हरा रंग

पतझड़ से कहो यहाँ न आए
यहाँ पहले ही बहुत सूखा है
हरियाली से कहो हरियाने को
जहाँ बहुत ही रूखा है
इन रंगों की भीड़ में से
हरा रंग चुराना चाहती हूँ
बिखेर देना चाहती हूँ
किसानों के बंजर खेतों में
उजड़ी हुई ज़मीन पर
जब भूरा रंग छा जाता है
सूखा मन सूखा तन
सब सूना हो जाता है
कोरी आँखें स्थिर हो कर
ताकती हैं तिमिर में
ढूँढती हैं काले बादल को
जिनमें छुपी हों चाँदी सी बूँदें
फुहार बन जब बरसती हैं
सुखी बंजर ज़मीन पर
क्या कहूँ आसमान में एक
इन्द्रधनुष छा जाता है
और धरा पर हर तरफ़ फिर
हरा रंग पसर जाता है
देख कर हरीतिमा धरा की
हृदय हरा हो जाता है
अन्नदाता की आँखों से
झरना सा बह जाता है
हरा हरा सा खेत देख फिर
तन मन सब हरिया जाता है!
ऋचा सिन्हा

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