बूंदों की सरगम

बूंदों की रुन झुन है सावन में
या कहीं सरगम बज़ी।
हवाओं की थिरकन है
या मौसम ने नयी धुन है रची।
 
जुगलबंदी करती हवा
छेड़ छेड़ फुहारों को
दोहरा रही बंदिश वही
ख़ुशामदीद है सावन की
लपक - झपक कटार सी
 चमकती तड़ित कह गयी अभी।

सुन थम - थम ,रुक -रूक , झम-झम
बारिशों के ये आरोह - अवरोह।
प्रकृति भी लगी गुनगुनाने
नये सुर , नये नगमे ,नयी तानें
संदली संदली हुआ समां
वादियां सुरमई सी सज़ी।

कहीं मंद्र, कहीं तीव्र स्वर
जीवन की यह लय अमर
गाते चले मेघ मल्हार
हिलौरे लेता जैसे हरसूं प्यार
ताल पर झूमें मयूर हसीं ।

 छिड़ी सप्तसुरों की बंसी
सुध बुध खोये से नज़ारे
  मस्त मग्न पशु -पंक्षी सारे।
नव श्रंगार से हर्षित प्रकृति
रंगबिरंगे फूलों ने पायी हंसी।

भिगो भिगो गयी तन मन
बारिशों की यह मीठी सरगम
प्रकृति को मिले सुर जो नये
मंत्र मुग्ध हो सारा आलम
सिमट गया यहीं,बस यहीं।


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