मेधा पाटकर: सामाजिक आंदोलनोंं की पर्याय

 



वर्ष 2011 के पहले  हम  सब देश की प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर का नाम सुना और पढ़ा ही करते थे. उन्हें देखने और सुनने की लालसा हर वक्त मन में उमड़ती  और घुमड़ती ही रहती थी. आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की स्मृतियों के बहाने यह लालसा भी वर्ष 2011 में पूरी हुई. ऐसी वैसी नहीं पूरी तरह से जैसे आत्मा तरफ  हो जाती है, वैसी ही हुई. इसके लिए फिर हम आदरणीय राम बहादुर राय साहब( अध्यक्ष इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र नई दिल्ली एवं समूह संपादक हिंदुस्थान समाचार, नई दिल्ली) के प्रति ही अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करेंगे. उन्हीं के कहने पर मेधा पाटकर आचार्य स्मृति दिवस में रायबरेली पधारी थी.
हमें याद है, मेधा पाटकर को मुंबई से रायबरेली तक लाने का जिम्मा हमने अपने भांजे पुष्कल मिश्रा को ही सौंपा था. मुंबई से वाया बनारस मेधा पाटकर जी हम लोगों के कार्यक्रम तक पहुंची थी. उनके साथ मैग्सेसे पुरस्कार विजेता श्री संदीप पांडे एवं सीतापुर की सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती रिचा सिंह भी रायबरेली आए थे.
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति रायबरेली ने प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर जी को आचार्य द्विवेदी युग प्रेरक सम्मान समर्पित किया था. आज भी वो टाइम हमारे मन मस्तिष्क पर अंकित है. गैर हिंदी भाषी मेधा पाटकर ने हिंदी के प्रथम आचार्य पर केंद्रित अपना 40 मिनट का संबोधन आचार्य द्विवेदी के अनुयायियों से भरे सभागार में दिया था. आचार्य स्मृति दिवस का यह सातवां आयोजन था आने वाले अतिथि आचार्य द्विवेदी के हिंदी साहित्य हिंदी भाषा के योगदान की ही चर्चा अधिक करते थे. मेधा पाटकर जी ने आचार्य द्विवेदी को एक नए विशेषण से अलंकृत किया था. उन्होंने अपने संबोधन में आचार्य द्विवेदी को भाषा के  परिष्कारक के साथ-साथ अर्थशास्त्री और "समाजशास्त्री" की संज्ञा दी थी. उन्होंने  आचार्य द्विवेदी द्वारा समाज हित में किए गए अन्य कार्यों को भी विशेष रुप से रेखांकित किया था. उनके 40 मिनट तक चले संबोधन को पूरे सभागार में एकाग्र चित्त होकर सुनकर लाभ उठाया था.
मेधा पाटकर को देश और दुनिया में कौन नहीं जानता? देश के सामाजिक आंदोलनों की चर्चा हो और मेधा पाटकर उसमें ना आए ऐसा हो ही नहीं सकता. समाज कार्य के लिए उन्होंने अपने व्यक्तिगत पारिवारिक जीवन को भी तिलांजलि दे दी. अपने जीवनसाथी को भी सिर्फ इसलिए छोड़ दिया कि समाज कार्य में कहीं ना कहीं वह नितांत निजी संबंध उन्हें बाधा महसूस हो रहे थे. नर्मदा बचाओ आंदोलन की संस्थापक सदस्यों में से एक मेधा पाटकर जी को गरीब-गुरबो के लिए न जाने कितनी बार जेल जाना पड़ा. बड़ी से बड़ी ताकतों से टकराना पड़ा लेकिन उन्होंने कभी अपने पांव पीछे नहीं खींचे. 1 दिसंबर 1954 को जन्मी मेधा पाटकर जी प्रतिभाशाली छात्रा रही. नर्मदा से जुड़े आंदोलन में यह उनकी सक्रियता का 35 वां साल है. 1989 में उन्होंने औपचारिक रूप से नर्मदा बचाओ आंदोलन का गठन किया था. तब से लेकर आज तक उनकी लड़ाई नर्मदा के डूब क्षेत्र में आने वाले गांवों और विस्थापित होने वाले गरीबों के पक्ष में जारी है.


ऐसी देश की धरोहर और प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर जी का आज जन्मदिन है..
उन्हें जन्मदिन की हार्दिक हार्दिक हार्दिक शुभकामनाएं..
ईश्वर से प्रार्थना है कि मेधा जी को वह शक्ति प्रदान करें कि गरीबों की हर लड़ाई सफलता के शिखर तक जा पहुंचे..
आप स्वस्थ रहें सुरक्षित रहें यही प्रभु से प्रार्थना है..


इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सबसे बड़ा वेद कौन-सा है ?

कर्नाटक में विगत दिनों हुयी जघन्य जैन आचार्य हत्या पर,देश के नेताओं से आव्हान,