अतृप्त मन की मौन इच्छाएं

अतृप्त मन की

मौन इच्छाएं

जान सका न कोई

 

अंतहीन सफर की

खामोश राहें

पहचान सका न कोई

 

है हँसती आँखों में 

बेपनाह दर्द 

मान सका न कोई

 

नफरतों की बंजर जमीं

प्रेम से उपजाऊ बनानी

ठान सका न कोई

 

तपते रेगिस्तान सी

बन गयी जिंदगियां

सोच निदान सका न कोई

 

अल्फाज़ों की पीड़ा

समझे बिना "सुलक्षणा"

बन विद्वान सका न कोई

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