बैठा नाक गुरूर !!

बैठा नाक गुरूर !!

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नई सदी ने खो दिए, जीवन के विन्यास !

सांस-सांस में त्रास है, घायल है विश्वास !!

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रिश्तों की उपमा गई, गया मनों अनुप्रास !

ईर्षित सौरभ हो गए, जीवन के उल्लास !!

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कहाँ हास-परिहास अब,और बातें जरूर !

मिलने ना दे स्वयं से, बैठा नाक गुरूर !!

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बोये पूरा गाँव जब, नागफनी के खेत !

कैसे सौरभ ना चुभे, किसे पाँव में रेत !!

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दीये से बाती रुठी, बन बैठी है सौत !

देख रहा हूँ आजकल,आशाओं की मौत !!

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कहाँ सत्य का पक्ष अब, है कैसा प्रतिपक्ष !

हाँक रहा हो स्वार्थ जब, बनकर सौरभ अक्ष !!

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सपने सारे है पड़े, मोड़े अपने पेट !

खेल रहा है वक्त भी, ये कैसा आखेट !!

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रख दे रिश्ते ताक पर, वो कैसे बदलाव !

षडयंत्रकारी जीत से, सही हार ठहराव !!

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✍ डॉo सत्यवान सौरभ, 

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