भारतीय नववर्ष के आगमन पर ज्योतिष दिवस पर परिचर्चा

ज्योतिष दिवस / विशेष ललितपुर। ज्योतिष दिवस पर आयोजित परिचर्चा को संबोधित करते हुए नेहरू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो. भगवत नारायण शर्मा ने कहा कि हमारी वैदिक संस्कृति यज्ञप्रधान रही है। तथा सब सुखी हो-सब निरोगी हो-सबका कल्याण हो। इसी में मानव जीवन की सार्थकता मानी गयी है। इसीलिए त्रैलोक को ही राष्ट्र माना गया है। हमारा राष्ट्रगान जन गण मन मंगलदायक का आवाहन करता है। अतएव भारत विश्व संस्कृति का प्रतिनिधि है। भारत शब्द व्यक्तिवाची न होकर गुणवाची है। जिसका कर्तव्य है कि पूरे संसार का ज्ञानपोषण से भरण-पोषण करे तभी ऐसे महान देश को भारत कहा गया है। यज्ञ-याग का विधान सामूहिक श्रम के फल से उत्पन्न उत्पाद का समान वितरण और उपभोग समरसता के साथ करने में सन्निहित है। किस शुभमुहूर्त में यज्ञ का शुभारम्भ और समापन किया जाये। वस्तुत: इसी आवश्यकता के कारण गणना की अपरिहार्य आवश्कता ने ज्योतिष गणित को जन्म दिया। पुरानी पोथी में लगध मुनि के वेदान्त ज्योतिष के ग्रन्थ में काल का निर्धारण करने वाले ज्योतिषी को वेदचक्षु अर्थात वेद की आँख कहा गया है। प्रारम्भिक काल में ही यज्ञों की वेदियों के निर्माण के लिए शुल्बसूत्रों (रस्सी) के उपयोग की वजह से ज्यामितीशास्त्र का जन्म हुआ। आज भी ग्रामीण निरक्षर कृषक पैली में अनाज भरते जाते हैं और सुतली में उसी क्रम से गांठ लगाते जाते हैं और अंत में उपज का परिणाम उनके मस्तिष्क में अंकित हो जाता है । अत: किसी की बदनियति के शिकार होने से वे बच जाते हैं। आचार्य बराहमिहिर (छठवीं शताब्दी) ने ज्योतिष को 3 स्कन्धों में बांटा है, जिसमें तंत्र यानि गणित, बीज गणित, रेखागणित त्रिकोणमिति, ऐस्ट्रोनोमी तथा करण (प्रेक्टीकल) विभाजित किया है। दूसरे स्कन्ध में संहिता (प्राकृत घटनाएं) और तीसरे स्कन्ध में होराशास्त्र (घण्टा आदि) की गणना को स्थान दिया। होरा शब्द संस्कृत व अंग्रेजी में आवर के रूप में प्रयुक्त होता है। भारतीय गणित ज्योतिष विशुद्ध विज्ञान है और फलित ज्योतिष अभी भी विकासोन्मुख विज्ञान के रूप में अनुभवों के बल पर धारणाओं पर आधारित है। इंग्लैण्ड में एक कहावत है कि फलित ज्योतिष एक ऐसी मूर्ख माता है जिसने गणित ज्योतिष के बुद्धिमान पुत्र को जन्म दिया परन्तु भारत के संदर्भ में यह लोकोक्ति सटीक नही बैठती, क्योंकि गणित ज्योतिष की कालगणना फलित ज्योतिषियों के अनुमान और अनुभव आधारित निष्कर्षों की पुष्टि करती है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नवसंवतसर का नया साल शुरू होता है। पंचांग बदलता है। शास्त्रों में कहा गया है कि ब्रह्मा ने इसी समय सृष्टि का शुभारम्भ किया। दूसरे कृषि प्रधान देश भारत में चैत और कतकी की दो फसलेें किसानों के जीवन मे हर्षोल्लास भरती रहती हैं। परिणास्वरूप सभी वर्गों के लोग आनंदित हो उठते हैं। फलित ज्योतिष में जन्म से लेकर मृत्यु तक क्या करना चाहिए, क्या नहीं। नींद कैसी हो, भोजन कैसा हो। श्रगाली का रोना अपशकुनसूचक क्यों है, निवास कैसा हो, रसोईघर कैसा और कहां बने आदि आदि अंतहीन समस्याओं के समुद्र में आदमी निर्मूल धारणाओं के कारण तैरता रहता है। वस्तुत: ब्रह्माण्ड का बहुत छोटा भाग धरती है जो कभी आग का गोला थी, पर मनुष्य की बुद्धि और प्रतिभा विशाल ब्रह्माण्ड से भी बहुत बड़ी है। अत: दुनिया में मनुष्य से बढक़र कोई नहीं है।

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