बड़ी सोच

एक बार लाल बहादुर शास्त्री की गाड़ी चने के खेत के निकट से निकली। शास्त्री जी का मन ताजे चने खाने के लिए लालायित हो उठा। उनके साथ चल रहे कुछ लोग तुरंत चने तोड़ने के लिए चल पड़े। उन्हें जाते देख शास्त्री जी बोले-आप लोग कहां चल दिए? यह सुनकर वे बोले-सर, हम आपके लिए चने लेने जा रहे हैं। शास्त्री जी ने पूछा-क्या आपने चने तोड़ने के लिए खेत के मालिक से आज्ञा ली है? वे बोले-नहीं, लेकिन आपके लिए आज्ञा लेने की भला क्या जरूरत? यह सुन शास्त्री जी ने गुस्से में कहा-बिना खेत के मालिक की अनुमति के मेरे लिए कोई चने तोड़कर नहीं लाएगा। बिना किसी से पूछे उसकी वस्तु लेना अपराध है। ऐसा कहने पर एक व्यक्ति खेत के मालिक को ढूंढकर उसके पास पहुंचा। उसने उससे कहा-भइया, वहां गाड़ी में प्रधानमंत्री जी बैठे हुए हैं। यदि आपकी आज्ञा हो तो क्या मैं थोड़े से चने उनके लिए ले जाऊं। यह सुनकर वह बोला-प्रधानमंत्री मेरे खेत के चने मांग रहे हैं, यह तो मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात है। इतना कहकर उसने चने के पौधे उखाड़े और उनके पास पहुंचा। शास्त्री जी ने उससे चने लेकर उसकी पीठ थपथपाई।


प्रस्तुति : अंजु अग्निहोत्री


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