व्यंग्य - दौर-ए-सेल्फ मार्केटिंग





अपने अधीनस्थ राम लखन सिंह की वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट का स्व मूल्यांकन वाला काॅलम देखकर बांके लाल चांैक पड़े थे। राम लखन सिंह ने अपने स्व-मूल्यांकन के काॅलम में जितने कामों का बखान कर रखा था, उनकी तो कभी झलक तक बांके लाल को देखने को नहीं मिली थी। राम खिलावन ने अपने स्वमूल्यांकन वाले काॅलम में अपने आपको इतना सर्वगुण संपन्न कर्मचारी दिखाने की कोशिश की थी मानो कंपनी का सारा कार्य भगवान भरोसे नहीं अपितु उसके भरोसे ही चल रहा हो। और यदि वह न होता तो कंपनी कब का इतिहास के पन्नों में गुम हो चुकी होती। एक-एक काम के लिये दस-दस बार कहने पर भी न सुनने वाला एवं ज़्यादातर समय नींद के खर्राटों, ताश के पत्तों और बीड़ी पी-पी कर कंपनी के कामों को महज़ निपटाने के अंदाज़ में निपटाने वाला रामलखन इतना सारा काम पूरी उत्कृष्टता के साथ करता है, यह उसके साहब बांके लाल को एक साल में आज ही पता चला था।
बांके लाल से रहा नहीं गया तो उन्होंने राम लखन को अपने पास तलब कर ही लिया। जब बांके लाल ने उसके स्वमूल्यांकन रिपोर्ट में लिखी गई उसकी बातों पर आश्चर्य प्रकट करते हुए उससे पूछा कि तुमने अपने रिज़्यूम में जो-जो काम लिखे हैं, उनके बारे में तो मैंने न कभी सुना, न जाना ही। आखिर तुमने ये इतने सारे काम कब कर डाले, मुझे भी तो पता चले। इस पर राम लखन खीस निपोरते हुए कुछ दार्शनिक अंदाज़ में बोला, ‘सर आजकल किसी में इतनी समझ या फुर्सत नहीं और आंखों पर उस क्वालिटी का पावर वाला चश्मा भी नहीं कि अच्छे और मेहनत तथा लगन से किये गये कामों को वह देख या परख सके। इसलिये अपने बारे में सबको स्वयं ही सब कुछ बताना पड़ता है।’
उसने अपनी बातों की पुष्टि के लिये अनेक उदाहरण भी दिये, मसलन...पिछले दिनों यदि सरकार अखबारों, सोशल मीडिया और टीवी के बीसियों चैनलों पर अपने विज्ञापनों के ज़रिये यह न बताती कि उसने लोगों की भलाई के लिये फलां-फलां ंजब और ग़ज़ब के काम किये हैं। अमुक-अमुक क्षेत्रों में एक से बढ़कर एक रोज़गार पैदा किये हैं। किन-किन चीज़ों के दाम घटाये और उसके कार्यकाल में देश की विकास दर कहां से कहां जा पहुंची है, तो क्या आपको या हमें सरकार के महान कामों के बारे में कभी पता चल पाता? हम, आप तो पिछले दिनों तक यही सोचकर अपना माथा फोडे़ जा रहे थे कि इस नई सरकार के लिये वोट देकर जैसे हमने कोई मुगले आजमी ग़लती कर दी हो। पिछले दिनों एक प्रदेश की सरकार एक वर्ष पूरा होने पर यदि अपने पूरे वर्ष के किये गये कामों को जश्न के रूप में न मनाती और ढिंढोरा पीट-पीटकर अपने अदृश्य गुणों को न बताती तो क्या हम जान पाते कि कितने जन्मों के पुण्यों के फलस्वरूप और युगों बाद हमें ऐसी विलक्षण, मज़बूत और सर्व हितैषी सरकार मिली है।’
उसने आगे कई अन्य उदाहरणों की पोटली सरेआम खोलते हुए बताया, ‘सर! आजकल हम सब एक प्रोडक्ट की तरह से हो गये हैं। कोई प्रोडक्ट आज अपने प्रचार के तौर-तरीके से ही लोगों के दिल-दिमाग में अपनी जगह बनाता है। बढ़ियां से बढ़ियां प्रोडक्ट भी प्रचार और स्वयं को प्रोमोट न कर पाने की कला न आने से डिब्बों में बंद रह जाते हैं। और एक बार कोई प्रोडक्ट चल निकले तो बाद में उसमें घासलेट की गंध आने पर भी उसकी कीमत ज्यों की त्यों बनी रहती है।
कोई फिल्म कितनी भी बुरी हो अपने प्रचार के दम-खम पर ही दर्शकों को सिनेमा हाल तक खींचकर लाती है। और जब-तक दर्शक फिल्म की असलियत समझ पाते हैं तब-तक वह सौ करोड़ के क्लब में शामिल होने में भी सफल हो जाती है।
कौन कितना बड़ा गायक, कवि लेखक या कलाकार है, यह हमें उसकी कला से नहीं अपितु उसके बढ़चढ़ कर किये गये प्रचार और उसके स्व-प्रचार के अनोखे ढंग से ही पता चलता है। खुद की मार्केटिंग का तजु़र्बा या आईडिया दिमाग में न हो तो बड़े से बडे़ कलाकार भी धूल फांकते हुए ही नज़र आते हैं।
अब शादी के प्रपोज़ल ही देख लीजिये। युवक-युवतियों को उनके बायोडाटा में जितना गोरा-चिट्टा, समझदार, पढ़ा-लिखा, कुशल, मृदभाषी, प्रतिभाशाली, हैंडसम सेलरी, एडजेस्टेबल आदि-आदि दिखाया जाता है क्या वो हूबहू वैसे ही निकलते हैं। और यदि वे एकदम वैसे ही निकलते तो आज शादी के दो-चार दिनों बाद से ही तलाक-तलाक और तलाक की उल्टी गिनती न शुरू हो जाती। और कोर्ट कचहरियों की रौनक बढ़ने पर न आ रही होती?’
रामलखन ढ़ेर सारी आंखें खोलने वाली बातें कहके और चाणक्य के फूफा से भी ज़्यादा ज्ञान बघार कर साहब के कक्ष से बाहर निकल गया था। और इधर बांके लाल एक बार फिर से उसका रिज्यूम देखने और समझने के लिये अपना माथा फोड़ने के लिये बैठ गये थे। अपनी सीट से उठते वक्त उनका सीना गर्व से फूल उठा था। उन्हें आज पहली बार महसूस हुआ था कि यह कंपनी और समूचा देश राम खिलावन जैसे कर्मठ, लगनशील, निष्ठावान और मेहनती कर्मचारियों के भरोसे ही चल रहा है। यदि इस दुनिया की शोभा बढ़ाने के लिये राम लखन सरीखे लोग न हों तो यह पूरी की पूरी क़ायनात कब सूनामी या चिकनगुनिया की भेंट चढ़ जाये कोई नहीं कह सकता।   
 

 


 







 



 



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