व्यंग्य- नगीना बाबू का स्कूल भ्रमण

नगीना बाबू का स्कूल भ्रमण

 

 

        नगीनाबाबू सेवानिवृत हो चुके थे, काफी समय से स्कूल नहीं गये थे, मन विचलित हो रहा था, स्कूल जैसा सुख घर में कहां? स्कूल में सुनाना पड़ता है और घर में सुनना। वहां बच्चों को डांटते थे और यहां डांट खाते हैं। वहां सुनाने के पैसे मिलते थे और यहां सुनने के लगते हैंं। यह सोचते हुये नगीना बाबू का मन ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी स्कूल के  भ्रमण करने का होने लगा । उन्होंने पद्मासन लगाया, आंखें बन्द की और सूक्ष्म शरीर में निकल लिये सरकारी स्कूल की यात्रा पर। अगले पल वे दो कमरों की प्राथमिक शाला में उपस्थित थे। आधा बरामदा बन्द कर प्रधानाध्यापक महोदय का कक्ष बनाया गया था।जिसमें एक टेबिल और कुर्सी के अतिरिक्त दो कुर्सियों की ही गुंजाइश थी। एक कुर्सी पर प्रधानाध्यापक महोदय बैठे थेऔर दूसरी पर  शिक्षक विद्यानिवास । उनके बीच होने वाला वार्तालाप नगीना बाबू सुनने लगे । 'विद्यानिवास जी, आज ज्ञानप्रकाश मास्साब नहीं आये?'प्रधान अध्यापक महोदय ने पूछा।
      ‘सर, उनकी चुनाव ड्यूटी है। वे सात दिन नहीं आयेंगे।‘ विद्यानिवास ने उत्तर दिया। 
     ‘फिर तो आपको पांचों कक्षाएं लेनी पड़ेगी, मैं जरा व्यस्त हूं।‘ प्रधान अध्यापक ने कहा।
     ‘आप व्यस्त हैं? किस काम में, मेरे लायक कुछ काम हो तो बताइये, बच्चे तो घर में पढ़ लेंगे।‘ विद्यानिवास ने पूछा।
     ‘अरे नहीं, सरपंच साब ने बुलाया है, शाला-विकास निधि से शौचालय बनवाना है, मध्यान्ह भोजन भी देखना है। सरपंच साब कह रहे थे, बहुत काम है।‘ प्रधान अध्यापक महोदय ने उत्तर देते हुये पूछा -        ‘कितने बच्चे आये हैं?‘
     ‘पचास।‘ - उत्तर मिला।
     ‘दर्ज संख्या तो सवा सौ है।‘
     ‘मध्यान्ह भोजन के लिये सर। एक बजते-बजते पचास और आ जायेंगे।‘ विद्यानिवास बोले ।
      ‘ठीक है, आज शनिवार है, मध्यान्ह भोजन के बाद ‘‘बालसभा‘‘ का आयोजन कर लेना, मैं भी भोजन के समय आ जाऊंगा, आप क्लास में जाइये, बच्चे शोर कर रहे हैं‘। कहते हुये प्रधान अध्यापक उठे और चल दिये ।
       विद्यानिवासा भी कक्ष की ओर चल दिये। नगीना बाबू सूक्ष्म शरीर में विद्यानिवास के साथ हो  लिये ।
'मास्साब नमस्ते',  बच्चों ने खड़े हो कर नमस्ते की। 
‘अच्छा कक्षा एक के बच्चे पूर्व की की ओर सिर कर लें, पंक्ति से बैठे, कक्षा दो के उस तरफ पश्चिम की ओर, और कक्षा तीन के बच्चे उत्तर की ओर सिर कर के बैठे।‘ विद्यानिवास ने समझाया।
      ' जी मास्साब, और दक्षिण की ओर---' एक शैतान बच्चे ने प्रश्न किया।
      'बेटा सब समझ में आ जायेगा, ज्यादा तीन पांच करता है, उधर बीच में ,दक्षिण की ओर मुंह करके मैं बैठूंगा, चल मेरी कुर्सी ला।‘ विद्यानिवास क्रोधित स्वर में बोले।
       विद्यानिवास ने कुर्सी पर बैठते हुये कहा - कक्षा एक के विद्यार्थी हिन्दी की पुस्तक निकाल लें, कक्षा तीन का सरस्वतीचन्द्र उन्हें पढ़ायेगा, कक्षा दो के गणित निकाल लें, रामानुज तेरा का पहाड़ा सिखायेगा। कक्षा तीन के विद्यार्थी सामाजिक अध्ययन का अध्ययन करेंगे, मैं चैथी-पांचवीं कक्षा हो कर आता हूं।‘ कहते हुये विद्यानिवास जी चल दिये। नगीना बाबू वहीं रूक गये ।
      सरस्वती चन्द्र बोला - 'चलो बच्चों पढ़ो ।'
      ‘जी पिता जी‘ ...... सभी बच्चे एक स्वर में बोले ।
      ‘सर कहो,अपनी माता जी से पूछों पिता जी कौन है? पढ़ो, राम स्कूल जाता है।‘ सरस्वतीचन्द्र ने समझाया ।नगीना बाबू बच्चों के सामान्य ज्ञान से आश्चर्य चकित हो गए।
     ‘राम घर से स्कूल जाता तो है पर आता नहीं। बीच में रूक जाता है।‘ एक बच्चे ने स्थिति स्पष्ट की।
तभी नगीना बाबू की दृष्टि कक्षा दो पर पड़ी। रामानुज समझा रहे थे - मुझे तेरा का पहाड़ा नहीं आता, तुम दस का सीखो, एक से दस तक लिखो, फिर सबके आगे एक-एक जीरो लगा दो, बस हो गया दस का पहाड़ा। दो का पहाड़ा लिखो जीरो लगा दो तो बीस का हो जायेगा, तीन के आगे जीरो लगाने से तीस का.....................।
      नगीना बाबू रामानुज की गणित की खोज से आश्चर्य चकित थे। तभी उनकी दृष्टि कक्षा तीन के पांच विद्यार्थियों पर पड़ी। पांचों विद्यार्थी दो दलों में विभाजित हो गये थे, दोनों दल एक दूसरे पर वाणी प्रहार कर, नई-नई गालियों का सृजन कर गौरवान्वित हो रहे थे। समाज का व्यवहारिक अध्ययन देखकर नगीना बाबू चकित थे। व्यावहारिक शिक्षा का प्रयोगात्मक उपयोग देखकर वे बाहर आ गये एवं कक्षा चार, पांच में प्रवेश कर गये। कक्षा चार को कक्षा पांच का विद्यार्थी अंग्रेजी पढ़ा रहा था। कक्षा पांच को विद्यानिवास जी विज्ञान पढ़ा रहे थे -बच्चों शारीरिक संरचना का पाठ सात खोलो, अच्छा गणेशदत्त तुम खड़े हो कर पढ़ो। बच्चों जहां जैसा चित्र में दिखाया गया है, को काट कर प्रश्नों के उत्तर लिख देना। जहां समझ में न आये मुझसे पूछ लेना, मैं तब तक भोजन देख आता हूं ---।'कहते हुये विद्यानिवास जी कक्षा के बाहर चले गये। रास्ते में उन्हें प्रधानाध्यापक एवं सरपंच मिल गये, वे आपस में चर्चा करने लग गये।
‘मास्साब मध्याह्न भोजन में आज क्या बना है? बीडीओ साब आ सकते है।‘ सरपंच ने पूछा।
     ‘हलवा, सब्जी, पूड़ी‘..............प्रधानाध्यापक बोले।
     ‘बढ़िया‘, सरंपच ने सिर हिलाया।
      तभी एक जीप जा कर स्कूल परिसर में रूकी, संरपच और प्रधानाध्यापक ने अगवानी काी। बीडीओ साब ने जीप से उतरने हुये पूछा - 'मध्यान्ह भोजन कैसा चल रहा है?'
     बढ़िया ....... सरपच ने उत्तर दिया।
     'आज क्या खिलाओगे?‘  बीडीओ ने पूछा।
     ‘हलुआ, पूरी और सब्जी‘ - प्रधानाध्यापक बोले। 
     'अच्छा, देखे कहां बनता है?' कहते हुये बीडीओ साब, सरपंच पीछे परछी में गये, जहां भोजन बन रहा था। 
    ‘अरे खुले में बन रहा है?  स्वच्छता भी नहीं है। सरपंच साब किचिन शेड बनाइये आफिस आ कर स्वीकृति ले लें, कभी-कभी फल भी खिला दिया कीजिये।‘ बीडीओ साब ने अप्रसन्नता व्यक्त की। 
‘सर इतने कम रूपये में कैसे होगा, कुछ बढ़वा दें।‘ सरंपच ने विनय की।
      'सब सरकार करेगी, कुछ आप भी करिये, आपके ही बच्चे हैं।‘ बीडीओ ने टका स जबाव दे दिया। 
तब तक सभी बच्चे पंक्ति में खाने के लिये बैठ गये। विद्यानिवास मास्साब खाना परसने लगे। बीडीओ साब को देख कर बच्चे बोले - 'जयहिन्द श्रीमान्। '
       'जयहिंद‘, बीडीओ साहब मुस्कराते हुये बोले - ‘काफी सुसंस्कृत बच्चे हैं।‘ 
      'हां साहब, हेड मास्साब, विद्यानिवास मास्साब, और ज्ञानप्रकाश मास्साब जी-जान से पढ़ाते हैं।‘ सरंपच बोला। मास्साब ने खीस निपोरते हुये कहा -सर ये तो हमारा काम है। 
      'अरे शौचालय कहां है?‘ बीडीओ ने पूछा।
     'सर बनवा रहे हैं, शाला-विकास निधि से, पर पानी एक मील दूर है, कुछ इंतजाम हो जाये सर।‘ सरपंच बोले।
      ‘सबसे पहले शौचालय बनाइये, पानी भी आ जायेगा, सब धीरे-धीरे होगा।‘ बीडीओ ने उत्तर दिया। 
      'सर एक निवेदन था।‘ विद्यानिवास मास्साब धीरे से बोले।
      'क्या? 'सब उनकी तरफ देखने लगे ।
      'सर कक्षाएं पांच और कमरे दो, एक अतिरिक्त कक्ष बन जाता तो ठीक रहता। ज्ञानप्रकाश मास्साब की चुनाव की डयूटी है, वे मुक्त हो जाते तो पढ़ाई भी ठीक हो जाती।‘ विद्यानिवास जी बोले।
      'देखिये मास्साब, आप नेतागिरी तो करें न, आपका काम पढ़ाना है, पढ़ायें,  ज्ञानप्रकाश जी चुनाव में लगे है, सबसे जरूरी काम में, आप चाहे तो आपको लगा देते हैं। उन्हें छोड़ देते हैं।‘ बीडीओ ने शिक्षा देते हुए समझाया।
      'नहीं सर, मेरा मतलब ये नहीं था, आप तो नाराज़ हो गये सर, क्षमा करें।‘ विद्यानिवास बोले। 
    ‘अब आये लाईन पर, देखिये बच्चों को पोषक आहार मिलेगा, स्वच्छ रहेंगे तो स्वस्थ रहेंगे,स्वस्थ रहेंगे तो खूब पढेंगे। अभी किचिन शेड और शौचालय बनवाइये, सरपंच साब, अब हम चलते हैं।‘ कहते हुये बीडीओ साहब जीप में बैठ गये । 
     नगीना बाबू हवा में फड़फड़ा रहे थे, स्कूल में इतने समय रहे, पढ़ाई छोड़कर सारे काम हुये। 


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