पुरखों की थाती हैं विवाह संस्कार के भोजपुरी लोकगीत

हमरी दुलारी रे बेटी आँखी के पुतरिया!



‘विवाह संस्कार के भोजपुरी गीतों में सामाजिक लोक जीवन का जीवन्त स्वरुप देखने को मिलता है। इन गीतों में सांस्कृतिक जीवन मुखर होकर विभिन्न परम्परागत प्रथाओं के सहारे समाज का मार्गदर्शन करता है। विदाई के गीत में कन्या को आशीष देने तथा ससुराल आने पर उसे शिक्षा देने का काम भी लोकगीत करते हैं।’


ये बातें रविवार को आकाशवाणी से जुड़ीं ख्यातिलब्ध लोक गायिका श्रीमती आरती पाण्डेय ने कहीं। वो लोक संस्कृति शोध संस्थान द्वारा सांस्कृतिक संवाद की फेसबुक लाइव श्रृंखला में लोगों से रूबरू थीं। उन्होंने कहा कि विवाह संस्कार के समय कोहबर में बनने वाले भित्ति चित्र में स्वास्तिक, गाय-बछड़े, सूरज-चन्द्रमा बनाये जाते हैं जिसमें बुआ और बहन की विशेष भूमिका होती है और उन्हें इसका नेग भी मिलता है। अपने बचपन की बातें बताते हुए उन्होंने कहा कि हमने मां, दादी, नानी, मामी और चाची से गीत सीखे। परिवार में गीत-संगीत सिखाने के लिए परिजन राजी नहीं थे। स्कूल में थोड़ा बहुत सीखा किन्तु कालान्तर में विवाह के उपरान्त पति की प्रेरणा व सहयोग से समर बहादुर सिंह जी से सीखने का अवसर मिला। वे संगीत नाटक अकादमी के सचिव और आकाशवाणी के निदेशक भी रहे। उन्होंने जब मुझे सुना तो आॅडीशन के लिए कहा और मेरी संगीत यात्रा की विधिवत शुरुआत हुई। सांस्कृतिक संवाद के दौरान श्रीमती पाण्डेय ने विवाह सम्बन्धी पारम्परिक भोजपुरी गीतों और उनकी धुन के साथ होने वाले विविध संस्कारों और उनके महत्व को रेखांकित किया। शुरुआत वाणी वन्दना ‘बीणा के बजइया सातों सुर के रचइया’ तथा पारम्परिक देवी गीत पचरा से की। सगुन का गीत अरे अरे सगुनी सगुनवा लेके आव... मटकोर गीत केकरा हाथे डाल डलरिया..., माटी खने चलली कवन देई हो दइया रे दइया... हल्दी गीत हमरी दुलारी बेटी सुकुमारी हो... चुमावन, कोहबर, सहाना, जोग, इमली घोंटाई, माड़ो, गुरहथनी, पाणिग्रहण, सिन्दुर बहोराई के गीतों के साथ विदाई के गीत हमरी दुलारी रे बेटी आंखी के पुतरिया... ससुराल में कन्या के प्रवेश के समय गाये जाने वाले गीत दुलहिनिया धीरे चल... तथा नकटा गीत सनन सनन पंखा डोलेला सारी रतिया... सुनाया। 


लोक संस्कृति शोध संस्थान की सचिव सुधा द्वि़वेदी ने बताया कि सांस्कृतिक संवाद की साप्ताहिक श्रृंखला में चार अक्टूबर को संगीत मर्मज्ञ डा. शरदमणि त्रिपाठी तथा आने वाले दिनों में लोक साहित्य, कला व संस्कृति की ख्यातिलब्ध विभूतियां लोगों से रूबरू होंगी।
 


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