नोर बहुत है
नोर बहुत है
नहीं संभले सोचकर कि दौर बहुत है
लगता था इस नदी का कोर' बहुत है (किनारा )
नादान बने रहते है अंजान बनकर
अंदर से महसूस होता लोर' बहुत है (ज्ञान )
बेबात उन्हें आहटों से लगाव हो गया
क्या हुआ आज गली में शौर बहुत है
आपस में बैर होने लगे आजकल
लड़ते लोग यकींन कमजोर बहुत है
क्यों नहीं दिखती चेहरों पर हँसी
लोग तनाव में घिरे सबओर बहुत है
हाथों की लकीरें भी गैर सी रही क्यों
लगता है इस ज़माने में चोर बहुत हैं
नहीं बदली कभी तक़दीर अपनी
लगता है हालात में ज़ोर बहुत है
निकल ही नहीं पाए अंधेरों से कहीं
बड़े भ्रम थे बने हुए कि भोर बहुत है
चलना भी मुमकिन लगता नहीं अब
सब पथरीले रास्तों पर टोर' बहुत है (पहाड़ी )
क्यों तुम मायूस हो जाते हो "उड़ता"
क्यों लिखते हुए नैन विभोर बहुत है
बातों को तेरी समझती नहीं दुनियां
वैसे तेरी गुफ़्तगू में नोर' बहुत है (मतलब )
सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता"