स्मृति शेष - बहुत याद आओगे -शेष नारायण सिंह

शेष नारायण सिंह, बड़े भाई बहुत याद आओगे। पश्चिम बंगाल जाने के पहले और वापस आने के बाद कई बार शेष नारायण सिंह से बात हुई। वह बहुत ही नेक दिल इंसान और अपनी बातों को स्पष्ट, निष्पक्ष और तार्किक रूप से कहने से नहीं चूकते थे। पिछले 3-4 वर्षों से मैं उनसे काफी व्यक्तिगत रूप से जुड़ा हुआ था और चुनाव संबंधित तमाम विश्लेषण में उनका मार्गदर्शन मिलता रहा। पश्चिम बंगाल चुनाव को लेकर उनका विश्लेषण भी काफी तार्किक था। गांव, गरीब, किसान, मजदूर के बारे में वह हमेशा कहते रहे कि मीडिया में जो स्थान मिलना चाहिए ग्रामीण क्षेत्रों को, नहीं मिलता है और गांव से जुड़े हुए दिल्ली में रहते हुए एक बहुत ही संवेदनशील बेहतरीन इंसान थे। शेष नारायण सिंह की सबसे खूबसूरती यह थी कि बच्चों से बात करते हुए बच्चों की तरह और बड़ों से बात करते हुए बड़ों की तरह उनका भाषा और व्यवहार रहता था। शेषनारायण सिंह की टीम में काम करने वाले बच्चे भी हमेशा उनका बहुत सम्मान करते थे। उनके मार्गदर्शन को मानते थे। पिछले महीने माल में एक रिश्तेदार के परिवारिक फंक्शन में लखनऊ आए थे और मेरे साथ कई घंटों तक रहे। हम दोनों ने दोपहर में आर्यन रेस्ट्रोरेंट में लंच किया। लंच के बाद जब मैं पैसा देने लगा तो उन्होंने मुझसे कहा कि मेरे सवाल का जवाब दो, पैसा दे देना। मैं पूछा क्या भाईसाहब ? उन्होंने कहा आप बड़े है कि मैं। मैंने कहा, भाईसाहब आप बड़े है। फिर उन्होंने कहा कि आपने पर्स क्यों निकाला ? मैंने क्षमा मांगते हुए पर्स जेब में रख लिया। इसके बाद वह मेरे साथ अपर मुख्य सचिव सूचना नवनीत सहगल के पास भी गए और घंटों बातचीत होती रही। इस दौरान लखनऊ में रहने वाले अपने पुराने मित्रों प्रदीप कपूर अन्य कई लोगों को फोन करके बताते रहे कि मैं लखनऊ में हूं और मिलूंगा, बात करूंगा, काफी हाउस में बैठेंगे और बड़े ही चुटकुले लहजे में तमाम बातें करते रहे। पूरे दिन मेरे साथ थे और शाम को अपने रिश्तेदार के फंक्शन में जाने के लिए जो कपड़े पहने उसको खुद ही मजाक बना लिए और कहा कि यार पंडित जी मेरे कपड़े देखो मैं खुद ही अपने आप को अजुबा लग रहा हूं। एक विशेष परिधान में जो विशेष कार्यक्रमों में पहना जाता है वह पहन कर माल के रिश्तेदार के कार्यक्रम में शामिल हुए थे। पिछले 3-4 वर्षों में लगातार उनसे विभिन्न विषयों पर वार्ता होती रही। देशकाल परिस्थितियों, राजनीतिक समीकरण तथा चुनाव को लेकर उनके बहुत ही स्पष्ट और जमीनी विश्लेषण होते थे। गांव के प्रति उनका बहुत ही लगाव था तमाम ऐसी बातें और पुराने अनुभव को वह साझा करते थे और इस बात का अफसोस करते थे कि वह पत्रकारिता अब नहीं रही जो वह करते आए हैं। बीबीसी के पूर्व इंडिया हेड और वरिष्ठ पत्रकार मधुकर उपाध्याय जी से उनके बहुत मधुर संबंध थे। मधुकर जी भी शेष नारायण की बीमारी को लेकर काफी चिंतित थे। प्लाज्मा की जरूरत पड़ी तो उन्होंने कई लोगों को फोन किया। मेरे मित्र डॉ अनिल चतुर्वेदी को भी मधुकर जी ने फोन किया कि शेष नारायण सिंह जी को प्लाज्मा की जरूरत है लेकिन थोड़ी देर बाद पता चला कि प्लाज्मा की व्यवस्था हो चुकी है और वह शीघ्र ही स्वस्थ हो जाएंगे लेकिन ईश्वर को यह मंजूर नहीं था। हम इस इंतजार में थे कि चन्द दिन बाद ही बड़े भाई शेष नारायण सिंह के चुटकुले अंदाज में प्यार भरी बातें उनके अनुभव सुनेंगे। आने वाले तमाम विषयों पर उनका मार्गदर्शन मिलेगा। काश ऐसा ही होता लेकिन नहीं हुआ। उनकी आवाज, चेहरा बार-बार मस्तिष्क में घूम रहे हैं और यह भरोसा नहीं हो रहा है कि मेरे भाई शेष नारायण सिंह अब नहीं रहे । संकलन

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