नौटंकी_प्रसंग अंक

नौटंकी_प्रसंग अंक ---------------------- भारतीय संस्कृति और कला कितनी विविध है, यह तभी पता चलता है जब हम उसको जानने का प्रयास करते हैं. हर राज्य, क्षेत्र और जनपद में विभन्न प्रकार की अद्भुत कलाएं अभी भी अपनी जड़ों से जुडी हैं. नौटंकी एक ऐसी ही विधा है जिसने लोक कला को समृद्ध बनाने का काम किया है. लखनऊ से प्रकाशित "कला वसुधा" के अक्टूबर से दिसम्बर २०१८ अंक में इस संगीत कला के विभिन्न पक्षों पर बारीकी से प्रकाश डाला गया है. अभिनय के चारों प्रकारों-- आंगिक, वाचिक, सात्विक एवं आहार्य से समृद्ध यह विधा किसी भी कला प्रेमी के हृदय को स्पन्दित करने की सामर्थ्य रखती है. नौटंकी विधा पर केन्द्रित वर्तमान अंक प्रमुख लेखक-- अब्दुल बिस्मिल्लाह, डॉ उमेशचन्द्र शर्मा, अतुल यदुवंशी, डॉ उर्मिल कुमार थपलियाल, डॉ वीरेन्द्र कुमार 'चन्द्रसखी' से आरम्भ कर ४३ महत्त्वपूर्ण लेखों के माध्यम से इस विधा का सिंहावलोकन किया गया है. एक समय था जब लोग उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार तक इस विधा के दीवाने हुआ करते थे. कुछ लोग इस पर अश्लीलता फैलाने का भी आरोप लगाते हैं, पर ऐसा कुछ है नहीं. दरअसल कोई विधा जब प्रचलन में आती है तो तमाम विकृतियाँ भी साथ चलती हैं, पर समय के साथ विजय अच्छाई की ही होती है. बाद में जो टिकी रही वह उत्कृष्ट नौटंकी का रूप था. प्रदर्शनकारी कलाओं की इस त्रैमासिक पत्रिका का हर अंक एक विशेषांक होता है. पिछले दो अंक महान रंगकर्मी बलराज साहनी को समर्पित थे, जिन के कृतित्व पर व्यापक और शोधपरक सामग्री के साथ यह अंक कला प्रेमियों के लिए संग्रहणीय बन पडा है. इस पत्रिका के माध्यम से मित्र शाखा बंद्योपाध्याय ( Ashok Banerjee )और उनकी पत्नी डॉ उषा बनर्जी कला और संस्कृति की जो सेवा कर रहे हैं, वह सराहनीय है. आपको बहुत बधाई

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