दादी-नानी की कहानी में आया स्वर्ग का देवता स्टोरीमैन जीतेश ने सुनाई कहानी











किसी लोभ से की गई मदद व्यापार होती है, पुण्य नहीं। किसी की मदद यदि बिना किसी स्वार्थ के करते हैं तो हम पुण्य कमाते हैं और यही कमाई वास्तविक कमाई होती है।’


यह सार है उस कहानी का जो मंगलवार को लोक संस्कृति शोध संस्थान की मासिक श्रृंखला ‘दादी-नानी की कहानी: जीतेश की जु़बानी’ में बच्चों को आॅनलाइन सुनाई गई। स्टोरीमैन जीतेश श्रीवास्तव ने बताया कि पिछले वर्ष से प्रतिमाह किसी न किसी विद्यालय में बच्चों को बोधात्मक कहानियां सुनाने का कार्यक्रम किया जाता है किन्तु कोरोना विभीषिका के कारण पिछले छह माह से फेसबुक पर लाइव कार्यक्रम के जरिये लोक कथाओं के प्रसार का अभियान जारी रखा गया है। इस आयोजन से हजारों की संख्या में दर्शक जुड़ रहे हैं।


झुमरु की मदद कर राजू ने कमाया पुण्य :


स्वर्ग का देवता शीर्षक कहानी की शुरुआत राजू नाम के बच्चे से होती है जो प्रतिदिन रात में सोने से पहले अपनी दादी से कहानी सुनाने को कहता था। दादी उसे नागलोक, पाताल, गन्धर्व लोक, चन्द्रलोक, सूर्यलोक आदि की कहानियाँ सुनाया करती थी। एक दिन दादी ने उसे स्वर्ग का वर्णन सुनाया। वर्णन इतना सुन्दर था कि उसे सुनकर राजू स्वर्ग देखने के लिये हठ करने लगा। दादी ने उसे बहुत समझाया कि मनुष्य स्वर्ग नहीं देख सकता, किन्तु राजू रोने लगा। रोते-रोते ही वह सो गया। उसे स्वप्न में स्वर्ग के देवता देखने के लिये मूल्य देना पड़ता है और स्वर्ग में रुपये नहीं चलते वहाँ भलाई और पुण्य कर्मों का रुपया चलता है जो अच्छा काम करने से आता है। स्वर्ग के देवता ने पुण्य कमाने के लिए उसे सन्दूक दिया। राजू द्वारा दिखावे के लिए किये गये काम से सन्दूक में पुण्य का रुपया नहीं आता था। जब उसने अपने बीमार दोस्त झुमरु की मदद की तो उससे सन्दूक में पुण्य वाला रुपया गया। पहले रुपये के लोभ से अच्छा काम करता था। धीरे- धीरे उसका स्वभाव ही अच्छा काम करने का हो गया। अन्त में राजू की आदत में वह गुण समा गया। एक साधु जिसकी पुण्य की डिबिया नदी में बह गयी थी, को रोता देख राजू ने अपनी पुण्य कमाई बिना हिचक साधु को दे दी। वास्तव में वह साधु ही स्वर्ग का देवता था। बच्चों को परोपकार करने और उनमें प्रेम, दया और सहिष्णुता की भावना विकसित करने के उद्देश्य में यह कहानी पूर्णतया सफल रही। 
 

 

 

 



 



 



 




 

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