ईश्वर की ही कृति है बधिर ,स्वाभिमान से जीने दे
मानव ईश्वर की वह कृति है जिसे ना तो बदला सकता है ना ही वापस उसे मूल रूप में लाया जा सकता है।आज मूकबधिर दिवस पर हम बात करेंगे मूकबधिरों की ।यह हर वर्ष 26 सितम्बर को मनाया जाता है, अब एक साप्ताह के रूप में मनाया जाने लगा है, ।यह सितम्बर के अंतिम सप्ताह में मनाया जाता है। विश्व बधिर संघ (डब्ल्यूएफडी) ने वर्ष 1958 से 'विश्व बधिर दिवस' की शुरुआत की।इसका उदेृशय बधिरों में स्वस्थ जीवन, स्वाभिमान, गरिमा इत्यादि भावनाओं को जागृत करना है।जिनको सुनने या बोलने की अक्षमता किसी भी कारण से हो जन्म से या दुर्घटना में उसके लिए कितना कठिन और कष्टदायक होता होगा। हालांकि आज विज्ञान ने बहुत कुछ तरक्की की है इस अक्षमता को दूर करने के लिए अनेक उपाय किए हैं| कई मामलों में सर्जरी करके ,मशीनें लगाकर और तो और इस तरीके के भी यंत्र बना दिए हैं कि मूक बधिर व्यक्ति उसको ना केवल पढ़ सकता है बल्कि कुछ तो बोलने भी लगते है| |आज सरकार द्वारा मूकबधिरों के उत्थान के लिए ना केवल चिकित्सक उपाय कर रही है बल्कि उनको सक्षम बनाने के मूकबधिर स्कूल भी बनाए गए हैं| जहां पर वह अपनी उच्चशिक्षा को ग्रहण करके ऊंचे ऊंचे पदों पर भी पदस्थ हैं यहां तक कि इन लोगों ने अनेक प्रकार की प्रतियोगिता भी पास की है।जो कि एक साधारण आदमी के लिए बहुत मुश्किल होता है| आपको जानकर भी आश्चर्य होगा कि एक मूक-बधिर अच्छा संगीत दे सकता है।यह सब सरकार के उपाय के साथ मूक बधिर के परिवार की स्पोर्ट से संभव होता है मूक बधिर की इच्छा शक्ति और लगन पर भी निर्भर करता है कि वह अपने आप को एक सामान्य व्यक्ति की दृष्टिकोण से देखता है या 1 विकलांग के दृष्टिकोण से देखता है |
लोकस्वर की श्रीमती संध्या शर्मा बताती हे केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्रालय बधिरों के कल्याण के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों को भी 'दीन दयाल उपाध्याय योजना' के तहत सहायता भी मुहैया कराता रहा है। साथ ही बधिरों को नौकरी देने वाली कम्पनियों को छूट का भी प्रावधान है।और तो और बधिरों हेतु समाचार दूरदर्शन सरकार प्रसारित करती है ।
लोकस्वर के अध्यक्ष राजीव गुप्ता कहते है व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए आने वाले अधिकतर बच्चे देश के पिछड़े इलाकों से आते हैं। इनके अभिभावकों में जागरूकता एवं सुविधाओं के अभाव के कारण इन बच्चों के पास मूलभूत ज्ञान का अभाव होता ।आज मेरा सभी मूकबधिर भाइयों के परिवार को या उसके उत्थान में लगे हुए सभी वैज्ञानिक चिकित्सक और सरकार को बहुत ही बहुत साधुवाद व धन्यवाद और हम आशा करते हैं कि बधिरों में स्वस्थ जीवन, स्वाभिमान, गरिमा इत्यादि भावनाओं के लिए इसी प्रकार से चिंतित रहेंगे और मुक बधिर लोगों से आशा करता हूं कि वह कभी भी अपने आप को किसी से कमतर ना माने।