गांधी और आज, बदल गया समाज
राष्ट्र पिता महात्मा गांधी की जयन्ती पर बदलते वक्त में गांधी जी के विचार और उनके मार्ग पर चलने के खतरे को रेखांकित कर नई पीढ़ी को अपनी जिज्ञासा समझाने का प्रयास करना चाहिए।गांधी कोई आंधी नहीं है जो तेज हवा के साथ मिलकर काम कर जाये, यह एक विचार है जिसके लिए सत्याग्रह पर जाने के लिए नैतिक वल सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है ।आज का समाज अनैतिक संसाधन, अनैतिक व्यवहार और अनैतिक कार्य के माध्यम से अधिक से अधिक धन अर्जित करने का प्रयास कर रहा है ।वह विश्वास ही नहीं कर रहा है कि उन्नीसवी सदी में हमारे देश का नायक एक लगोटी लगाकर गुलाम भारत की आजादी की लड़ाई लड़ा और अहिंसा के सिद्धांत पर हासिल करा गया ।कैसे जिएं और किन बातों के लिए मरें, यह कौन समझाये! गांधीवादी कार्यकर्ता की खामोशी, चरखा को श्रम की जगह सोलर पावर से जोड़ने की कोशिश खादी और गांधी दर्शन से असहमत लोगो का षड्यंत्र दिख रहा है ।गांधी को संस्थान में और किताब में कैद कर रहे है ।गांधी के खिलाफत आन्दोलन के समर्थन पर में आज भी असहमत हूं लेकिन गांधी जी को एक महात्मा के रूप सत्य अहिंसा के मार्ग के अग्रदूत के लिए मेरे प्रेरक है ।गांधी के साथ खुरपेंच कारी शक्ति हमेशा-हमेशा साथ ही रही है लेकिन उनमे नैतिक वल कभी भी नहीं था इसलिए गांधी की हत्या की साजिश रची गई, गांधी के विचार वह हथियार है जो कभी समाप्त नहीं हो सकते है ।मानवतावादी गांधी के नये आयाम से परिचित कराने के लिए हमारे साहित्य जगत के सभी रचनाकारों को एक बार फिर से चिंतन करना होगा कि कोरोना काल के लिए गांधी के विचार कितने आवाश्यक है।गांधी ने राजनीति, समाज, अर्थ एवं धर्म के क्षेत्र में नए आदर्श स्थापित किये व उसी के अनुरूप लक्ष्य प्राप्ति के लिये स्वयं को समर्पित ही नहीं किया, बल्कि देश की जनता को भी प्रेरित किया और आशानुरूप परिणाम भी प्राप्त किये। उनकी जीवन-दृष्टि भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है।गांधी का कहना था कि स्वराज्य एक पवित्र शब्द है, यह एक वैदिक शब्द है, जिसका अर्थ आत्मशासन और आत्मसंयम है। गांधी का स्वराज गाँवों में बसता था और वे गाँवों में गृह उद्योगों की दुर्दशा से चिंतित थे। खादी को प्रोत्साहन और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार उनके जीवन के आदर्श थे, जिनको आधार बनाकर उन्होंने देशभर के करोड़ों लोगों को आज़ादी की लड़ाई के साथ जोड़ा। उनका कहना था कि खादी का मूल उद्देश्य प्रत्येक गाँव को अपने भोजन एवं कपड़े के मामले में स्वावलंबी बनाना है।गांधी ज्ञान आधारित शिक्षा के स्थान पर आचरण आधारित शिक्षा के समर्थक थे। उनका कहना था कि शिक्षा प्रणाली ऐसी होनी चाहिये जो व्यक्ति को अच्छे-बुरे का ज्ञान प्रदान कर उसे नैतिक रूप से सबल बनाए। व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिये उन्होंने वर्धा योजना में प्रथम सात वर्षों की शिक्षा को निःशुल्क एवं अनिवार्य करने की बात कही थी। गांधी का यह भी मानना था कि व्यक्ति अपनी मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा को अधिक रुचि तथा सहजता के साथ ग्रहण कर सकता है। अखिल भारतीय स्तर पर भाषायी एकीकरण के लिये वे कक्षा सात तक हिंदी भाषा में ही शिक्षा प्रदान करने के पक्षधर थे।यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं कि गांधी के विचार, दर्शन तथा सिद्धांत कल भी प्रासंगिक थे, आज भी हैं तथा आने वाले समय में भी रहेंगे। समय की शिला पर सत्यान्वेषण पीछे के निहितार्थ समझना आज साहित्य में अत्यंत आवश्यक है।
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