भारतीय संस्कृति में गोपाष्टमी और गौ का महत्व 

गोपाष्टमी पर्व पर विेशेष- 



भारतीय संस्कृति में गोपाष्टमी और गौ का महत्व 



मृत्युंजय दीक्षित 
भारतीय सनातन संस्कृति में हर पर्व का अपना एक विषेष महत्व है। उसी कड़ी में कार्तिक षुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। यह दिन गायों ,गुरू और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने का दिन है। मान्यता है कि गोपाष्टमी की पूर्व संध्या पर गाय का पूजन करने वाले लोगों को एक खुषहाल जीवन और अच्छे भाग्य के साथ  सुख समृद्धि का आषीर्वाद मिलता है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोचर लीला प्रारम्भ की थी। जब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी माता से गौसेवा करने की इच्छा व्यक्त की तो माता यषोदा ने उन्हें अनुमति नहीं दी लेंकिन बाल हठ के कारण उन्होंने षांडिल्य से इसका मुहूर्त निकलवाया  और यह मुहूर्त था कार्तिक षुक्ल पक्ष की अष्टमी । तभी से यह पर्व गोपाष्टमी के रूप में प्रचलित हो गया। हिंदू परम्परा और गोपाष्टमी के पर्व के अवसर पर गाय की पूजा के साथ गौ रक्षक ग्वाला को भी तिलक लगाकर मीठा खिलाया जाता है। 
गोपाष्टमी के पर्व पर गाय, बैल और  बछड़ों को स्नान कराकर उन्हें आभूषण पहनाकर सजाया जाता है। उन्हें चारा और गुड़ खिलाकर पैर छूकर परिक्रमा करने का महत्व है।  भारतीय संस्कृति में गौ पूजन का अत्यंत पवित्र महत्व है। भारतीय संस्कृति में  गाय  को माता का स्थान दिया गया है। गाय की पूजा,  परिक्रमा  व स्पर्ष स्वास्थ्य, आध्यात्मिक व आर्थिक उन्नति की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।  गाय को श्रद्धापूर्वक सहलाते रहने से कुछ माह में असाघ्य रोग भी ठीक हो जाते हैं। यूरोपियन देषों में गोथेरेपी का प्रचलन भी  काफी बढ़ गया है। भारतीय मनीषियों ने सम्पूर्ण गोवंष को  मानव के अस्तित्व रक्षण , पोषण विकास और संवर्धन के लिए अनिवार्य बनाया और बताया है। गाय के  दूध ने भारतीय समाज को ही नहीं अपितु पूरे विष्व को  षक्ति ,बल व सात्विक बुद्धि प्रदान की है। गोबर च गोमूत्र की खेती के लिए पोषक है साथ ही रोगाणुनाषक ,विषनाषक व रक्तषोधक भी है। 
मानव समाज के लिए समृद्धि गाय की समृद्धि से जुड़ी है। गोपालन भारतीय जीवनषैली व अर्थव्यवस्था का सदैव केंद्र बिंदु रहा है। हमारी आर्य संस्कृति के अनुसार अर्थ, धर्म ,काम और मोक्ष इन चारों पुरूषार्थे के साधन का मूल हमारी सर्वदेवमयी गोमाता है। वेदों में गौ की बडी महिमा बतायी गयी है और उसे अघ्न्या बताया गया है। अथर्ववेद में पूरा गोसूक्त है। उपनिषदों में गोमहिमा है। महाभारत , रामायण ,पुराण और स्मृतियों में  गोमहात्म्य भरा पड़ा है। गाय के रोम- रोम में देवताओें का निवास माना गया है। भारतीय संस्कृति ,साहित्य  व धामिक ग्रंथों मेें गोपूजा, गोभक्ति और गोमंत्र आदि से महान लाभ बताये गये हैं। गौमाता सभी प्रकार से  अभ्युदय करती है और  परलोक मे वैतरणी से पार करती है। गोसेवा भारतीय सस्कृति है और धार्मिक कर्तव्य है। गोसेवा और गोवंष  की उन्नति भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं।  सभी धर्मावलंबियों के लिए गोरक्षा धार्मिक दृष्टि से मुख्य कर्तव्य है। भारत में अति प्राचीनकाल से बडे-़ बडे़्र महापुरूषों द्वारा गोसेवन और गोपालन होता चला आ रहा है। आज भी यह प्रचलन अनवरत जारी है। रघुवंषी महाराज दिलीप गौ के लिये अपने प्राण देने को तत्पर हो गये थे। भगवान श्रीराम ने दस खरब गायें विद्वनों को विधिपूर्वक दान की थीं। भगवान श्रीकृष्ण का जीवन गो सेवा मंे बीता। द्वारका में वह प्रतिदिन 13 हजार चैरासी गायों का दान करते थे। गाय को अब भी लोग गोध नही कहते है लकिन यह अत्यंत दुर्भाग्य की बात है कि मुगलों व अंग्रेजों की लंबी परतंत्रता के बाइ जब हम भारतीयों को नागरमिकता मिली उसके बाद भी हम लोग अपनी ही सनातन संस्कृति को पूरी तरह से ही भूल बैठे हंै। 
    भारत जैसे महान देष में  आज गोवध व गोतस्करी का घृणित पाप बहुत ही तीव्रगति से चल रहा है।  उप्र से लेकर असम तक और बिहार से लेकर बंगाल तक गायों की तस्कारी बेधड़क हो रही हेै। यह महापाप तब किया जा रहा है जब हम लोग गाय को माता की तरह पूजनीय मानते हैं और गोपाष्टमी जैसा महापर्व मनाते हैं।  भारत में गौहत्या पर बहुत कुछ लिखा गया है। कई राज्य विधानमंडलों ने  कानून बना रखे है। जिसमें सबसे कड़ा कानून उप्र मेे बनाया गया है। प्रदेष सरकार इस बार गोपाष्टमी के दिन एक अभिनव प्रयोग करने जा  रही है सभी गो आश्रय स्थलों में गोपाष्टमी पर्व का आयोजन किया जा रहा है। इस दिन पषु स्वास्थ्य परीक्षण का विषेष कार्यक्रम भ्ी आयोजित किया जायेगा। सभी गो आश्रय स्थलों में संरक्षित गोवंष का खुरपका- मुंहपका का टीकारण किया जायेगा। गोवंष को षीतलहरी से बचाव के लिए  विषेष पाय किये जा रहे हंै। प्रदेष में गोवध व तस्करी को रोकने लिए प्रदेष सरकार अवैध बूचड़खानों को बंद करा रही है जिसकेे चलते गोमांस की बिक्री पर कुछ सीमा तक रोक लगी है। प्रदेष के मुख्यमंत्री बहुत ही ड़ी गोभक्त हैं तथा वह प्रतिदिन गायों की हर प्रकार से सेवा करते हैं। उसके बाद ही उनकी दिनचर्या प्रारम्भ होती है। मध्यप्रदेष और हरियाणा की सरकारें भी गोवंष की सरुक्षा के लिए कदम उठाती रहती हैं। अगर पूरा हिंदू समाज जाग्रत होकर गोवंष की सुरक्षा का ंकल्प ले तो वह दिन दूर नहीं जब भारत में एक बार फिर दूध की नदियां न बहने लग जायें और सभी को भरपूर पौष्टिक आहार मिल सके।
गोपाष्टमी के दिन कम से कम सभी हिंदुओं को गाय को दो रोटी और  गुड तथा केले का आदि का सेवन कराकर उनका आषीर्वाद लेकर उनकी सुरक्षा का संकल्पा लेना चाहिये। देषभर में गोवध और गोतस्करी पूरी से बंद हो यही गोपाष्टमी जैसे महान पर्व का संकल्प होना चाहिये। 


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