ईश्वर भक्ति से विमुख लोगों के लिए रामचरित मानस के उत्तरकांड में गोस्वामी तुलसीदास जी का कथन
गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरित मानस के उत्तरकांड में ईश्वर भक्ति से विमुख लोगों के विषय में बताते हुए कहा है कि -
जे असि भगति जानि परिहरहीं। केवल ग्यान हेतु श्रम करहीं॥
ते जड़ कामधेनु गृहँ त्यागी। खोजत आकु फिरहिं पय लागी॥
भावार्थ:-जो भक्ति की ऐसी महिमा जानकर भी उसे छोड़ देते हैं और केवल ज्ञान के लिए श्रम (साधन) करते हैं, वे मूर्ख घर पर खड़ी हुई कामधेनु को छोड़कर दूध के लिए मदार के पेड़ को खोजते फिरते हैं॥
सुनु खगेस हरि भगति बिहाई। जे सुख चाहहिं आन उपाई॥
ते सठ महासिंधु बिनु तरनी। पैरि पार चाहहिं जड़ करनी॥
भावार्थ:-हे पक्षीराज! सुनिए, जो लोग श्री हरि की भक्ति को छोड़कर दूसरे उपायों से सुख चाहते हैं, वे मूर्ख और जड़ करनी वाले (अभागे) बिना ही जहाज के तैरकर महासमुद्र के पार जाना चाहते हैं॥
संदेश - इस जीवन रूपी भवसागर से पार पाने के लिए ईश्वर की भक्ति ही एकमात्र विकल्प है।
जय श्रीराम
जय श्री सीताराम जी की