झील का कंकर... 

झील का कंकर... 



हवाओं में खुमारी असर सी है
शहर तेरे आने की ख़बर सी है
यादों की झील में गुम  हो गया
मारी कंकर तो उठी लहर सी है
मुझे हर  बार जो रोक  लेती है
तेरी  निगाह  मेरा  सबर ही  है
तुमसे अलग मेरा ठिकाना नहीं
तू पुराने चौक वाली सदर सी है
"उड़ता"ये शायरी तमे-सहर सी है
हर दफा क़ातिल तेरी नज़र सी है


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