'इतनी शक्ति हमे देना दाता'मनुष्यता का प्रार्थना गीत' बन गया...!






इतनी शक्ति हमे देना दाता'मनुष्यता का प्रार्थना गीत' बन गया...!


प्रार्थना गीतों के रूप में फिल्मी गीतों की हमारे जीवन में बनी उपयोगिता के बाद साहित्य के ध्वज वाहको के सामने नये रूप और संदर्भ के साथ विमर्श करने का अवसर सुलभ हुआ है।उसने कहा था' कहानी ने चंद्रधर शर्मा गुलेरी को हिंदी साहित्य में अमर कर दिया, कुछ उसी तरह एक प्रार्थना गीत 'इतनी शक्ति हमे देना दाता' ने गीतकार अभिलाष को कालक्रम में इतिहास अमर कर दिया। अभिलाष के इस प्रार्थना गीत में भी समूचे मानव समाज की निस्वार्थता का गरिमामय गान है और यह भाव शाश्वत रखने की शक्ति देने परमपिता से विनती है। यह विनती किसी भी मन की हो सकती है। ज्यादातर प्रार्थना गीतों में सामूहिक कल्याण, दुष्टता का नाश, सब पर कृपा बरसाने की गुहार तो होती है, लेकिन स्वयं पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगाने वाला यह शायद अनोखा प्रार्थना गीत है। कहते हैं कि अभिलाष ने यह गीत भी कई पुराने मुखड़ों को डायरेक्टर द्वारा रिजेक्ट किए जाने के बाद कुछ झुंझलाहट में ही लिखा था। लेकिन इस गीत के बोलो में मानो मनुष्य की आत्मा ही बोल पड़ी। एक फिल्मी प्रार्थना गीत, मनुष्यता का 'प्रार्थना गीत' बन गया।अशफ़ाक उल्ला खां एक बेहतरीन उर्दू शायर/कवि थे। अपने  तखल्लुस (उपनाम) 'वारसी'और 'हसरत' से वह  उर्दू शायरी और गजलें लिखते थे। वह हिंदी और अंग्रेजी में भी लिखते थे। अपने अंतिम दिनों में उन्होंने कुछ बहुत प्रभावी पंक्तियां लिखीं, जो उनके बाद स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे लोगों के लिए मार्गदर्शक साबित हुईं.
 
"किये थे काम हमने भी जो कुछ भी हमसे बन पाए,
ये बातें तब की हैं आज़ाद थे और था शबाब अपना;
मगर अब तो जो कुछ भी हैं उम्मीदें बस वो तुमसे हैं,
जबां तुम हो, लबे-बाम आ चुका है आफताब अपना।"
शकील बदायूनी और फ़ानी बदायूनी  जैसे शायरों ने इसी परंपरा को आगे बढ़ाया। शकील  साहब ने लिखा है -
 " मंदिर में तू मस्जिद में तू और तू ही है ईमानो  में 
मुरली की तानों में तू और तू ही है अजानों में ॥
"जिस एक भारत श्रेष्ठ भारत की बात कर रहे हैं वह भारत के  अध्यात्म से सराबोर उस संस्कृति की बात है  जो दुनिया में अनोखी है । अल्लामा  इकबाल ने शायद इसी ओर संकेत करते हुए कहा  था - 
 " कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी 
सदियों रहा है दुश्मन दौरे जमां हमारा॥  "
 विज्ञानमय बनाने केे सपनों को साकार करने के लिए विद्यार्थियों और युवाओें में अभूतपूर्व ढंग से नई चेतना की लहर बढ़ रही है।  उस दौर में जो साहित्य समाज का दपर्ण है उसे अपने कालातीत आवरण से बाहर निकल कर स्वीकार बोध के साथ मानव-चेतना और बाह्य जगत  में सम्पर्क होना आवश्यक है। इस कारण बोध का आधार मनुष्य का प्रत्येक अनुभव है और इसके  व्यवहार से ही मनुष्य अपने ज्ञान को समृद्ध करता
है।यह ‘बोध’ सदा एक सा नहीं रहा करता। इसमें सदैव परिवर्द्धन और परिवर्तन होते ही
रहते हैं। जिस प्रकार नदी का जल एक ही स्थान पर सदा एक-सा नहीं हुआ करता, उसी
प्रकार एक युग विशेष में भी विभिन्न दशको ं आदि के  अन्तर्गत बोध का स्वरूप विषम हो सकता
है। उदाहरणतः भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व हिन्दी कवियों ने अपने  काव्य में जिस
स्वातंत्र्य-चेतना का तूर्यनाद किया था, स्वतन्त्रता पाने के बाद उसका होना अनावश्यक हो गया,
यह और बात है कि राष्ट्रीय चेतना आज तक यथावत् बनी हुई है। इतना ही नहीं,
स्वतंत्रता की प्राप्ति होने के उपरान्त उसके विषय में जनसाधारण का जो अपार मोह-भंग देखने
को मिला, उसकी सशक्त अभिव्यक्ति हिंदी कवियों के काव्य का लोकप्रिय विषय या प्रतिपाद्य
बनकर सामने आई। इस प्रकार एक ही युग या शताब्दी विशेष में कवियों के बोधों में
कालानुसार रूप परिवर्तन के पदचिन्ह उभरते रहते हैं। अनुभवों की विचित्रता और पृथक्ता के
कारण भी बोध का स्वरूप कालानुसार अपना चेहरा बदलता रहा है और यही जीवन और जगत्
की परिवर्तनशीलता है, जिसकी ओर कामायनीकार ने ‘कामायनी’ में इस प्रकार संकेत किया था
- ‘‘चिति का स्वरूप यह नित्य जगत वह रू बदलता है शत शत। शत शत बदलाव नियति है तो फिर एक नीति से साहित्य क्यों बंधे?सृजन की हर धारा का स्वागत हो वह धारा सिनेमा की हो ,सोशलमीडिया की हो या अन्य माध्यम से व्यक्त हो उसे छोडकर विवेचन नही सही है।  

बीते सात दशकों में हिंदी सिनेमा के ऐसे श्रेष्ठ पांच फिल्मी प्रार्थना गीत कौन से हैं, जो हमारे कई स्कूलों की प्रार्थना सभाओं और विभिन्न संस्थाओं के थीम सांग बन गए हैं। फिल्मी से इल्मी गीतों का सफर जिनमें केवल ईश्वर की स्तुति है। इन प्रार्थना गीतों में केवल ईश्वर के स्तुति गान से हटकर मनुष्य के संपूर्ण मानव बनने की प्रार्थना है। अपने भीतर छिपे देवत्व को जगाने के लिए प्रेरणा और ऊर्जा प्रदान करने का आह्वान है। सिने गीतकारों के योग्यदान को साहित्य जगत को स्वीकार कर हर विधा का सम्मान करना चाहिए।
 

 



 



 



 









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