जागो, हिंदी प्रेमियों जागो..

केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा ने हिंदी साहित्य के हजार वर्ष के इतिहास को संजोने के लिए "हिंदी 100 रत्नमाला" योजना के तहत हिंदी के विशिष्ट साहित्यकारों के नाम पर पुस्तक छापने की प्रक्रिया प्रारंभ की है. इन विशिष्ट साहित्यकारों में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का नाम चयनित नहीं है. आप खुद सोचें, केंद्रीय हिंदी संस्थान साहित्यकारों की विशिष्टता तय करेगा या हिंदी भाषी समाज? कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने उन्हें पथ प्रदर्शक बताया. राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त खुद ही स्वीकार कर चुके हैं कि हम आचार्य द्विवेदी के ही बनाए हुए हैं. महाप्राण निराला भी उनका गुणगान करते रहे हैं.. सोचिए! आचार्य द्विवेदी के बनाए लेखक और कवि केंद्रीय हिंदी संस्थान की नजर में हजार वर्ष के हिंदी साहित्य के इतिहास में विशिष्ट नाम है लेकिन आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी नहीं! हमारा इन विशिष्ट साहित्यकारों के नाम पर कोई विरोध नहीं है लेकिन सुझाव है कि 10 विशिष्ट साहित्यकारो के बजाय यह संख्या 11 निर्धारित करके आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का नाम "हिंदी 100 रत्नमाला" योजना में शामिल किया जाए. विरोध केवल इस बात का है कि जिन आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने साहित्य की तमाम विधाओं को पुष्पित पल्लवित किया और नए नए लेखक कवि तैयार किए. क्या साहित्य में उनका कोई योगदान माना नहीं जाएगा? केंद्रीय हिंदी संस्थान की इस योजना में विशिष्ट साहित्यकारों के नाम में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का नाम न होना पूरे हिंदी समाज का घोर अपमान है. केंद्रीय हिंदी संस्थान के कर्णधार शर्म करो और जवाब दो..
◇ युग प्रवर्तक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का हिंदी साहित्य के उन्नयन में क्या कोई योगदान नहीं? ◇ "हिंदी 100 रत्नमाला" योजना के लिए चयनित साहित्यकारों में आचार्य द्विवेदी का नाम क्यों नहीं? ◇ किन विशेषज्ञों की सलाह पर "हिंदी 100 रत्नमाला" के लिए साहित्यकारों के नाम का चयन किया है.. खुलासा कीजिए? हिंदी प्रेमियों से आग्रह है कि इस अनुरोध/विरोध/मांग को सोशल मीडिया पर ज्यादा से ज्यादा शेयर कीजिए जिससे केंद्रीय हिंदी संस्थान के जिम्मेदारों की आंखें खुले और अपनी भूल पर पछताए..

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