सुना नहीं तुमने....

हाँ मैंने कुछ कहा सुना नहीं तुमने बाग से कोई फूल चुना नहीं तुमने यादों के जाले ने आकृति बना दी उसपर कोई रूप बुना नहीं तुमने देखो तो धूप खिलकर निकली है महसूस,मौसम गुनगुना नहीं तुमने एक बात बार-बार लबों पर आयी वचन की बातों को धुना नहीं तुमने दुनियां ये मानो किसी भट्ठी जैसी है अच्छा है खुद को भूना नहीं तुमने "उड़ता"ये खब्त है जाती सी जाएगी कुछ कहकर भी अनसुना नहीं तुमने - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता"

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