गजल-हे राम मुझे अपना बना क्यों नहीं लेते

हे राम मुझे अपना बना क्यों नहीं लेते

तुम पास मुझे अपने बुला क्यों नहीं लेते

अच्छाई से ज्यादा यहां निंदा का चलन है

इस ऐब से तुम मुझको बचा क्यों नहीं लेते

 तुमने तो विभीषण को भी सीने से लगाया था

 आया हूं शरण में तो उठा क्यों नहीं  लेते 

दीनों पर अकारण ही कृपा करते रहे तुम 

मैं धुन  हूं तुम्हारी मुझे गा क्यों नहीं लेते

माखन को चुराते हुए द्वापर में दिखे तुम

तुम शांत मुझे मुझसे चुरा क्यों नहीं लेते 

 देवकीनंदन शांत,लखनऊ 

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