कबिता

कबिता



अपना अषाढ़ है


अपना अपना
सावन है अब,
सबका अब अपना अषाढ़ है!


मेरे घर 
सूखा सूखा है
बारिश में भी बंजर आॅगन,
और तुम्हारे
घर में जैसे
हरा भरा उतरा है सावन,
कभी दाॅत तो
चने नहीं हैं
कभी चने तो नहीं दाढ़ है !


हम तो फॅसे
बाढ़ बूड़े में
उनकी दसों अॅगुलियाॅ घी में,
उनका सुदी पक्ष-
होता है
जब होते हम सभी बदी में,
उनकी हरियाली की
जड़ में
अपना सूखा और बाढ़ हैक् !


जय लक्ष्मीनारायण-
है अब
बैठ अकेले खुद के खाये,
अपने हाथों
जगन्नाथ हैं
कौन किसे क्यों भोग लगाये,
चोर चोर
मौसेरे भाई
का रिश्ता खासा प्रगाढ़ है !



रबिशंकर पान्डेय


इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सबसे बड़ा वेद कौन-सा है ?

कर्नाटक में विगत दिनों हुयी जघन्य जैन आचार्य हत्या पर,देश के नेताओं से आव्हान,