गुस्सा

गुस्सा
“रजनी, मेरे जूते कहाँ हैं ?” रोज़ की तरह सुबह ऑफिस के लिए तैयार होते हुए अजय ने चिल्लाते हुए पूछा।
“वहीं होंगे, जहाँ तुमने कल रखे होंगे, ध्यान से देखो।” रजनी अपनी बेटी तान्या को कपड़े पहनाते हुए झुँझला कर बोली।
“अगर मुझे मिल जाते तो मैं तुम्हें आवाज़ क्यों लगाता। इस घर में कोई सामान समय पर नहीं मिलता। अरे जल्दी करो, मुझे देर हो रही है।” अजय ने इस बार गुस्से से कहा।
“अजय, मेरे भी दो ही हाथ हैं। तुम देख रहे हो कि मैं तान्या को स्कूल के लिए तैयार कर रही हूँ। तुम भी थोड़ा अपनी जगह से हिला करो। तुम तो सुबह से बैठकर अखबार पढ़े जा रहे हो। अखबार न हुआ मेरी जान का दुश्मन हो गया।” अब तक रजनी भी गुस्से में आ चुकी थी।”क्या मतलब है तुम्हारा कि मैं सुबह से बैठा हूँ। क्या मेरे बैठे रहने से ही ये घर चल रहा है या तुम्हारे बेवजह गुस्सा होने से। तुमसे जब भी कोई काम बोलूँ, तुम पता नहीं कहाँ की बात कहाँ जोड़ देती हो !” अजय ने सोफे से उठते हुए रजनी से कहा और जूते ढूँढने लगा।”तो क्या तुम समझते हो कि मैं दिन भर घर में आराम से पड़ी रहती हूँ। ये खाना बनाना, कपड़े धोना, सुखाना, इस्त्री करना, बच्चे को देखना और घर चलना सिर्फ तुम कर रहे हो । एक दिन घर पर रह कर देखो फिर बताना कि ऑफिस की कुर्सी पर बैठे रहने और घर में घिरनी बनकर घूमते रहने में कितना फर्क है। मैं तो तुम्हारे काम कर देती हूँ, पर मेरे काम कौन करेगा। मेरे सामान कौन खोजेगा। मेरी सहायता कौन करेगा, कभी सोचा है तुमने।” रजनी ने अब पलटवार किया।
“नहीं, मैं तो कुछ सोचता ही नहीं। मैं ही इस घर में बेकार हूँ। सब तुम्हारी दया से ही चल रहा है” यह कहता है अजय गाड़ी में बैठा और ऑफिस के लिए चल दिया।गुस्से में रजनी को अजय को टिफिन देना याद नहीं रहा और अजय टिफिन लेना भूल गया।
रजनी जब दोपहर में सारे काम खत्म करके बैठी तब उसे याद आया कि टिफिन तो यहीं रह गया। उसने अजय को फोन लगाया पर अजय ने गुस्से में उठाया नहीं। रजनी को अहसास हुआ कि सुबह बहस कुछ ज्यादा ही हो गई थी। उसने सोचा कि रात को अजय का पसंद का खाना बनाएगी तो अजय गुस्सा भूल जाएगा। रजनी ने अजय का दिया हुआ पहला तोहफा लाल रंग की साड़ी बंगाली अंदाज़ में पहनी। उसने बड़ी सी लाल बिंदी लगाई तो लगा सूरज आज छोटा होकर रजनी का हमसाया बन गया हो। होंठों पे हल्की सी लाली, आँखों में भर के काजल और बालों में लंबा सा जूड़ा जो कि रजनी की चाल पर उसकी कमर से बँधी कोई बलखाती नदी लग रही थी, सब रजनी को कयामत बना रहे थे।
“अगर इस रूप पर किसी का भी ईमान न हिल जाए, तो दुनिया की तमाम खूबसूरती बेकार थी।”
ऑफिस में लंच में अजय ने कैंटीन से खाना मंगवाया, पर रजनी के हाथों वाली उस में बात कहाँ। आधा खाया और आधा उसने यूँ ही छोड़ दिया। अजय को लगा कि सुबह बहस कुछ ज्यादा ही हो गई थी। उसने अपने हाथों से रजनी के लिए सॉरी लिखा हुआ ग्रीटिंग कॉर्ड बनाया। पास की दुकान से एक बेहद ही हसीन साड़ी और परफ्यूम खरीदी। शाम को लौटते वक्त, हालांकि बारिश बहुत तेज़ थी, भींगकर उसकी पसंद के गुलदस्ते और बालों में लगाने के लिए मोगरे का फूल लिया। रजनी की पसन्द की मिठाई भी अजय उसी बारिश में भींगता हुआ खरीद आया। जब कार में बैठकर अजय ने अपनी पर्स में लगी रजनी की तस्वीर देखी तो उसे वो बारिश याद आ गया जब उनकी पहली मुलाकात हुई थी।
अजय अपनी कार से घर वापस जा रहा था और रजनी भरी बारिश में बस का इंतज़ार कर रहा था। इतनी बारिश थी कि किसी बस के आने का अंदेशा नहीं था। अजय ने कार रोक कर रजनी से पूछा कि अगर वो रजनी को ड्रॉप कर दे। रजनी के पास भी कोई और विकल्प नहीं था। अभी थोड़ी दूर भी नहीं गए होंगे कि पानी घुसने की वजह से गाड़ी बंद हो गई।
“आपको गाड़ी चलानी आती है ?” अजय ने रजनी से पूछा।”हाँ, पर क्यों ?” रजनी ने पूछा।
“देखिए, मुझे गाड़ी को धक्का देना पड़ेगा और आपको गाड़ी को एक्सीलेटर देना होगा। आप कर पाएँगी ?” अजय ने अपनी बात क्लीयर की।”मैं कोशिश कर सकती हूँ।” रजनी बोली।
“ठीक है। मैं बाहर निकल कर धक्के लगाता हूँ आप स्टीयरिंग सम्भालो।” यह कहता हुआ अजय गाड़ी से बाहर निकला और धक्के लगाना शुरू किया।”गाड़ी चालू करो” अजय ने पीछे से आवाज़ लगाई।
इतनी बारिश और उसपर इंजन की घर्र घर्र में रजनी को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। वो बस लगातार कोशिश किए जा रही थी।अजय अब तक पानी से बिल्कुल तर बतर हो चुका था। जब गाड़ी एक इंच भी आगे नहीं बढ़ी तो अजय ने झेंपते हुए रजनी से कहा।”मुझसे ज्यादा उम्मीद न रखें, पर मैं देखती हूँ कि मेरे जोर से अपनी गाड़ी कितनी हिलती है” रजनी ने मज़ाक में हँसते हुए बोला।
रजनी के हाथ रोटी बानने वाले कोमल हाथ थे। ये काम कभी कोई लड़की नहीं करना चाहेगी। पर परिस्थिति ही ऐसी थी।
रजनी भी अजय की तरह बारिश में अब तक पूरी भींग चुकी थी। पर गाड़ी टस की मस न हुई।
“रजनी जी, मुझे लगता है कि मेरी गाड़ी अब चलने के मूड में नहीं है। हम बारिश रूकने का इंतज़ार कर लें और बस स्टॉप तक चल कर बैठ जाएँ। हालाँकि बारिश से अब बचने जैसी हमारी कोई बात नहीं है।”अजय ने अपना प्रस्ताव रखा।
हालाँकि रजनी भी ये बात समझ चुकी थी। दोनों काफी देर तक बस स्टॉप पर बैठे बातें करते रहे। बातों-बातों में दोस्ती की खुशबू और मिठास भी आने लगी थी। पर किसी की तरफ से भी पहल नहीं हो रही थी।
बारिश रुकी और दोनों अपने घरों को चल पड़े। अजय को बार बार रजनी का बारिश में भींगा हुआ हुस्न खींचता रहा और रजनी को अजय का स्वच्छंद व्यवहार कायल कर गया।
अजय जब घर पहुँचा तो देखा कि रजनी का बैग कार में ही रह गया था। रजनी के बैग को अजय छूना तो नहीं चाहता था पर उत्सुकतावश उसने उसका बैग खोल कर देखा। रजनी के आई कॉर्ड से पता चला कि वो अजय के पास वाले ऑफिस में ही मैनेजर के पोस्ट पर नौकरी करती थी । उसका फ़ोन नम्बर, घर का पता, ऑफिस का पता सब एक साथ ही अजय को मिल गया।
“इश्क़ को और क्या चाहिए, बस हुस्न का पता।”
बैग लौटाने के बहाने दोनों की दोस्ती प्यार में और प्यार शादी में बदल गई। उनकी अब छोटी सी प्यारी बेटी है। बेटी होने के बाद से रजनी मैटरनिटी अवकाश पर थी।
सारे रास्ते पुरानी बातें याद करते-करते अजय घर के दरवाजे तक पहुँचा और घण्टी बजाई। रजनी किचन में व्यस्त थी सो उसने दरवाज़ा पहले से ही खोल रखा था। अजय ने ३-४ बार बेल बजाने के बाद दरवाजे की तरफ देखा और अंदर की तरफ चला। रजनी खाना बनाने में इतना व्यस्त थी कि उसने देखा ही नहीं कि उनकी बेटी तान्या ने फर्श पर तेल बिखेर रखा था। अजय का चेहरा तक गिफ्ट्स से ढका हुआ था सो उसे कुछ नहीं दिखा और वो सारे सामान सहित फर्श पर गिर पड़ा। सारी मिठाई बिखर गई, फूल तितर-बितर हो गए, साड़ी पूरी खुल गई और परफ्यूम का बोतल फूट गया। रजनी दौड़ी हुई धड़ाम की आवाज़ पर ज्यों ही अजय तक पहुँची वो भी गिर पड़ी। उसके हाथ में रखा अजय के लिए बनाया हुआ खीर का पतीला गिर गया और पूरा घर किसी कबाड़ सा महसूस होने लगा।
अब तक अजय का सारा प्यार फितूर हो चुका था।
“मैं दिन भर तुम्हारे पसंद के सामान बारिश में भींग के जुटाता रहा और तुम्हें अपने ही घर का पता नहीं। एक बच्ची तुमसे संभलती नहीं। घर क्या तुम खाक संभालोगी।” अजय ने पूरे जोर से चीखते हुए रजनी से कहा।
“अजय, मैंने भी तुम्हारे पसंद के सब इंतज़ाम किए। मैंने नहीं देखा कि तान्या ने फर्श पर कब तेल बिखेर दिया। तुम गुस्सा मत हो, मैं अभी ठीक कर दूँगी।” रजनी ने अजय को समझाते हुए बोला।
“अब, सारा खाना यहाँ कबाड़ में बैठ कर तुम्हीं खाओ। मैं बाजार जा के कुछ खा लूँगा। तुम्हारे लिए कुछ भी करना बेकार है।”अजय, रजनी के मुँह पर दरवाज़ा बंद करते हुए घर से बाहर चला गया।
और घर के अंदर रह गए-“डरी-सहमी छोटी सी एक बच्ची और अपने भाग्य को कोसती एक औरत।”
सलिल सरोज

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