“तांडव” का विष:
राजेन्द्र सूरज
जब मैं बड़ा हो रहा था, अम्मा और आजी ने ये बात अनगिनत बार बतायी के सभी पूजा स्थलों पर भक्ति से सर झुकाना। सभी की धार्मिक भावनाओं की इज़्ज़त करना।
पर हमारी फ़िल्म फ़्रटर्निटी की गंदी हरकतों को देखकर लगता है .. उन्हें विपरीत शिक्षा मिली!
और हम? हमें आदत हो गयी है सब सहने की अतः वे हमारी आस्थाओं से खेल सकते हैं। वे हमारे आराध्य देवों का मज़ाक़ उड़ा सकते हैं.. वे हमारी वैदिक परम्पराओं का हनन कर सकते हैं। वे हमारी शिखा, जनेऊ को हास्यास्पद बना सकते हैं।ये सूची बड़ी लम्बी है।
“तांडव” के नाम से बनी घटिया वेब्सेरीस सनातन संस्कृति पर सुनियोजित घात करती शृंखला की अगली कड़ी भर है बस..
इससे पूर्व पाताल लोक (निर्माता श्रीमान विराट कोहली की पत्नी अनुष्का जी), आश्रम (निर्माता प्रकाश झा) भी इसी कड़ी का हिस्सा हैं।
ऐसा लगता है कि उनका एकमात्र लक्ष्य है, किसी भी तरह से मनोरंजन के नाम पर ऐसा कॉंटेंट परोसना है कि भारतवंशियों की धार्मिक भावनाएँ आहत हों.. हिंदू विचारसरणी के प्रति द्वेष उत्पन्न हो.. हम विभाजित हों।
क्या समाज में ऐसा ज़हर परोसना क्रीएटिविटी है??
मेरे विचार से अमेजन, अली अब्बास ज़फ़र (निर्देशक), सैफ़ अली खान, जीशन अयूब,गौहर खान, सुनील ग्रोवर वग़ैरह जैसे फ़िल्मकार आज वही कर रहे हैं जो किसी समय महमूद गजनवी, मुहम्मद गौरी, ख़िलजी, बाबर और औरंगज़ेब जैसे आक्रांताओं ने किया था - हमारा और हमारे आस्था स्थलों का दहन करके। बस तरीक़ा अलग है। क्या हम इसे हल्के में ले सकते हैं??
जब तक हम ऐसी विषाक्त वेबसेरीजों को मनोरंजन का तड़का और रीयलिज़म कि वाह-वाही से देखेंगे..जब तक सरकारी तंत्र धृतराष्ट्र की तरह अंधा बनकर कर गोबर खाता रहेगा..“तांडव” जैसे विष-उत्पादक ये परोसते रहेंगे।
इस अधर्म का समूल अंत तभी सम्भव है यदि हम और आप ऐसे अपराधियों का और इस विषपान का पूर्ण बहिष्कार करें.. सरकारी तंत्र भी अपनी आँखों का ऑपरेशन करवा कर इस घोर अपराध की त्वरित शल्य चिकित्सा करे। ये निवेदन नहीं है ..ये असंख्य भारतवंशियों की ललकार है।