ओ कोमल कल्पना के कवि
*ओ कोमल कल्पना के कवि
है तुमको बारंबार नमन।
सजग संवेदना के कवि
है तुमको बारंबार नमन।
"वीणा","ग्रंथि," "पल्लव"
और' "गुंजन","युगांत","युगवाणी,"
"ग्राम्या",और"स्वर्ण किरण।
चला चला निज तूलिका
रचते नव जीवन गुंजन।
"वाणी" लिखते फिर "रश्मिबंध"
खुल जाती सबकी दृष्टि अंध।
फिर रचते "चिदंबरा","कला और
बूढ़ा चांद"तुम लिखे "अभिषेकिता"
और "पुरुषोत्तम राम"लिखे।
वाह सुमित्रा के नंदन!
अद्भुत तुम , अद्भुत तव लेखन
अद्भुत लेखन अद्भुत "परिवर्तन"
भर -भर आता अपना मन
कोटि-कोटि शत् कोटि नमन।*