*मेरे पिताजी और कोरोना*
मेरी माता जी का देहांत 15 जून 2019 को हो चुका था । पिताजी अकेले पड़ गए । विधवा भाभी जी गांव में थी। उनका मन उदास रहा करता था । मझले भैया के बेटे की शादी थी ।वह खुश नहीं थी उन्होंने पिता जी से कहा कि माता जी का देहावसान हुआ है । अतः इस समय शादी विवाह करना ठीक ना होगा। शादी कैंसिल करवा दीजिए। पिताजी ने अपने सभी बेटों से बातचीत की कि क्या करना चाहिए। सब ने पिताजी पर ही कहा । क्या करना है ? आप जैसा निर्णय ले ।वैसा ही किया जाएगा। पिताजी ने सारी परिस्थितियों को समझा ।आजकल शादी ब्याह में सभी चीजें एडवांस रूप से की जाती है। लड़के और लड़की दोनों की तरफ से सारी व्यवस्था होती है। एडवांस के रूप में बारात के आने जाने , खाने पीने का व्यवस्था, होटलों में ठहरने का व्यवस्था की जाती है ।एडवांस के रूप में कुछ न कुछ बयाना। सभी के पास चला जाता है। बयाना डूबना तब तय हो जाता है। फिर नए सिरे से सब करना । मुश्किल और खर्चीला काम हो जाता है । पिताजी ने निर्णय लिया विवाह को ना रोका जाए ।विवाह अपने समय पर हो।
गांव में निवास कर रहीं विधवा भाभी इस निर्णय से थोड़ी खफा सी हो गई और उन्होंने खुद को विवाह में जाने से मना कर दिया। इधर पिताजी गांव से शहर आए और नियत तिथि पर भतीजे का विवाह संपन्न हुआ ।
न. विवाह के पश्चात पिताजी कोलकाता में ही मझले भैया के पास रुक गए। शादी विवाह ,रिसेप्शन में खानपान सब की वजह से उनकी तबीयत थोड़ी गड़बड़ होने लगी। कोलकाता में इलाज कराया गया और डॉक्टर ने उन्हें कैंसर बता दिया।
हम सभी लोग परेशान क्या किया जाए । जनवरी का महीना आ चुका था ठंड जोरों पर तू नहीं थी तब सत्य में तो खंड वैसे भी कम पड़ती है। अब कैसे क्या किया जाए ।उधर गांव में अकेली भाभी जी भी परेशान एक नई मुसीबत आ चुकी थी। इलाज का जिम्मा कहां कौन करेगा, कैसे होगा। कैसे किया जाए मझले भैया ने सलाह दी कि दिल्ली सबसे मुफीद जगह होगा जहां पर इलाज किया जा सकेगा और सही ढंग से इलाज होगा। सारी सुविधाएं दिल्ली में हैं। बड़े भैया दिल्ली में हैं , भतीजे 4 -5 दिल्ली में हैं। सभी के पास घर हैं। सब कुछ ठीक है ।हम लोगों ने पिताजी को दिल्ली में बुलाकर गाजियाबाद वाले फ्लैट पर रहने के लिए बुला लिया और वही से हम उनका इलाज कराने लगे।
मार्च का महीना आ चुका था। पिताजी गांव जाने की तैयारी करने की सोचते थे ।लेकिन हम उन्हें इलाज के लिए जोर दे रहे थे कि अच्छे से इलाज हो जाए ।वे पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाएं। उन्हें किसी ने नहीं बताया कि उन्हें कैंसर हो चुका है ।
*इसी बीच जनता कर्फ्यू हिंदुस्तान में लगा* लोगों ने सोचा 1 दिन की बात है। किसी तरह टल जाएगा । लेकिन जैसे-जैसे खबर आने लगी समाचार में जिस तरह से समाचार आने लगा गली - गली इस पर बातचीत होने लगी। भारत के प्रधानमंत्री ने जिस तरह से आकर जनता के नाम संबोधन दिया ।तब जाकर एहसास हुआ कि खतरा विकट है और उसके बीच हमेशा समाचार में यह बात जरूर कहा जाता था कि 65 साल की उम्र वाले दमा के मरीज सांस के मरीज डायबिटीज के मरीज को जिन्हें गले की कोई तकलीफ है। उनके लिए घर से बाहर निकलना ठीक नहीं है । यह खतरे से खाली न होगा । सभी खुद अपने घर में खुद को नजरबंद कर चुके थे। पिताजी ने भी निर्णय लिया।पहले इलाज कराया जाए और उसके बाद स्थिति ठीक होगी ।तब वे गांव की तरफ प्रस्थान करेंगे।
गांव में हमारा पुश्तैनी मकान है ।अच्छा खासा 24- 25 कमरे का मकान है। जिसकी देखभाल करने वाला भी फिलहाल कोई नहीं है। विधवा भाभी जिनके पति यानी मेरे छोटे भैया का निधन बहुत पहले हो चुका है । वे अकेले उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि अकेले वह इतने बड़े घर में कैसे रहे। उन्होंने अपने को व्यस्त रखने के लिए इतने बड़े मकान की रिपेयरिंग का काम ठान लिया और मन लगाकर उन्हें इस कोरोना के समय काल में घर की पूरी रिपेयरिंग करवा डाली। गांव में स्थिति अच्छी थी और कोरो ना उतना हलचल वहां नहीं था । गांव के जो मजदूर दिल्ली ,मुंबई , कोलकाता ,मद्रास कहीं गए थे वह लौटकर आ गए थे और उन्हें जिला प्रशासन द्वारा क्लोरो टाइन में भेज दिया जा रहा था । 14 दिन गांव से बाहर रहने के बाद उन्हें घर जाने की इजाजत मिल रही थी ।इसलिए किसी भी तरह का कोई खतरा नहीं था। कोरोनावायरस अभी गांव में अभी तक नहीं पहुंचा था। जितना शहर में तहलका मचा रहा था। धीरे-धीरे मुंबई और दिल्ली की सभी जगह सरकारी स्तर पर कहा जाने लगा लापरवाही न करे यह जनता जनार्दन की लापरवाही कहें , या सरकार का देर से कार्य करना।यह रोग मुंबई, महाराष्ट्र, पुणे, अहमदाबाद, गुजरात तथा राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बहुत बुरी तरह फ़ैल चुका था । इस पर कंट्रोल करने के लिए सरकारी स्तर पर बहुत सारे एक साथ शुरू किए गए । डीएम को अलग से अधिकार दिया गया वह प्रतिदिन मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर निर्णय ले रहे थे। कब लॉक खोलना है कब लगाना है। पुलिस ,मेडिकल जगत के लोग एकदम मशीनरी के तौर पर काम करने शुरू कर दिए ।
लेकिन आज के समय बिगड़ती जा रही थी। उसे देखते हुए लगता है अभी कम से कम यह सब 8 महीना चलेगा। इस देश में जल्दी खत्म होने वाला नहीं।
कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ती जा रही थी।यह अपने उच्चतम स्थिति पर दिखाई दे रहा था।
वही पिताजी का मन फिर से गांव वापस जाने का कर रहा था। वे बार बार बच्चों से हम सबों से इस बात का जिक्र करते कि मुझे गांव जाना है
। तबीयत अब ठीक हो चुकी थी लेकिन वह अपने को नजरबंद नहीं अब रखना चाहते थे। ट्रेन नहीं चल रही थी ।किस तरह से जाया जाए। हवाई जहाज बंद ।किस ढंग से उन्हें गांव भेजा जाए। इस विषय पर लगभग प्रतिदिन 1 घंटे से डेढ़ घंटे चर्चा होती थी। पूरा परिवार मोबाइल से एक दूसरे से चर्चा कर इस सिलसिले में फायदा देने की स्थिति में पहुंचने लगा था।
लास्ट में कोई चारा ना देखते हुए यह कार्यक्रम रोक दिया गया था। लेकिन धीरे-धीरे पिताजी के जैसा ८५ वर्ष की उम्र में एक व्यक्ति जब जिद करता है तो उसे संभालना बहुत मुश्किल होता है ।पूरे परिवार के सभी सदस्यों से सलाह- मशवरा करने के बाद यह निर्णय लिया गया कि पिताजी को व्यक्तिगत गाड़ी से गांव पहुंचाया जाए।
दिल्ली से गांव की दूरी 780 किलोमीटर। कैसे काम होगा। बड़े बेटे के मित्र ने ड्राइवर के रूप चलने कि बात स्वीकार की । छोटा बेटा अपनी गाड़ी में अपने दादाजी को लेकर प्रातः काल रवाना हुआ। सुबह 5:00 बजे से चलने के बाद रात को 9:00 बजे वे सभी को गांव पहुंच गए ।सभी को चैन मिला। सभी को शांति आई ।हमें खुशी इस बात की थी कि पिताजी एक जंग जीत कर गांव सुरक्षित पहुंच गए। कैंसर का मुकाबला करते हुए स्वस्थ लाभ होकर वह गांव गए थे । कोराना का भयंकर प्रकोप देखकर वह गांव गए थे। अपनी जिंदगी में एक व्यक्ति क्या कुछ नहीं देखता है। पिताजी ने वह सब कुछ भी देखा जो महानगरों को महानगर बनाता है। महानगर में रहने वाले लोगों को कितनी परेशानी उठानी पड़ती है वह भी उन्होंने देखा ।कितनी जिल्लत उठानी पड़ती है वह भी उन्होंने देखा। कितनी सारी तकलीफें उठानी पड़ती है ।पिताजी जब तीन महीना घर पर रहे ।तो 90 दिन उन्हें काटने को दौड़ता था। 1 दिन के लिए भी वह बाहर नहीं जा पाए। बड़े भैया बड़े भैया के बच्चों से मिलने के लिए तरसते रहते थे जिद करके एक दिन पहुंच भी गए उनको लाने के लिए जाने का सारा टाइप तो हमें उठाया। हमें यह लगता था कि उनका अंतिम समय तो उनकी किसी भी इच्छा का अनादर न किया जाए। कहीं आना जाना तो होता नहीं था। हमेशा चलने फिरने वाला आदमी खेत पर जाकर घूमने वाला आदमी ,
थोड़ी बहुत श्रम करनेवाला व्यक्ति अंदर अंदर वो बहुत घबरा से गए थे। फिर भी उन्होंने अपने को संभाला। दवा और दुआ दोनों का असर हुआ नहीं तो हम लोग भी एक बार निराश हो गए थे कि कैंसर जैसे भयानक रोग ऊपर से यह कोरोना जिसने 80 साल के ऊपर वालों को तो छोड़ना ही नहीं था।
गाड़ी के पिछले सीट पर बैठ कर, सो कर ,लेट कर ,बोलते बातचीत करते हुए घर पहुंच गए। घर जाने के बाद उन्हें ऐसा निश्चित रूप से लगा एक कैद से छूटकर आए हैं । इसने लोगों को बहुत लोगों को मौत भी दी। बहुत लोगों को तकलीफ में दी जाने अनजाने लोगों ने भी कोरोना को प्रश्रय दिया। लेकिन संयुक्त परिवार के रूप में हम लोगों ने अपने पिताजी के जिंदगी के कुछ पल वापस जरूर किए। कुछ खुशी के पल उन्हें अवश्य प्रदान किए। इसी में हमारी खुशी है। हम इसमें अपने को हर्षित महसूस करते हैं। *कोरोना एक जंग है जिससे हम जीत कर वापस आए हैं। हमने उसके अपने यहां तक आने के सारे रास्ते बंद कर दिए। हमारे दोनों बच्चे घर से काम कर रहे थे मैं तो अपना कार्य जनता कर्फ्यू से ही शुरु कर रहा था। घर पर रहकर करना कुछ मित्र अगर बहुत उन्हें इमरजेंसी आ जाते थे तो पूरी सावधानी बरती जाती थी।*
हमने सदमे में रहते हुए यह १०० दिन काटे हैं और ईश्वर से हमेशा कामना करते रहते हैं ।ईश्वर ऐसे दिन कभी न दिखाना ।जहां व्यक्ति की नौकरी छूट रही है ।व्यक्ति अपने गांव जा रहा है। पहुंचना है। लंबी लंबी यात्राएं लोग कर रहे हैं ।सड़क से लोग घर पहुंचने के लिए पैदल चल चल दे रहे हैं। यह सब दृश्य यह सब बातचीत किसी को देखने को ना मिले.