रावण वध श्री राम को नहीं अब हम सबको करना है


राम और रावण यानि अच्छाई और बुराई हर किसी में है , यहाँ तक कि रावण के मन में भी राम है!!

 

               बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक दशहरा पर्व। इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने लंकापति रावण का घमंड चूर-चूर कर उसका नाश किया था। अहंकारी रावण न सिर्फ खुद अपने विनाश का कारण बना, बल्कि अपने कुल का भी खात्मा कराया।

              यह सब तब हुआ जब रावण न सिर्फ प्रकांड पंडित था, बल्कि उच्च कोटि का विद्वान भी था, लेकिन माता सीता के हरण की उसे ऐसी सजा मिली कि उसके कुल का नाश हो गया। हम आज भी बुराई के प्रतीक रावण, उसके भाई कुंभकर्ण और पुत्र मेघनाद का पुतला दहन कर बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाते हैं, वहीं दूसरी ओर हमारे समाज में आज भी सैकड़ों बुराइयां हैं, जो किसी रावण से कम नहीं हैं।

 

"राम तुम्हारे युग का रावण अच्छा था

दस के दस चेहरे सब “बाहर” रखता था

क्यों ना आज अपने ही भीतर झांका जाय,

एक तीर अंदर के रावण पर भी चलाया जाय !!”

 

           दशहरे पर नाभि में भगवान राम का अग्निबाण लगने से पूर्व जब रावण का पुतला अप्रहस करता है तो शायद हम पर यही व्यंग्य करता है कि कब तक मेरी ही बुराइयों को जलाते रहोगे, अपनी बुराइयों को खत्म करोगे तब ही शायद मेरी पराजय का सच्चा जश्न मनेगा।

              दुनिया के अनेक देश आज भी आतंकवाद से जूझ रहे हैं। आए दिन कहीं न कहीं आतंकवादी वारदातें होती रहती हैं। इनमें हजारों लोगों के जान गंवाने के बाद भी आतंकवाद पर नकेल नहीं कसी जा सकी है। विजय दशमी यानि बुराई पर अच्छाई की जीत। कहते हैं कि एक राम और एक रावण हम सबके अंदर होता है। कभी राम यानि अच्छाई जीतती है तो कभी रावण की बुराई। हमारा ऐसा ही कुछ सवाल है आप सबसे कि इस दशहरा पर आप खुद अंदर या आसपास देश में किस रावण रूपी बुराई को जलता देखना चाहते हैं।

             कुशल विद्वान थे रावण - रावण को महान पंडित और राजनीति का कुशल विद्वान कहा जाता था। उस रावण को एक गलती के लिए हम हर साल जलाकर सजा देते हैं, लेकिन हमारे बीच सैकड़ों भ्रष्टाचारी घूम रहे हैं। जिन्हें पहचान कर भी हम सजा नहीं देना चाहते। हम चाहते हैं कि इस दशहरे पर उनके अंदर का रावण जले और रामयुग फिर से आए।

         इर्द गिर्द भी घूमते हैं रावण- हम रावण के पुतले तो हर साल जलाते हैं, लेकिन कितने ही रावण हमारे इर्द गिर्द पल रहे हैं। जो मासूम लड़कियों के साथ दुष्कर्म जैसी वारदातों को अंजाम देते हैं। अब हर माता-पिता को अपने आप से वायदा करना चाहिए कि वह अपनी बेटियों को शिक्षित करने के साथ आत्मरक्षा के लिए भी तैयार करेंगे।

          कर्मो में लाए मर्यादा- हम चाहे कितने ही रावण जला लें, लेकिन हर कोने में कुसंस्कार और अमर्यादा के विराट का रावण रोज पनप रहे हैं। रोज सीता के देश की कितनी सीता सरेआम उठा ली जाती हैं। आज देश में कहां जलता है असली रावण। जलती है सिर्फ मासूम की चिताएं। कर्मो में आदर्श और मर्यादा लाने से असत्य पर सत्य की जीत होती है।

         संकल्प लेने का है दिन- आज रानी लक्ष्मी बाई, रानी दुर्गावती, सरोजनी नायडू, मटर टेरेसा, कमला नेहरू जैसी विलक्षण प्रतिभाओं के देश में बेटियों का पैदा होना चिंता का विषय बन गया है। जबकि हमे गर्व महसूस करना चाहिए कि बेटों से ज्यादा मां बाप से भावनात्मक रिश्ते बेटियां जोड़ती हैं। इस दिन संकल्प लेना चाहिए कि बेटियों के साथ भेदभाव नहीं करेंगे। तभी सही मायनों में हमें रावण रूपी बुराई को जलाने का हक होगा।


 

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