप्रथम हेमवती नन्दन बहुगुणा  विश्वविद्यालय में हिन्दी की ऐसोसिऐट प्रोफेसर डा. सविता कुमारी श्रीवास्तव  की पुस्तक "बेदर्द जमाना" पर  पुस्तक परिचर्चा चली जिसमें अनेक महिला साहित्यकारों ने उनके काव्य संग्रह पर अपने  समीक्षात्मक विचार प्रस्तुत करें  कवयित्री रचना सक्सेना  ने उनके काव्य संग्रह पर प्रकाश डालते हुऐ कहा कि बेदर्द जमाना एक ऐसा काव्य संग्रह है जो इस बेदर्द जमाने के दर्द को अपनी कविताओं में समेटे हुऐ कवयित्री के ह्रदय की पीड़ा को व्यक्त करता है ममता, मानव, हे ईश्वर, शक्ति, और काँटो से भरी है मेरी जिन्दगी" आदि रचनाओं के माध्यम से वे अपनी भावनाओं और वेदना को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने में पूर्णता सफल रही है।  कविताओं के प्रमुख केन्द्र है - प्रेम, परिवार, प्रकृति, अन्तर्मन, परमात्मा और समाज जिसके भीतर  उनकी कविताओं में व्यक्त प्रेम बहुआयामी और बहुरुपी है
विदुषी एवं सम्मानित साहित्यकार मीरा सिन्हा कहती है कि कविता सीधे जीवन से अंकुरित होती है जीवन और जगत के विविध रूपों दृश्यों का हमारे मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ता है काव्य  और कला इसी प्रभाव का परिणाम है "तो निश्चिंत है कि इनका काव्य जगत भी इसी पृष्ठभूमि पर रचा बसा है इनके काव्य  संग्रह 'बेदर्द जमाना 'मे जीवन के इन्ही नाना चित्रों,भावों,संघर्षों का आकलन है कवितायेँ ह्रदय को छूती हैं,उनके पास कविता का एक सधा हुआ शिल्प है पूर्णिमा मालवीय कहती है कि अपने मनोभावों को संजोकर बेबाकी से कहने की हिम्मत रखने वाली एसोसिएट प्रोफेसर डॉ सविता श्रीवास्तव जी द्वारा रचित पुस्तक 'बेदर्द जमाना' की काव्य समीक्षा करने का  सुअवसर प्राप्त हुआ जो अपने में अप्रतिम है। वास्तविकता को अपने प्रत्येक काव्य पंक्तियों में बांधकर डॉ सविता ने अपनी कविताओं को पृथक पृथक रंगों से रंगा है जया मोहन कहती है कि उन्होंने समाज की विडंबनाओं से दुखी होकर कविता के रूप में विचार दिए है।नवरस का समागम है इनकी कविताओं में ज़िन्दगी की सच्चाई को दिखाती कविता कांटो से भरी जिंदगी में फूल को माध्यम बनाया दुख के डर से सुख से मत भागो ये एक सिक्के के दो पहलू है कवयित्री ललिता नारायणी कहती है कि बेदर्द जमाना 78 पुष्पों का गुलदस्ता बहुआयामी है , वह एक प्रोफेसर है , स्वाभाविक रूप से उनकी रचनाएं उद्बोधन हैं , सरल भाषा में ईमानदार आत्माभिव्यक्ति मन को विभोर कर  गई ...आगे कहती है कि जीवन के आनुभूतिक ताप को एक स्वच्छ ऊष्मा में परिवर्तित करने की क्षमता , तथा स्थित से मुठभेड़ कर अपनी सीमाओं को शक्ति बना लेने की सुभेच्छा इन्हें विशिष्ट बनाती है
गजलकारा सुमन दुग्गल कहती है कि इन का सृजन संवेदनशील हृदय की अभिव्यक्ति है। कवियत्री की कई कविताएँ ईश्वर को समर्पित हैं कवियत्री का भावुक मन प्रकृति की दृश्यावलि में भी उलझता है डा. सरोज सिंह कहती है कि  सविता कुमारी श्रीवास्तव अनेक संभावनाओं से परिपूर्ण रचनाकार हैं।उनकी कविताओं को पढ़ते समय ऐसा लगा कि उनमें अनुभूति की सघनता है।आगे लिखती है कि सविता जी की इन्सानियत,जमाना,कसक,जमीर ज़माने का दर्द, व्यथा जैसी कविताओं में कविताओं में जीवन के मर्म, पीड़ा, समस्याओं, विसंगतियों का दिग्दर्शन कराती हैं।उन्होंने रिश्तों के खोखलेपन को भी बड़ी संजीदगी से उभारा है।आज स्वार्थ परता के युग में सब छलावा है। अंत में ऋतन्धरा ने कहा कि सविता जी का सृजन संवेदनशील हृदय की अभिव्यक्ति है। कवियत्री की कई कविताएँ प्रकृति श्रृंगार संस्कार और परंपराओं को समर्पित हैं।
सविता जी की रचना मे प्रकृति के प्रति गहरी आत्मीयता दिखाई देती है तथा ईश्वर की सृष्टि द्वारा किए गए पृथ्वी पशु पक्षी मानव परंपराओं संस्कृति का संपूर्ण समन्वय का भाव अपनी भाव में पिरो कर सहजता से प्रस्तुत किया है और पढ़ने वाला भी सहजता से उसे समझ सकता है। डा. सविता कुमारी श्रीवास्तव की पुस्तक पर चल रही यह परिचर्चा आज सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई ।


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