बड़ा रचनाकार वह होता है, जो किसी का अनुकरण नहीं करता है: डाॅ. सदानन्दप्रसाद गुप्त



लखनऊ। मंगलवार 24 नवम्बर को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा फणीश्वरनाथ रेणी जन्मशताब्दी समारोह का आयोजन गूगल मीट के माध्यम से किया गया। संगोष्ठी की अध्यक्षता डाॅ. सदानन्दप्रसाद गुप्त, मा. कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा की गयी। संगोष्ठी में सम्मानित अतिथि के रूप में डाॅ. कलानाथ मिश्र, पटना, डाॅ. हरीश कुमार शर्मा, कपिलवस्तु एवं डाॅ. योगेन्द्र प्रताप सिंह, प्रयागराज उपस्थित रहे। 
 अभ्यागतों का श्रीकांत मिश्रा, निदेशक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने करते हुए कहा - उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा हिंदी दिवस 14 सितम्बर, 2020 से आनलाइन संगोष्ठी का आयोजन निरन्तर किया जा रहा है। हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के अन्तर्सम्बन्ध विषय पर चर्चा करने हेतु सुप्रसिद्ध विद्वान डा बलवन्त भाईजानी एवं डा सुरेन्द्र दुबे कृपापूर्वक पधारे थे। दिनांक 3 अक्टूबर, 2020 को हमने आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का स्मरण किया तो भारतीय संविधान के वैशिष्ट्य पर भी विद्वान वक्ताओं के विचारों से लाभान्वित हुए। हिंदी संस्थान के प्रथम कार्यकारी उपाध्यक्ष आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के विविधवर्णी रचना संसार पर चिंतन मनन हुआ।
इसी बीच हिंदी संस्थान द्वारा चिकित्सा विज्ञान के अन्तर्गत प्रकाशित एवं किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डा विनोद जैन द्वारा तैयार की गयी पुस्तक ‘ट्रामा, उपचार, बचाव और प्रबन्धन’ पुस्तक का लोकार्पण चिकित्सा विश्वविद्यालय के ऐतिहासिक ब्राउनी हाल में हुआ, जिसमें संस्थान के माननीय कार्यकारी अध्यक्ष के साथ साथ चिकित्सा विश्वविद्यालय के वी.सी., लेखक डा विनोद जैन, डा समीर मिश्र सहित चिकित्सा क्षेत्रा के अनेक विद्वान उपस्थित रहे। विशिष्ट अतिथि के रूप में मैंने व डा अमिता दुबे ने प्रतिभाग किया।
हम सभी परिचित हैं कि यह वर्ष कालजयी आंचलिक उपन्यास ‘मैला आंचल’ के रचनाकार फणीश्वरनाथ रेणु का जन्मशताब्दी वर्ष है, उनको सादर नमन करते हुए आज हम उनके रचनात्मक व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों पर चर्चा करने के लिए आनलाइन संगोष्ठी का आयोजन कर रहे हैं।
इस संगोष्ठी में विद्वान वक्ता के रूप में पधारे डा कलानाथ मिश्र, पटना, डा हरीश कुमार शर्मा, कपिलवस्तु, डा योगेंद्र प्रताप सिंह, प्रयागराज का स्वागत करते हुए हम अत्यन्त अह्लाद का अनुभव कर रहे हैं। आशा ही नहीं पूर्णविश्वास है कि डा सदानन्दप्रसाद गुप्त जी की अध्यक्षता में आयोजित इस संगोष्ठी के माध्यम से हम रेणुजी के व्यक्तित्व कृतित्व के अनछुए पक्ष से परिचित होंगे, आप सभी को शुभकामनाएं।
सम्मानित अतिथि के रूप में उपस्थित डाॅ. कलानाथ मिश्र रेणु के उपन्यासों पर चर्चा करते हुए कहा - रेणु जी का रचना फलक व्यापक है। उनकी कहानियों में विराट संसार की झांकी दिखायी पड़ती है। रेणु अपनी पहली रचना से ही प्रसिद्ध हो गये। ‘मैला आँचल’ में वे अपनी रचनाओं स्वयं को ढूढते हैं। रेणु के उपन्यासों में ग्रामीण अंचल का जीवन परिलक्षित होता है। मैला आंचल जनमानस से जुड़ा उपन्यास है, जिसमें लोक गीतों के माध्यम से सहजता से विषय को समझा जा सकता है। रेणु जी लोकमानस के लिए एक वातावरण व परिवेश पाठक के लिए तैयार करते हैं। लोकगीतों में जीवन मूर्त रूप पाता है। समाज को जानने के लिए साहित्य में गोता लगाना होता है। रेणु की रचनाओं में पात्रा कथानक के अनुकूल हैं। मैला आंचल को आंचलिक उपन्यासों में सर्वश्रेष्ठी स्थान मिला। रेणु स्वाभिमानी लेखक थे।
सम्मानित अतिथि के रूप में उपस्थित डाॅ. हरीश कुमार शर्मा ने रेणु की कहानियों पर बोलते हुए कहा - रेणु जी अंचल को देखने की अनूठी शैली के कारण जाने जाते हैं। उनकी रचनाएं पाठक का ध्यान केन्द्रित करने में सक्षम हैं। मनुष्य लोक संस्कृति उनका आदर्श था। वे आमजन के जीवन के रस की खोज करते हैं और उनको अपनी रचनाओं में रचते हैं। वे साम्यवादी व्यवस्था की आलोचना अपनी कहानियांे में करते हैं। वे बड़े रचनाकार इसलिए हैं  िकवे समाज के हर वर्ग को रचनाओं में समाहित करते हैं। उनकी कहानियों के विषय विविध हैं, अंध विश्वास की आलोचना करते है, चोट करते हैं। रेणु को पढ़ने के लिए  हमें पूर्वग्रह से दूर रहना होगा। कहानियों में स्त्रिायों, पुरुषों से ज्यादा मुखर दिखती है। सम्मानित अतिथि के रूप में उपस्थित डाॅ. योगेन्द्र प्रताप सिंह ने कथेत्तरर गद्य पर विचार व्यक्त करते हुए कहा - रेणु जी का कथेत्तर गद्य की प्रेरणा अकाल रहा है। रेणु ऐसे रचनाकार हैं, जिनकी भाषा पाठकों को अभिभूत करती है। पाठक स्वतः पढ़ने के लिए खिंचा चला आता है। कथेत्तर गद्य को सृजनात्मक गद्य की संज्ञा दी गयी है। कथेत्तर गद्य की अपनी अलग विशिष्टता है। कथेत्तर गद्य में रेणु जी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही है। रेणु जी आंचलिक कथाकार के रूप में प्रसिद्धि पाते हैं। आंचलिकताा उनकी विशेषता रही लेकिन उनकी रिपोर्ताज में किया गया कार्य कम सराहनीय नहीं है। उनके उपन्यासों में रिपोर्ताज का कोलाज दिखायी पड़ता है। उनकी रचनाएं लोगों के हृदय में सहजता से उतर जाती हैं। उनकी रचनाओं में सामाजिक परिवेश का समुचित चित्राण मिलता है। रेणु की रचनाधर्मिता साहित्य को सर्वोच्चता प्रदान करने में सक्षम है। रेणु की रचनाएं मानव मन की संवेदना को अभिव्यक्ति करते में पूर्णतया सक्षम है। उन्होंने पत्राकारिता जगत को भी एक सशक्त मार्ग दिखाया। रेणु की रचनाओं में लोकजीवन का प्रतिबिम्ब दिखायी देता है। 
अध्यक्षीय सम्बोधन में डाॅ. सदानन्द प्रसाद गुप्त, मा. कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने कहा - रेणु जी आत्मीय रचनाकार लगते हैं। ‘लालपान की बेगम’ कहानी में रेणु जी ने काफी रोचकता प्रदान की है। रेणु जी केा संगीत व लोक गीतों का काफी ज्ञान था। मैला आंचल में संवादों के साथ परिवेश को पकड़ा है। रेणु जी ने शब्दों के माध्यम से कहानियों, उपन्यासों में जीवतंतता प्रदान की। ऋणजल धनजल, का कथेत्तर गद्य में महत्वपूर्ण स्थान है। रेणी जी की भाषा निर्मल वर्मा ने अपने निबन्ध कला का जोखिम में रेणु जी के लिए सुन्दर उद्धरण दिया है। रेणु की भाषा परिवेश में जीवंतता वे भाषा के प्रति सजग रहे हैं। उनकी रचनाओं में मुहावरों व लोकोक्तियों का अधिक प्रयोग हुआ है। उनके आलोचक लगाते रहे हैं। प्रादेशिक भाषा में इतना भाव भर देना रेणु जी की सफलता है। रेणु भाषा व शब्दों के माध्यम से रेणु पाठकों को सहज रूप् से समझाने में समर्थ है। उनकी रचनाओं में प्रयुक्त शब्द सामाजिक बोध पैदा करते हंै। अंचल भाषा का प्रयोग कथा को रोचक बना देता है। ‘लालपान की बेगम’ की कहानी सामाजिक, सांस्कृतिक बोध का अनुभव करती है। रेणु की भाषा ही उनकी रचनाओं को और रोचकता प्रदान करती है। रेणु की रचना दृष्टि व्यापक है। लोकगीतों का प्रयोग करते हुए कथन, उद्धरण बेजोड़ है। वे पात्रों के साथ एकाकार हो जाते हैं। बड़ा रचनाकार वह होता है जो, किसी का अनुकरण नहीं करता है। 
अभ्यागतों का स्वागत श्री श्रीकांन्त मिश्रा, निदेशक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा किया गया तथा संचालन डाॅ. अमिता दुबे, सम्पादक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने किया। 


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