"आदिवासियों के लिए तकनीकी" पहल आदिवासी उद्यमियों और शहरी बाजारों के बीच खाई को पाट देगी

“आदिवासियों के लिए तकनीकी” पहल की शुरुआत जनजातीय कार्य मंत्रालय के ट्राइफेड द्वारा छत्तीसगढ़ लघु वन उपज फेडरेशन और आईआईटी कानपुर के साथ मिलकर ई-लॉन्च के माध्यम से की गई। उद्यमिता कौशल विकास कार्यक्रम के तहत ट्राइफेड ने लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (एमएसएमई) के साथ मिलकर 'आदिवासियों के लिए तकनीकी' ने कार्यक्रम शुरू किया गया है, जिसका उद्देश्य वन धन विकास केंद्रों (वीडीवीके) के माध्यम से संचालित होने वाले स्वयं सहायता समूहों की सहायता से उद्यमिता विकास, सॉफ्ट स्किल, सूचना प्रौद्योगिकी और व्यावसायिक विकास पर ध्यान देने के साथ-साथ आदिवासियों का समग्र विकास करना है। यह कार्यक्रम वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से आयोजित किया गया, जिसमें ट्राइफेड के प्रबंध निदेशक श्री प्रवीर कृष्ण, छत्तीसगढ़ राज्य लघु वन उपज (व्यापार एवं विकास) सहकारी संघ के प्रबंध निदेशक श्री संजय शुक्ला, आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर-इन-चार्ज इनक्यूबेटर प्रो. अमिताभ बंद्योपाध्याय, आईआईटी कानपुर में प्रथम मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. निखिल अग्रवाल और छत्तीसगढ़ राज्य लघु वन उपज (व्यापार एवं विकास) सहकारी संघ तथा आईआईटी कानपुर के अधिकारी शामिल हुए। इसके अलावा प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल लाभार्थियों ने भी इसमें हिस्सा लिया।


13 अक्टूबर से 7 नवंबर 2020 तक 6 सप्ताह के प्रशिक्षण के दौरान, छत्तीसगढ़ राज्य के सभी जिलों में वन धन लाभार्थियों को सूक्ष्म उद्यम निर्माण, प्रबंधन और कामकाज के विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षित किया जा रहा है। यह कार्यक्रम 30 दिनों की अवधि में पूरा होगा और इसमें 120 सत्र आयोजित होंगे। इसका प्रशिक्षण मॉड्यूल आईआईटी, कानपुर द्वारा विकसित किया गया है। इसमें ऑनलाइन व्याख्यान तथा प्रशिक्षण जैसी विभिन्न प्रणालियों के माध्यम से चरणबद्ध तरीके से ऑनलाइन गतिविधियों का प्रसार लाभार्थियों के बीच किया जाएगा और क्लास रूम, व्यावहारिक ज्ञान, ऑनसाइट दौरा करने और जगहों को दिखाने की गतिविधियों को भी धीरे-धीरे आगे बढ़ाया जायेगा।


 


इस कार्यक्रम का उद्देश्य आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान और कौशल का दोहन करना तथा वन धन विकास केंद्रों (वीडीवीके) की स्थापना करके बाजार पर आधारित उद्यम मॉडल के माध्यम से उनकी आय को बढ़ाने के लिए ब्रांडिंग, पैकेजिंग और विपणन कौशल को बेहतर करना है। ट्राईफेड ने अब तक 21 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में 1,243 वनधन केंद्रों को मंजूरी दी है, जिसमें 3.68 लाख आदिवासी शामिल हुए हैं।


आईआईटी कानपुर में प्रथम मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. निखिल अग्रवाल ने अपने संबोधन के दौरान प्रतिभागियों और कार्यक्रम के लाभार्थियों का स्वागत किया।


इस अनूठी पहल के पीछे की सोच के बारे में बताते हुए, श्री प्रवीर कृष्ण ने कहा कि "आदिवासियों के लिए तकनीकी पहल" आदिवासी उद्यमियों और शहरी बाजारों के बीच की खाई को पाटने के लिए भारत के आदिवासियों को "आत्मनिर्भर" बनाने का एक अनूठा कार्यक्रम है। इस पहल के तहत ट्राइफेड ने आईआईटी कानपुर, आर्ट ऑफ़ लिविंग बैंगलोर, टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज मुंबई, कलिंग इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज भुवनेश्वर, विवेकानंद केंद्र तमिलनाडु और सृजन राजस्थान जैसे प्रतिष्ठित राष्ट्रीय संस्थानों के साथ समझौता किया है। जिनके सहयोग से छत्तीसगढ़, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु और राजस्थान राज्यों में वन धन उद्यमिता कौशल विकास योजना प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।


उन्होंने कहा कि ट्राइफेड ने बाद में अन्य राज्यों में वनधन उद्यमिता कौशल विकास योजना के तहत प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करने की योजना बनाई है। साथ ही अन्य प्रशिक्षण भागीदारों के माध्यम से आईआईटी कानपुर द्वारा विकसित प्रशिक्षण मॉड्यूल में स्थानीय आवश्यकता के अनुसार मामूली संशोधन भी किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि “आदिवासियों के लिए तकनीकी” पहल आदिवासी विकास और सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है।


श्री कृष्णा ने यह भी बताया कि पिछले कुछ महीनों में सरकार के प्रयासों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के माध्यम से लघु वन उपज (एमएफपी) के विपणन के लिए तंत्र और एमएफपी के लिए मूल्य श्रृंखला का विकास आदिवासी पारिस्थितिकी तंत्र को सकारात्मक प्रभावित करने वाले एक परिवर्तनकारी प्रकाश स्तम्भ के रूप में उभरा है। वनधन आदिवासी स्टार्ट-अप, इसी योजना के एक घटक के रूप में काम करता है और आदिवासी लोगों, वनवासियों तथा घर से ही काम करने वाले आदिवासी कारीगरों के लिए रोजगार सृजन का एक प्रमुख स्रोत बन गया है। ये वनधन केंद्र वन उपज के प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन के लिए सूक्ष्म आदिवासी उद्यम हैं। चालू वित्त वर्ष के दौरान ट्राइफेड की पहल 'वोकल फॉर लोकल गो ट्राइबल' के तहत इस योजना का और अधिक विस्तार किया जा रहा है। ट्राइफेड ने 27 राज्यों के 307 जिलों में 3000 वन धन केंद्र स्थापित करने की परिकल्पना की है।


श्री संजय शुक्ला ने छत्तीसगढ़ में एमएफपी कार्यक्रम की अभूतपूर्व सफलता के बारे में चर्चा की और बताया कि, अपने सराहनीय प्रयासों के साथ वह एक विजेता के रूप में कैसे उभरे तथा इस सफलता को कैसे आगे ले जा रहे हैं, इसी क्रम में “आदिवासियों के लिए तकनीकी पहल” अगला तार्किक कदम है। पिछले कुछ महीनों में, छत्तीसगढ़ सरकार ने 46,857 मीट्रिक टन लघु वन उपज की खरीद की है, जिसकी कीमत 106.53 करोड़ रुपये है। छत्तीसगढ़ सरकार ने एमएफपी योजना के लिए एमएसपी के कार्यान्वयन में अपनी पूरी शक्ति लगा दी है, खरीद की व्यवस्था तथा प्रक्रिया सभी जिलों में अच्छी तरह से प्रभावी हैं। छत्तीसगढ़ में 866 खरीद केंद्र हैं और राज्य सरकार ने 139 वनधन विकास केंद्रों से वनधन एसएचजी के अपने विशाल नेटवर्क का प्रभावी ढंग से लाभ उठाया है। वन, राजस्व और वनधन केंद्र के अधिकारियों के सचल दस्तों द्वारा घर-घर जाकर इन उच्च खरीद मूल्यों वाली लघु वन उपज के संग्रह जैसे नवाचारों को भी अपनाया गया है।


आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर-इन-चार्ज इनक्यूबेटर प्रो. अमिताभ बंद्योपाध्याय ने अपने संबोधन में, आईआईटी कानपुर द्वारा चलाए जा रहे कौशल विकास कार्यक्रम और इसके लिए लक्षित तकनीकी परिवर्तन के बारे में बताया। आईआईटी कानपुर द्वारा छत्तीसगढ़ के आदिवासी युवाओं के कौशल विकास कार्यक्रम को चलाया जायेगा, ताकि वे एमएफपी का उपयोग करके उत्पादों के व्यवसायीकरण में अपने उद्यम का निर्माण कर सकें और बढ़ावा दे सकें। यह कार्यक्रम मुख्य रूप से स्थायी उद्यमिता के लिए विकास के तीन पहलुओं पर काम करेगा जिसे तीन स्तंभों के रूप में माना जा सकता है- जुड़ाव, क्षमता निर्माण, और बाजार संबंध। इससे आदिवासी उद्यमियों के व्यवसायीकरण का मार्ग प्रशस्त होगा। विकसित की गई सामग्री/मॉड्यूल विशेष रूप से मूल्य संवर्धन और वन उपज के प्रसंस्करण में उद्यमशीलता के लिए प्रासंगिक हैं। इस क्षमता निर्माण कार्यक्रम के ज़रिये गुणवत्ता की प्रमाणिकता सुनिश्चित करते हुए विपणन उत्पादों के साथ अपने व्यवसाय को चलाने के लिए सक्षम और सशक्त बनाकर आदिवासी उद्यमियों की उच्च सफलता दर सुनिश्चित करने की उम्मीद है।


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