दंश दे गया वर्ष 2020

वर्ष 2020 मेरे लिए ही क्या सभी के लिए पूरे विश्व में एक नया अनुभव रहा| जीवन के अनेक उतार-चढ़ाव के वातावरण में 3 महीने किस कदर पूरे विश्व में रहे यह किसी से छुपा नहीं है| जनजीवन एकदम ठप्प हो गया| सारे कामकाज बंद हो गए| सड़के वीरान हो गई |अपनो को देखने के लिए लोग तरस गए| दूसरी तरफ उद्योग धंधे बंद हो गए| मजदूरों का पलायन शुरू हो गया| सड़कों पर पैदल ही अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए जो मशक्कत मजदूरों ने की वह सदियों तक हमारी पीढ़ी के लोगों को स्मृति में रहेगा|एक मशहूर साहित्यकार ने कहा है कि मंजिलों से बेहतर लगने लगे रास्ते निकल पड़े हम मौत से लड़ने जिदंगी के वास्ते चिकित्सा सुविधाएं बंद हो गई| धीरे धीरे सभी चीजों का वैसे तो उपयोग कम था, पर जीवन यापन को चलाने के लिए दवाइयां या किराने के सामान की कमी खलने लगी थी, परंतु प्रशासन और शासन की सजगता से ईमानदारी से वह आपूर्ति जन जन तक मुहिम कराने की जो मशक्कत थी वह भी काबिले तारीफ है l कुछ विभागों ने और व्यापारियों ने व समाजसेवियों ने अपनी मानवता की कर्तव्यनिष्ठा की व समाज के प्रति जिम्मेदारी का जो उदाहरण पेश किया वह देखने दिखाने लायक था |जिस पुलिस की छवि बहुत खराब थी वह मानवता पूर्ण कार्य कर रही थी| राशन ,दवाइयां सब की सब आपको आपके गंतव्य तक पहुंचाने के तीनों लोग पूर्ण प्रयासरत थे |यहां तक की सड़क पर जीवन यापन करने वाले नागरिक व 2 जून की रोटी कमाने वाले लोगों को जब भूख सताने लगी तो समाज के अनेक समाजसेवियों ने बढ़-चढ़कर ऐसा काम किया जो सदियों तक समाज सेवा का सर गर्व से ऊंचा करेगा| कहा जा सकता है आज भी भारत में दानवीर कर्ण जैसे लोग हैं ।कहते है कुछ तंत्र एसे होते है जो कभी नही सुधरते ,आज फिर सरकारी तंत्र अपने पुराने ढ़रेॅ पर है ।कहते हैं अगर नकारात्मक नहीं होता है तो सकारात्मक का जन्म या अर्थ नहीं रहता है| ऐसे में जो मजदूर नौकरी छोड़कर अपने गंतव्य स्थान को आ रहे ,आए हैं उन्हें एक तरफ अपने पारिवारिक लोगों के साथ रहने का व साथ बैठने का और रूखी सूखी खाने का मौका तो मिल गया परंतु कहीं ना कहीं आर्थिक रूप से वह अपने आप को बहुत कमजोर मान रहा है| मजदूरों के पलायन के बाद उद्योग धंधों की स्थिति भी कमजोर हो गई| पूरा विश्व ही आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है |ऐसे में भारत कैसे अछूता रहता यहां पर तो रोज कमाने और रोज खाने वाली परंपरा है| ऐसे में तीन तीन शिफ्ट चलने वाली फैक्ट्रियां 1 शिफ्ट में और कई कई मशीनों पर काम होने वाली फैक्ट्रियों का सीमित संख्या में काम शुरू हो गया| ऐसे में मजदूर के साथ व्यापारिक और आम जनमानस भी आर्थिक संकट का आज के दिन सामना कर रहा है। भारत के रोजमर्रा काम करने वाले रेहडी वाले, रिक्शेवाले, प्राइवेट नौकरी करने वाले, फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूर यहां तक दुकान चलाने वालों से लेकर फैक्ट्री चलाने वाले तत्वों की स्थिति बहुत ही गंभीर है| इस विषय में हम अपनी अगली पोस्ट में चर्चा करेंगे कि किसने क्या खोया और कैसे इसकी भरपाई हो पाएगी ।कोविड 19 ने व्यापारिक चाल चलन को बदल दिया |कुछ व्यापार चलन से बिल्कुल बाहर हो गए और कुछ व्यापार नए आयाम स्थापित करने लगे |जैसे इवेंट का या शादी ब्याह का होना, होटलों का पर्यटन उद्योग को अगर नुकसान हुआ है तो दूसरी तरफ ऑनलाइन बिजनेस है, चिकित्सा क्षेत्र नए उपकरण, व दवाइयों के क्षेत्र में ,ट्रांसपोर्टेशन के क्षेत्र में काम ने गति पाई है |हालांकि पुराने काम को छोड़कर नए काम को जमाना हिमालय की चोटी पर चढ़ने जैसा कठिन होता है, लेकिन आज की मांग को देखते हुए अब व्यवसाई एक व्यवसाई के साथ दूसरा व्यवसाय या कहिए आय का अन्य साधन भी तलाश रहा है| ताकि आने वाले समय में अगर इस तरह की कोई परेशानी आए तो वह अपने परिवार का लालन पालन कर सके |कारण है सरकारी देनदारी वह बैंक के ब्याज की देनदारी ऐसे समय पर निकालना व्यापारी के लिए समुद्र मंथन की तरह बहुत कठिन हो गया है।पर जब वह दिन नहीं रहे तो यह दिन भी नहीं रहेंगे निश्चित रूप से वर्ष 2021 मे एक नया अध्याय ,एक नई परंपरा ,एक नई पहचान, एक नई पहल एक नए तरीके का व्यापारिक और उद्योग धंधों का चलन शुरू होगा |वापस हम भारत को अपनी हिम्मत से अपनी ईमानदारी से अपनी मेहनत से अपनी लगन से विश्व में एक नया मुकाम देंगे ।2021 हमारे लिए एक नए आयाम एक नई सोच एक नई परंपरा लाएगा और पैदा करेगा जिससे पूर्ण विश्व का कल्याण होगा। राजीव गुप्ता जनस्नेही

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