*विवाह सभ्य समाज की नीव *

मनुस्मृति के अनुसार विवाह एक निश्चित पद्धति से किए जाने वाला अनेक विधियों से संपन्न होने वाला तथा कन्या को अपनी अर्धांगिनी बनाने की विधि है| विकासशील और विकसित देश में विवाह महिला पुरुष को कानूनी रूप से सामाजिक और धार्मिक रूप से एक साथ रहने की मान्यता प्रदान करता है ।विवाह महिला और पुरुष से यह अपेक्षा करता है महिला को जो अनेक प्रकार के अधिकार और कर्तव्य प्राप्त होते हैं इसमें जहां एक और समाज में पति पत्नी को शारीरिक संबंध का अधिकार देता है तो दूसरी ओर पति को पत्नी तथा संतान के पालन एवं भरण पोषण के लिए जिम्मेदार बनाता है ।हिंदुस्तान के सनातन धर्म व संस्कृति में विवाह को पारिग्रहण की संज्ञा दी गई है विवाह संस्कार (पारिग्रहणग)के पीछे मानसिकता यह थी कि जिसका एक बार हाथ पकड़ा दिया उसका अजीवन नहीं साथ छोड़ना है |इस दांपत्य जीवन में लगातार रस और उल्लास भरने हेतु संपूर्ण दुनिया में फरवरी के दूसरे रविवार को यानी इस वर्ष 14 फरवरी 2021 को विश्व विवाह दिवस के रूप में मनाया जा रहा है और अनेक तरह के कार्यक्रम करके पति-पत्नी के आपसी संबंधों को नई ताजगी एवं सुदृढ़ता ,प्यार देने का प्रयास किया जाता रहा है| ।दुनिया भर में भारत का विवाह आदर्श विवाह माना गया है आदर्श विवाह की आधारशिला पति का पत्नी के प्रति पत्नी का पति के प्रति अधिकार और कर्तव्य के साथ एक दूसरे की जीवन को उल्लास व प्रकाश मय करना होता है |विवाह को मजबूत रिश्ते में परिवर्तित करने हेतु दांपत्य सुख से संतान की उत्पत्ति से रिश्ता मज़बूत होता है |धार्मिक मान्यताओं के हिसाब से मनुष्य अपने जीवन का सार्थक व धार्मिक अनुष्ठान बिना विवाह के पूरा नहीं करता है| आदि मानव अवस्था में मानव समाज में विवाह का कोई बंधन नहीं था सब नर नारी को स्वतंत्र काम सुख का अधिकार था ।महाभारत में पांडु ने अपनी पत्नी कुंती को नियोग के लिए प्रेरित करते हुए कहा था कि पुराने जमाने में विवाह की कोई प्रथा न थी, स्त्री पुरुषों को यौन संबंध करने की पूरी स्वतंत्रता थी। कहा जाता है, भारत में श्वेतकेतु ने सर्वप्रथम विवाह की मर्यादा स्थापित की। चीन, मिस्र और यूनान के प्राचीन साहित्य में भी कुछ ऐसे उल्लेख मिलते हैं।एक समय ऐसा था जब अनेक पत्नी रखने की प्रथा विकसित हुई इसके बाद अंत में एक ही पत्नी के साथ विवाह करने का नियम प्रचलित हुआ |व्यवहार एवं परिवार दोनों एक दूसरे से जुड़े हैं स्त्री पुरुष के यौन संबंधों से उत्पन्न संतान को सुरक्षित बनाए रखने की चिंता ने इनको जन्म दिया| यदि पुरुष यौन संबंध के बाद गर्भावस्था में पत्नी की देखभाल न की जाए संतान उत्पन्न होने पर उसके सामर्थ एवं बड़ा होने तक उसका पोषण ना किया जाए तो मानव जाति में यह जघन्य अपराध माना जाता है |धार्मिक और कानूनी दृष्टि से भी यह दंड का भागी है |अध्यात्म संरक्षण की दृष्टि से विवाह और परिवार स्वरूपी संस्था की उत्पत्ति हुई है यह केवल मानव समाज में नहीं अपितु मनुष्य के पूर्व समझे जाने वाले गौरैया चिंपांजी आदि में भी पाई जाती है |व्यक्तिगत दृष्टि से विवाह पति-पत्नी की मैत्री साझेदारी है| दोनों के सुख विकास और पूर्णता के लिए आवश्यक सेवा सहयोग और निस्वार्थ त्याग के अनेक गुणों की गुरु की शैक्षिक व्यवहारिक जीवन से मिलता है |नर नारी की अनेक आकांक्षा व्यवहार एवं संतान प्राप्ति द्वारा पूर्ण होती है उन्हें यह संतोष होता है कि उनके ना रहने पर संतान उनका नाम और कुल की परंपरा को कायम रखेगी| उनकी संपत्ति की देखभाल करेंगी| वृद्धावस्था में उनके जीवन का सहारा बनेगी हिंदू समाज में वैदिक युग से यह विश्वास प्रचलित है कि पति पत्नी का आदान से पति तब तक अधूरा रहता है जब तक वह पत्नी प्राप्त करके संतान की उत्पत्ति नहीं कर लेता है क्योंकि संतान के माध्यम से ही कपाल क्रिया का शास्त्रों में वर्णन मिलता है |आज आर्थिक और वैश्विक युग में विवाह जैसी परंपरा का जिस तरीके से हनन हो रहा है उसे देखते हुए फरवरी के दूसरे रविवार को विश्व विवाह उत्सव अवश्य मनाना चाहिए ताकि स्वच्छ समाज में विवाह ही एक ऐसी कड़ी है जो तमाम समाजिक बुराइयों को ना केवल खत्म करती है बल्कि एक सभ्य समाज का निर्माण करती है| इसलिए पूरे विश्व में विश्व विवाह दिवस की बहुत अहमियत और सार्थकता है|जो दांपत्य जीवन में हर्ष उल्लास प्यार समर्पण की भावना भर्ती है राजीव गुप्ता जनस्नेही

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