तुम्हारी‌‌‌‍_हार_का_सिलसिला_लम्बा_चलेगा



हारने वाला यह कोई व्यक्ति,वाद या विचार नहीं है | यह एक सोच है | देश और समाज के हितों के विरुद्ध हर काल, परिस्थिति और सरकार में यह सोच विषैले सर्प की तरह फुंफकारता है | यह सोच तब भी थी जब देश अंग्रेजों से लड़ रहा था और आज भी है जब देश उस पाखंड से लड़ रहा है जो कथित #सेक्युलरिज्म_लिबरलिज्म_प्रोग्रेसिव_दलित_वितंडावाद_सांप्रदायिक_सद्भाव_और_अभिव्यक्ति_की_स्वतंत्रता के नाम पर फैलाया गया है |



यह सोच साहित्य से लेकर पत्रकारिता, कोर्ट और इतिहास के पन्नो तक में मौजूद है | हर दल में है | #कांग्रेस हो या #समाजवाद या #कम्युनिस्ट | #दलितवादी हों या #किसानों_मजदूरों की पैरोकारी के नाम पर #देशी_विदेशी फंड का धंधा करने वाले #एनजीओ या फिर #स्त्रीवाद का चोला ओढ़े आधुनिकतावादी | सब जगह | इनका मकसद सिर्फ एक है-#भारत अपने सत्व पर, अपने सामर्थ्य से न खड़ा हो | क्योंकि इन्हे डर है कि भारत अपने सत्व पर खड़ा हुआ तो इनकी जमीन केवल भारत से ही नहीं बल्कि दुनिया के नक़्शे से खिसक जाएगी | इसलिए ये हर उस कार्य का विरोध करते हैं जो भारत के सत्व और स्वाभिमान को ऊँचा उठाता है |



वह कार्य #राम_मंदिर का निर्माण हो सकता है | कश्मीर से #धारा_370 का समापन हो सकता है | #नागरिकता_कानून हो सकता है | या फिर अदालतों का निर्भीकता पूर्ण निर्णय हो सकता है | कभी ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के नाम पर खड़े होंगे | कभी #संविधान की रक्षा के नाम पर | कभी गरीब-मजदूर के हक़ के नाम पर और कभी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के नाम पर | कभी #मानवाधिकार के नाम पर तो कभी स्त्रियों के सम्मान की रक्षा के नाम पर |



यह सोच बड़ी जबरजस्त है | अगर किसी स्त्री का शील भंग भरतपुर-राजस्थान में हो तो इनके लिए स्त्री सम्मान का प्रश्न नहीं होता लेकिन अगर वही घटना भदोही उत्तर प्रदेश में हो तो इनकी भृकुटि तन जाती है | अगर जौनपुर में #मुसलमान दलितों की पूरी बस्ती फूंक दें तो दलितों की पैरोकारी के नाम पर राजनीति की रोटी सेंकने वाले इस सोच के किसी दलित नेता या दल में कोई हलचल नहीं होती | सन्नाटा छा जाता है| लेकिन अगर आज़मगढ़ में कोई अपराधी किसी दलित की हत्या कर दे तो ये पहाड़ सर पर उठा लेंगे | पूरी बेशर्मी से |



इस सोच का पाखंड इतना जबरजस्त है कि #मकबूल_फ़िदा_हुसैन हों या कि अकरम हुसैन, हिन्दू देवी-देवताओं की अश्लील तस्वीरें बनायें तो वो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है लेकिन अगर किसी पी नवीन ने बंगलौर में #मोहम्मद के जीवन की कहानी लिख दी तो वह सांप्रदायिक है और उसके विरुद्ध आग लगाने का इन्हे अधिकार है |



यह सोच संविधान की अपने मन मुताबिक जब चाहे जैसे चाहे व्याख्या करे किसी को आपत्ति दर्ज कराने का अधिकार नहीं है लेकिन अगर सरकार ने भारत की सम्प्रभुता की रक्षा के लिए कोई कानून बना दिया तो ये उसे संविधान विरोधी करार देकर आसाम से लेकर दिल्ली तक दंगा करेंगे |



यह सोच कभी #गाँधी को | कभी विकासवाद को | कभी दलितों को | कभी अल्पसंख्यकों को | तो कभी स्त्रियों को अपना ढाल बना लेती है | स्त्रियों,दलितों,अल्पसंख़्यकों,गरीबों-मजदूरों के मन में पिछड़ेपन, गैरबराबरी और संसाधनों से विमुख किये जाने का डर पैदा कर अपनी राजनीति और चंदे का धंधा चलाते हैं |



लेकिन अब यह सोच हारने लगी है | इसकी हार का सिलसिला अभी शुरू हुआ है | लेकिन यह लम्बा चलेगा | क्योंकि समाज में अब इस सोच के विरुद्ध जागृति आ गयी है | समझ बन गयी है | यह हुआ है #नरेंद्र_मोदी के उभार से | इसीलिए यह सोच नरेंद्र मोदी के प्रतिकार के बहाने ढूंढती है | जैसे इस समय #प्रशांत_भूषण इस सोच के प्रतिनिधि बने हुए हैं | लेकिन अब कुछ होने वाला नहीं है | लोग जागरूक हैं | समाज में एक धारणा बनती जा रही है | नरेंद्र मोदी केवल नेता नहीं हैं | उनका विरोध अगर किसी मुद्दे पर हो रहा है तो इसका अर्थ है कि वे सही हैं | क्योंकि विरोध में खड़े चेहरे वही हैं जो हर मसले पर विरोध में खड़े होते हैं |

इस विरोध में कहीं जनसामान्य नहीं है | समाज नहीं है | कुछ चेहरे हैं, संस्थाए हैं, दल हैं | विरोध जिनका धंधा है |



नरेंद्र मोदी नहीं होंगे तो भी इस सोच को हारना ही होगा क्योंकि भारत के बृहत्तर समाज में इसे हराने का माद्दा और समझ दोनों पैदा हुआ है |

रूपेश पान्डे की एफ बी से साभार


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