माँ समर्पित वेदना का अब अमर विस्तार हो,
माँ समर्पित वेदना का अब अमर विस्तार हो,
दे रहा जो शब्द सविनय यह सहज स्वीकार हो।
रात रानी फूल कर है ज्यों महकती रात भर,
बस ऐसे ही जगत में काव्य स्वर गुलजार हो।
शीत हो बरसात अथवा ग्रीष्म का ही ताप हो,
छंद बाधा रहित लिखना भाव जीवन सार हो।
जीव जीवन श्वाँस लय की मापनी में है बँधा,
छंद मेरे भाव प्लावित तव गिरा उद्गार हो।
खिलखिलाते सुमन खिलते कान किसके हैं सुने,
पर नयन की कामना का नित्य ही निस्तार हो।
माँगता हूँ एक माँ से शीश पर आँचल रहे,
दो कदम भी जिधर निकलूं प्यार ही बस प्यार हो।
अर्थ की संभावना में शब्द का जो योग है,
जीव जीवन में निरंतर प्रेम का आधार हो।