सियाटिका के दर्द को दूर करती है होम्योपैथी
क्या करुँ सियाटिका के दर्द से बहुत परेशान हूँ, काफी इलाज किया परन्तु कुछ फायदा ही नहीं हो रहा है। यह अनेक लोगों का दर्द है। आखिर क्या है सियाटिका और क्यों होता है यह तथा क्या है इसका इलाज ?
सियाटिका जिसे वैद्यकीय भाषा में गृध्रसी एवं बोलचाल की भाषा में अर्कुलनिसा कहते है। सियाटिका आजकल एक सामान्य समस्या बन गई है और इस रोग की सम्भावना 40 से 50 वर्ष की उम्र में ज्यादा होती है। इसका दर्द बहुत ही परेशान करने वाला होता है और दैनिक जीवन को काफी कष्टदायी बना देता है।
क्या है सियाटिका: सियाटिक नर्व नितम्ब से लेकर जांघ के पिछले भाग से होकर पैर की एडी तक जाती है। यह नर्व कूल्हे से पैर तक के दर्द का एहसास स्पाइनल कार्ड के माध्यम से मस्तिष्क तक पहुचाती है।
क्या कारण है सियाटिका रोग के ? सियाटिका रोग के अनेक कारण है उनमे प्रमुख कारण हैंः
गठिया
वायु
उपदंश
चोट लगना
सियाटिक नर्व पर लगातार दबाव पडना
अस्थि मज्जा के कुछ रोग हो जाना
स्लिप डिस्क हो जाना
अधिक देर तक बैठना
अर्बुद लेम्बासेक्रल फाइब्रोसाइटिस आदि के कारण होता है।
क्या हैं सियाटिका रोग के लक्षण ? सियाटिका रोग में नितम्बों से लेकर घुटनों के पिछले हिस्से तक और कभी-कभी एड़ी तक दर्द की एक लकीर जैसी खीची हुई मालूम पडती है और यह दर्द कभी-कभी हल्का एवं कभी-कभी असहनीय हो जाता है। कुछ देर बैठे रहने के बाद फिर उठने एवं चलने-फिरने कश्चात बहुत ही तकलीफदेय एवं सुई चुभने जैसा दर्द होता है। इसी के साथ पैर में कभी-कभी झंझनाहट भी महसूस होती है। इस दर्द के कारण रोगी को बेचैनी महसूस होती है और रात में उसकी नींद भी खुल जाती है
क्या है सियाटिका का होम्योपैथिक उपचार: एलोपैथी में जहां सियाटिका दर्द का उपचार केवल दर्द निवारक दवाइयां एवं ट्रेक्शन है वही पर होम्यापैथी में रोगी के व्यक्तिगत लक्षणो के आधार पर दवाईयों का चयन किया जाता है जिससे इस समस्या का स्थाई समाधान हो जाता है। सियाटिका रोग के उपचार में प्रयुक्त होने वाली औषधियां इस प्रकार है।
कोलोसिन्थ: रोगी के चिडचिडे स्वभाव के कारण क्रोध आ जाता हो, गृध्रसी बायी ओर का पेशियों मे खिंचाव व चिरने-फाडने जैसा दर्द विशेषकर दबाने या गर्मी पहुचाने से राहत मालूम हो।
नेफाइलियम: पुरानी गृध्रसी वात आराम करने से पैरो की पिंडलियों मं ऐठन होने की अनुभूति के साथ सुन्नपन व दर्द अंगो को ऊपर की ओर खीचने एवं जांघ को उदर तक मोडने से राहत हो।
रसटाॅक्स: ठंड व सर्द मैसम में रोग बढने की प्रवृत्ति, अत्यधिक बेचैनी के साथ निरन्तर स्थ्तिि बदलते रहने का स्वभाव, गृध्रसी वात का जो दर्द चलने फिरने से आराम हा, एवं आराम करने से ज्यादा, साथ ही सन्धियों एवं कमर में सूजन के साथ दर्द होता हो।
ब्रायोनिया: अत्यधिक चिडचिडापन, बार-बार गुस्सा आने की प्रवृत्ति, पुराने गृध्रसी वात, दोनो पैर में सूई की चुभन तथा चीड़फाड किये जाने जैसा दर्द हो जो चलने फिरने से बढता हो एवं आराम करने से घटता हो, साथ ही पैरों के जोड सूजे हुए, लाल व गर्म हो, जिसमें टीस मारने जैसा जलन युक्त दर्द हो।
गुएकम: सभी तरह के वात जैसे गठिया व आमवाती दर्द जो खिंचाव के साथ फाडती हुई महसूस हो, टखनों मे दर्द जो ऊपर की ओर पूरे पैरो में फैलजाया करता हो, साथ ही पैरो के जोड़ सूजे हुए, दर्दनाक व दबाव के प्रति असहनीय, गर्मी बर्दास्त नहो।
लाइकोपोडियम: सियाटिका जो विशेषकर दाये पैर में हो, दर्द कमर से लेकर नीचे पैर तक हो एवं पैरो में सुन्नपन व खिचाव के साथ दर्द महसूस हो, साथ ही साथ रोगी को बहुत पुरानी वात व गैस हो व भूख की कमी महसूस हो।
आर्निका माॅन्ट: बहुत पुरानी चोट जिनके वजह से रोग प्रार्दुभाव स्थान में लाल सूजन व कुचलने जैसा दर्द हो साथ ही रोग ठंड व बरसात से बढे, आराम व गर्माहट से घटे।
काॅस्टिकम: दाहिने पैर में रोग की शुरुआत, रोग वाली जगह का सुन्न व कड़ा होना, ऐसा मालूम होता हो कि जैसे वहाँ की मांसपेशियां एक साथ बंधीहुई हो साथ ही नोच-फेकने जैसा दर्द होता रहे।
ट्यूबरकुलिनम: जिन रोगियों के वंश में टी.बी. का इतिहास हो, साथ ही उनको सियाटिका दर्द भी पुराना हो।
ठसके अतिरिक्त बेलाडोना, जिंकमेट, लीडमपाल, फेरमफॅास, आर्सेनिक एल्बम, कैमोमिला, कैल्मिया, अमोनियम मेयोर, काॅली बाइक्रोम, नेट्रसल्फ आदि औषधियो का ¬प्रयोग रोगी के लक्षणों के आधार पर किया जाता है।
सियाटिका रोग में क्या सावधनियां अपनाएं: सियाटिका रोग के सम्बन्ध में अनेक भ्रान्तियां व्याप्त हैं। कुछ तथाकथित चिकित्सक चीरा लगाकर गन्दा खून निकालकर सियाटिका के इलाज का दावा करते है जो कि गलत है क्यो कि इस रोग का खून के गन्द होनेे से कोई सम्बन्ध नही है। इस प्रकार के इलाज से आपकी समस्या बढ़ सकती है। सियाटिका रोगी को निम्न सावधानियां अपनानी चाहिए।
रोगी को बिस्तर पर आराम करना चाहिए।
रोगी को नियमित रुप से व्यायाम एवं टहलना चाहिए।
रोगी को हल्का भेजन लेना चाहिए।
अस्वास्थ्यप्रद वातावरण एव सीलनभरे गन्दे मकान में नही रहना चाहिए।
डा0 अनुरुद्ध वर्मा
एम.डी.(होम)
21/414, इन्दिरानगर, लखनऊ