श्रीनाथजी के दर्शन खुले ऑनलाइन बुकिंग चालू, बाहरी दर्शनार्थियों पर 350/- सेवा शुल्क तय

श्रीनाथजी के दर्शन खुले  ऑनलाइन बुकिंग चालू, बाहरी दर्शनार्थियों पर 350/- सेवा शुल्क तय


 पुष्टिमार्गीय वैष्णव संप्रदाय की सबसे बड़ी पीठ श्रीनाथजी के दर्शन के लिए बाहरी श्रद्धालुओं को शुल्क देना होगा। यह शुल्क एकबारगी ही तय किया गया है। दूसरी या अधिक बार दर्शन करने के लिए उनसे किसी तरह का शुल्क नहीं लिया जाएगा। इसके लिए उन्हें रजिस्टर्ड नंबर दिया जाएगा, जो दर्शन के लिए ऑनलाइन आवेदन करते समय भरना होगा। लंबे समय बाद बुधवार से बाहरी श्रद्धालुओं को पहली बार श्रीनाथजी के दर्शन का लाभ मिला। चार दर्शनों में कुल 2400 श्रद्धालुओं को मंदिर में ऑनलाइन आवेदन के बाद प्रवेश मिला। जिनमें बारह सौ श्रद्धालु बाहरी और अन्य बारह सौ नाथद्वारा नगर पालिका व नजदीकी गांव क्षेत्र के थे।


बाहरी श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए आवेदन करने पर मंदिर मंडल प्रबंधन ने एकबारगी शुल्क लिया जाएगा। जिसकी दो कैटेगरी बनाई गई हैं। पहली कैटेगरी श्रीजी दर्शनचरण कार्ड की है, जिसका शुल्क साढ़े तीन सौ रुपये प्रति दर्शनार्थी है। वहीं, दूसरी कैटेगरी जो आम दर्शन के हैं, उसका शुल्क पचास रुपये प्रति दर्शनार्थी तय किया गया है। अब तक बाहर के 1343 वैष्णव पंजीयन करवा चुके हैं। इनमें 50 रुपये में 676 और 350 रुपये वाले श्रीजी चरण कार्ड में 667 वैष्णवाें ने पंजीयन करवाया है। इसी तरह ऑफलाइन पंजीयन में 9946 शहरवासी तथा 11 गांवाें के श्रद्धालुओं का पंजीयन हुआ है। जिन्हें कंप्यूटराइज्ड फोटोयुक्त पास जारी किए गए हैं।


उल्लेखनीय है कि श्रीनाथजी के दर्शन काेराेनाकाल के चलते 24 मार्च से बंद थे। पिछले दिनों मंदिर मंडल ने नाथद्वारावासियाें तथा शहर के पिनकाेड नंबर वाले 11 गांवाें के श्रद्धालओं काे 19 से 27 अक्टूबर तक दर्शन करवाकर ट्रायल किया था।


माना जाता है, श्री वल्लभाचार्य जी को ही गोवर्धन पर्वत पर श्रीनाथ जी की मूर्ति मिली थी। इस संप्रदाय की प्रसिद्धि समय के साथ बढ़ती गई। पहली बार वल्लभाचार्य के द्वितीय पुत्र विट्ठलनाथ जी को गुंसाई (गोस्वामी) पदवी मिली तब से उनकी संताने गुसांई कहलाने लगीं। विट्ठलनाथ जी के कुल सात पुत्रों की पूजन की मूर्तियां अलग-अलग थीं। वैष्णवों में यह सात स्वरूप के नाम से प्रसिद्ध हैं। गिरिधर जी टिकायत (तिलकायत) उनके ज्येष्ठ पुत्र थे। इसी से उनके वंशल नाथद्वारे के गुसांई जी टिकायत महाराज कहलाने लगे। श्रीनाथ जी की मूर्ति गिरिधर जी के पूजन में रही।


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