ग़ज़ल-तुम चलो गर साथ मेरे कारवां हो जाऊँगा
ग़ज़ल
तुम चलो गर साथ मेरे कारवां हो जाऊँगा |
पंख खोलो हौंसलों के फिर जवां हो जाऊँगा |
सामने सबके कभी कुछ नाम देना मत मुझे ,
जिक्र मेरा कर दिया तो मैं फ़ना हो जाऊंगा |
अब नहीं सुनता कभी वह बैठ कर दिल की जुबां,
देख खुद को अजनबी बीता समय हो जाऊंगा |
आंसुओं की बाढ़ ऐसी है कि यह रूकती नहीं ,
बह रही इस धार में मैं ही रवां हो जाऊँगा |
लोग तो मेरे गमों की आग ही सेका किये ,
इस सुलगती आग में मैं ही धुंआ हो जाऊँगा |
प्यार की जो रट लगायें प्यार क्या वे जानते ,
कह रहा पर प्यार को जीकर दुआ हो जाऊँगा |
जिन्दगी का यह सफर जब प्यार से कट जाय तो ,
मैं ख़ुशी से इस जहाँ से फिर विदा हो जाऊँगा |
चन्द्रकान्ता अग्निहोत्री