बिहार प्रदेश के पर्यटक स्थल

पटना दुनिया के उन सबसे पुराने शहरों में शामिल है जो निरन्तर आबाद है कभी सूने नहीं हुए, 490 वर्ष ईसा0 पूर्व से लेकर यह सब आज तक वजूद में रहा है।
पटना काफी कुछ बदल गया है कि पिछले कुछ वर्षों में नहीं बदला है तो गोलघर। इसका आकर्षण लोगों में पहले जैसा ही है। करीब एक करोड़ लोगों की जान लेने के बाद यह विशाल अन्न भण्डारण गृह 1786 में अंग्रेजों के द्वारा बनाया गया था। गोलघर बेतहरीन स्थापत्य कला का नमूना है, इसका निर्माण स्तूप की तरह किया गया है जिसमें खम्भे नहीं है और चक्करदार सीढ़ियां ऊपर की ओर जाती है। कहा जाता है कि गोलघर के दरवाजों के निर्माण में भयानक गलती होने के चलते इसे उस मकसद के लिए इस्तेमान नहीं किया जा सका जिसके लिए इसे बनाया गया था, इससे क्या फर्क पड़ता है। आज भी जो पर्यटक बिहार आते है उनका एक पड़ाव गोलघर हुआ करता है। हजारों लोग प्रतिदिन इसकी सीढ़िया चढ़कर पटना का सौन्दय देखने को आतुर रहते है। सरकारी उपेक्षाओं के बावजूद यह स्थल प्रतिमाह लाखों की कमाई करता है।
पटना से आगे बढ़ने पर हमें गया मिलता है जो ‘धमारू (एक पवित्र स्थल माना गया है)। गया के एक ओर प्रस्थशिल पहाड़ है जो गया की रक्षा करता है किवंदती है कि इस पहाड़ पर एक राक्षस गया रहा करता था, यह राक्षस लोगों के दुख को देख कर द्रवित हो उठा और उसने भगवान विष्णु से लोगों की सेवा करने की इच्छा जतायी। इसके पश्चात् भगवान विष्णु ने उसे वरदान दिया कि वो दूसरों के पापों को हर सकता है। गया शहर का नाम उसी राक्षस पर पड़ा है और आज ये शहर जो पटना से 100 किमी0 की दूरी पर अवस्थित है हिन्दू और बुद्धिष्ठों का पवित्र स्थल आज भी हिन्दू अपने पूर्वजों को मृत्यु के पश्चात् पिण्ड दान करने गया जाते है। ताकि उनके द्वारा किसी भी बुरे कार्य यदि किये गये हो तो उससे उन्हंे मुक्ति मिल सके।
गया के आगे एक फलगू नदी है इस नदी की विशेषता यह है कि नदी का जल बाहर से दिखाई नहीं पड़ता। जल जो बालू में दबा होता है को निकालने के लिए खुदाई करनी होती है। गया शहर के पास ही तीन किलो0 क्षेत्र में अवस्थित बुद्ध स्थल में बौधी पेड़ है जहाँ भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। प्रत्येक वर्ष देश-विदेश से लागों व्यक्ति यहाँ बौधि पेड़ को देखने ही नही बल्कि साधना करने भी आते है। गया में ही एक और प्रसिद्ध तीर्थस्थल, विष्णुपद मन्दिर अवस्थित है। यहाँ अनेक लोग दर्शन के लिए आते हैं।
गया से पटना की ओर चलने पर हमें अहरौली का दर्शन होता है जो बक्सर में स्थित है। यहाँ देवी अहिल्या की मन्दिर है। कहाँ जाता है कि देवी अहिल्या गौतम ऋषि की पत्नी थी। अब हम उत्तर बिहार की ओर बढ़ते है तो पाते है कि सीवान शहर से 21 किमी0 की दूरी पर हसनपुरा जो घनाई नदी के किनारे बसा है। यह स्थल हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति का उपासक माना है। मकदूम सैय्यद हसन चिश्ती, जो एक अरब व्यापारी थे, हसनपुरा की संस्कृति से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंनें यहीं बस जाने का फैसला किया और उन्हांेने एक ‘खनकां’ (धार्मिक संस्था) की स्थापना की जो बाद में मुस्लिम और हिन्दुओं को सामान्य रूप से आकर्षित करने लगी। इस हसनपुरा में हजारों मस्जिद के अंश दिखाई पड़ते है। आज भी हजारों लोग प्रतिवर्ष मेले में हसनपुरा जाकर हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति को पल्लिवित करते है। 
चम्पारण की ओर बढ़ने पर हमंे सहसा स्वतन्त्रता आन्दोलन की याद आती है। महात्मा गाँधी ने चम्पारण की धरती पर अपने आन्दोलन को एक नई दिशा दिया। जब उन्होंने अंगे्रजों द्वारा किसानों के खिलाफ (नील की खेती करने वालों) संघर्ष का शंखनाद किया जो बाद में जाकर सम्पूर्ण देश मंे स्फटित हुआ।
उतर बिहार के वैशाली जिले में एक स्थल है ‘रामचूरा’। कहा जाता है कि भगवान राम ने जनकपुर जाने के रास्ते में रामचूरा में विश्राम किया था। आज भी रामचूरा के एक पहाड़ पर भगवान राम के पदचिन्ह दिखाई पड़ते है। प्रतिवर्ष यहां एक विशेष अवसर पर यहां मेले का आयोजन होता है और हजारों लोग यहाँ आकर पूजा और अर्चना करते है।
इन सबके अलावा बिहार में जो मौर्य, गुप्त, पलास (पांचवी सदी से ग्यारहवीं सदी तक) अनेक पर्यटक स्थल है जिसमें पावापुरी, नालन्दा और राजगीर प्रमुख है। यह क्षेत्र जैन और बौद्ध धर्मावलम्बियों का पवित्र स्थल रहा है। राजगीर में आज भी लोग जरासंघ का अखााड़ा देखने आते है, कहा जाता है कि इसी अखाड़े में जरासंघ और कृष्ण का मल्ल युद्ध हुआ था। नालन्दा में विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी।
पटना से सटे ही पटना साहिब गुरू गोविन्द सिंह की स्थली रही है। उनके जन्मदिवस पर प्रत्येक वर्ष हजारों की संख्या में सिक्ख समुदाय के लोग गुरूद्वारे में अपना माथा टेकने आते है। साथ ही वैशाली में जहाँ पहली बार जनतन्त्र का प्रयोग किया गया था लोग उस प्रणाली के बारे में जानने के लिए आते रहते है।


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