सुने री मैंने निरबल के बल राम

"सुने री मैंने निरबल के बल राम ,
पिछली साख भरूँ संतन की अड़े सँवारे काम ।


वास्तव में निर्बल के बल राम ही हैं।कई बार मनुष्य घोर विपत्ति में होता है, कोई मार्ग नहीं दिखता है, परिवार, बन्धु, मित्र सब साथ छोड देते हैं, आशा की कोई किरण नही दिखती है तब अचानक से वह विपत्ति अपना अस्तित्व खो देती है।ये कहीं से आने वाली ये मदद राम की ही होती है। अब हम अपने राम को किस रूप में देखते हैं यह हमारे मन, आत्मा, शरीर हमारी परवरिश, सोच, आस्था और विश्वास पर निर्भर करता है।वह सगुण भी हो सकता है और निर्गुण भी।वह घर में ही हो सकता है या बाहर भी। पूजाघर में भी हो सकता है और बिना पूजा के भी। मूर्ती में हो सकता है, पत्थर मे हो सकता है और बिना मूर्ती के भी। 
केवट,शबरी,अहिल्या किसी के लिए भी आ सकता है। बस मन से याद करने की शर्त है।शान्त मन से सोचिए तो लगेगा कि कितनी बार हमारे जीवन में ऐसे अवसरों पर हमे राह दिखाते हैं। 
आज भी जब संपूर्ण विश्व के साथ ही अपने देश के सामने   कोरोना मुह बाये खड़ा है तो अपने उपायों के साथ ही हम उस अदृश्य शक्ति की तरफ भी आशा से देख रहे हैं।यह उन शक्तियों में विश्वास ही है कि हमारे देश का गरीब तबका जिस का रोजगार छिन गया है, रहने का ठिकाना नहीं रहा वो बिना किसी सुविधा या आश्वासन के अपने अपने घरों के लिये पैदल ही निकल पड़ा।ट्रेन व बस बंद हो चुकी थी। उसके पास न पैसा था और न ही साधन।तब भी उसको किसी पर भरोसा था तभी तो वह निकल पड़ा,अपने घर जाने के लिये।इसमें हर जाति एवं धर्म के अनुयायी थे। इनमें हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी थे।वाल्मीकि, कंबन,तुलसीदास,निराला,फरीद,खुसरो,रहीम,कबीर,नानक, गाँधी, लोहिया,बिस्मिल्लाह खान सभी के राम थे ।वे सब साथ ही निकल पड़े। उनको जो चीज जोडती थी वो थी उनकी गरीबी और मजबूरी और इससे बढ़कर उनका विश्वास।ये शायद वही अन्तिम आदमी था जिसके लिए गांधीजी कहते थे कि कोई भी योजना बनाओ तो देखो कि उसको इससे कोई लाभ मिलेगा कि नही।यही हमारी कसौटी होनी चाहिए ।परन्तु हमारा और देश का दुर्भाग्य है कि हम इस से दूर होते ही रहे। ऐसा नहीं कि हम इससे अनजान रहे,पर आंख मूंदे रहे।आज जब कसौटी पर परखने का अवसर आया तो पता चला कि ये तो केवल हमारी सुविधाओं को बेहतर बनाने में इस्तेमाल होने के लिये बने हैंl इनके रहने खाने का हमने कोई आश्वासन नहीं दिया तभी इन्हें इस तरह पलायन करना पड़ा। प्रशासन ने उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया था। 
पर ये जानते थे कि निर्बल के बल राम और इसी भरोसे पर निकल पड़े l इनको रास्ते में अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ा, फिर भी बड़ी संख्या में लोग इनकी मदद के लिए सामने आ गए। लोग जगह जगह पर खुद भी आगे आए और शासन, प्रशासन पर दबाव बनाया और घर परिवार के पास पहुंचने में सहायता की या जहाँ है वहां रुकने व भोजन की व्यवस्था हुई। ये भी राम का ही एक रूप है। 
"अप बल,तप बल और बाहु बल ,चौथा है बल राम ,"


आज शिलापूजन के बाद अब आवश्यकता इस बात की है कि देश में सद्भाव व भाइचारे का वातावरण बना रहे। रामराज्य की वास्तविक संकल्पना के पथ पर नवनिर्माण का कार्य आगे बढ़े। आज के अपने उद्बोधन मे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी गांधी जी का अनेकों बार स्मरण किया और उनकी रामराज्य की अवधारणा मे अपनी आस्था जताई। प्रधान मंत्री ने कहा कि रामायण में लिखा है " नहीं दरिद्र कोई दुखी ना दीना"। महात्मा गांधी भी यही कहते थे कि हमारी योजनाओं का लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचना चाहिए। आज के एक ऐतिहासिक महत्व के कार्य के संपन्न हो जाने से शासन तथा बहुसंख्यक समाज की जिम्मेदारी है कि समाज में सद्भावना का वातावरण बने।सबसे ज्यादा आवश्यकता इस बात की है कि व्हाट्सएप इत्यादि सोशल मीडिया द्वारा भेजे जा रहे  अनसोशल संदेशों पर रोक लगाई जाए।  सत्ता में बैठे जिम्मेदार लोगों को सतर्क रहना होगा कि जमीनी स्तर पर लोगों को चिढ़ाया या भड़काया न जाए, वैमनस्य से दूर रहा जाय तथा सभी स्तरों पर पर सद्भाव बना रहे है।


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