माता श्री नैना देवी / अंजु अग्निहोत्री

माता श्री नैना देवी
इतिहास और पुराण माता श्री नैना देवी जी का इतिहास श्री नैना देवी मंदिर 1177 मीटर की ऊंचाई पर जिला बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश मे स्थित है | कई पौराणिक कहानियां मंदिर की स्थापना के साथ जुडी हुई हैं | एक पौराणिक कथा के अनुसार, देवी सती ने खुदको यज्ञ में जिंदा जला दिया, जिससे भगवान शिव व्यथित हो गए | उन्होंने सती के शव को कंधे पर उठाया और तांडव नृत्य शुरू कर दिया |इसने स्वर्ग में सभी देवताओं को भयभीत कर दिया कि भगवान शिव का यह रूप प्रलय ला सकता है| भगवान विष्णु से यह आग्रह किया कि अपने चक्र से सती के शरीर को 51 टुकड़ों में काट दें | श्री नैना देवी मंदिर वह जगह है जहां सती की आंखें गिरीं | मंदिर से संबंधित एक अन्य कहानी नैना नाम के गुज्जर लड़के की है| एक बार वह अपने मवेशियों को चराने गया और देखा कि एक सफेद गाय अपने थनों से एक पत्थर पर दूध बरसा रही है| उसने अगले कई दिनों तक इसी बात को देखा| एक रात जब वह सो रहा था, उसने देवी माँ को सपने मे यह कहते हुए देखा कि वह पत्थर उनकी पिंडी है| नैना ने पूरी स्थिति और उसके सपने के बारे में राजा बीर चंद को बताया| जब राजा ने देखा कि यह वास्तव में हो रहा है, उसने उसी स्थान पर श्री नयना देवी नाम के मंदिर का निर्माण करवाया| श्री नैना देवी मंदिर महिशपीठ नाम से भी प्रसिद्ध है क्योंकि यहाँ पर माँ श्री नयना देवी जी ने महिषासुर का वध किया था| किंवदंतियों के अनुसार, महिषासुर एक शक्तिशाली राक्षस था जिसे श्री ब्रह्मा द्वारा अमरता का वरदान प्राप्त था, लेकिन उस पर शर्त यह थी कि वह एक अविवाहित महिला द्वारा ही परास्त हो सकता था|इस वरदान के कारण, महिषासुर ने पृथ्वी और देवताओं पर आतंक मचाना शुरू कर दिया | राक्षस के साथ सामना करने के लिए सभी देवताओं ने अपनी शक्तियों को संयुक्त किया और एक देवी को बनाया जो उसे हरा सके| देवी को सभी देवताओं द्वारा अलग अलग प्रकार के हथियारों की भेंट प्राप्त हुई| महिषासुर देवी की असीम सुंदरता से मंत्रमुग्ध हो गया और उसने शादी का प्रस्ताव देवी के समक्ष रखा| देवी ने उसे कहा कि अगर वह उसे हरा देगा तो वह उससे शादी कर लेगी|लड़ाई के दौरान, देवी ने दानव को परास्त किया और उसकी दोनों ऑंखें निकाल दीं| एक और कहानी सिख गुरु गोबिंद सिंह जी के साथ जुडी हुई है|जब उन्होंने मुगलों के खिलाफ अपनी सैन्य अभियान 1756 में छेड़ दिया, वह श्री नैना देवी गये और देवी का आशीर्वाद लेने के लिए एक महायज्ञ किया| आशीर्वाद मिलने के बाद, उन्होंने सफलतापूर्वक मुगलों को हरा दिया| मंदिर स्थल पर महत्वपूर्ण स्थान श्री नयना देवी जी मंदिर
श्री नयना देवी जी मंदिर संगमरमर से निर्मित है और देखने में बहुत शानदार लगता है| मंदिर का पहला द्वार चांदी से बना है जिस पर देवताओं की सुन्दर आकृतियाँ नक्काशित की गयी हैं| मंदिर का मुख्य दरवाजा भी चांदी से मढ़ा है और उस पर भगवान सूर्य और अन्य देवताओं की तस्वीरें है| मुख्य मंदिर में तीन पिंडियाँ हैं| जिनमे से एक मुख्य पिंडी माँ श्री नयना भगवती की और दो सुन्दर आंखे हैं| दाएं तरफ दूसरी पिंडी भी माँ की ऑंखें हैं और एसा माना जाता है कि इसकी स्थापना द्वापर युग में पांडवों के द्वारा की गयी थी| बाईं ओर भगवान गणेश की एक मूर्ती है| मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर शेर की दो मूर्तियाँ हैं| गुफा
श्री नैना देवी जी की गुफा 70 फुट लम्बी है और मुख्य मंदिर के पास है| इससे पहले, लोग मंदिर तक पहुँचने के लिए खड़ी पथ का इस्तेमाल करते थे परन्तु अब केबल कार की सुविधा यात्रा में काफी मदद करती है| रस्से का मार्ग
यह कोलकाता की एक कंपनी द्वारा स्थापित किया गया है और यह "रज्जू मार्ग" के नाम से भी जाना जाता है| मंदिर भवन तक पहुँचने के लिए यहाँ से केबल कार ली जा सकती है | यहाँ लगभग २० केबल कारें हैं और एक तरफ का संभावित किराया ३५ रूपये है| कृपाली कुंड
जब देवी माँ ने दानव महिषासुर को हराया, तो उन्होंने उसकी दोनों आँखें निकाल दीं और उन्हें नैना देवी की पहाड़ियों के पीछे की ओर फेंक दिया| दोनों आँखें अलग-अलग स्थानों पर गिरीं और बाद में वहां दो बावड़ियाँ उत्पन्न हो गईं| ये दोनों बावड़ियाँ मंदिर से २ कि०मी० की दूरी पर हैं| इनमें से एक को 'बम बावड़ी" या "झीडा की बावड़ी" और अन्य को "भुभक बावड़ी" कहा जाता है| कृपाली कुंड के बारे में एक अन्य कथा यह है कि इसे भगवान ब्रह्मा द्वारा उस स्थान पर बनाया गया जहाँ महिषासुर की खोपड़ी गिरी थी| इसे ब्रह्म कृपाली कुंड भी कहा जाता है| खप्पर महिषासुर
यह भवन के पास एक एक पवित्र स्थान है, जहाँ भक्त दर्शन करने से पहले स्नान के लिए जाते हैं| काला जोहर
इस स्थान को 'चिक्षु कुंड’ भी कहा जाता है| महिषासुर के मुख्य कमांडर चिक्शुर की खोपड़ी इस स्थान पर गिरी थी| यह एक पवित्र स्थान है जहां लोग त्वचा की समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए,विशेष रूप से बच्चों को स्नान करवाने के लिए आते हैं| कोलां वाला टोबा
यह जगह कमल खिलने के लिए लोकप्रिय है और श्री नैना देवी जी की यात्रा में पहला पड़ाव है| यहाँ पानी का एक पवित्र तालाब है जहाँ लोग दर्शन करने से पहले स्नान करते हैं| मंदिर न्यास द्वारा इस क्षेत्र के विकास के लिए 1.25 करोड़ रूपये निवेश किये गए हैं| श्री नैना देवी जी मंदिर राष्ट्रीय राजमार्ग २१ और बिलासपुर से ७० किलोमीटर, चंडीगढ़ से १०८किलोमीटर भाखड़ा से १८ किलोमीटर, और आनंदपुर साहिब से २० किमी दूर पर है| यह त्रिकोंनीय धार जिसे नैना धार के रूप में जाना जाता है जो समुद्र तल से ३५३५ फीट की ऊंचाई पर पर स्थित है| श्री नैना देवी जी मंदिर दोनों हिंदू और सिख तीर्थयात्रियों का सबसे बड़े दर्शन केंद्र के रूप में उभरा है| भाखड़ा बांध, आनंदपुर साहिब, और गोविंद सागर झील के प्रसिद्ध भूमि निशान से घिरा हुआ है| यह हिन्दुओं के प्रसिद्ध 51 शक्ति पीठों में से एक है जिसका भगवान शिव और गुरु गोविंद सिंह के साथ पौराणिक संबंध है| आस पास के मंदिर श्री बाबा बालक नाथ मंदिर
श्री बाबा बालक नाथ का धाम दियोटसिद्ध में जिला मुख्यालय हमीरपुर से ४५ कि० मी० दूर बिलासपुर जिला की सीमा रेखा पर एक सुन्दर स्थली है| दियोटसिद्ध जाने का मार्ग शाहतलाई और चक्मोह से होकर है| समुद्रतल से इसकी ऊंचाई ८७० मीटर है| यह स्थान उतारी भारत का एक दिव्य सिद्ध पीठ है जहाँ सिद्धबाबा बालक नाथ की पवित्र गुफा है| हम यहाँ बस,ट्रेन और हवाई रास्ते से पहुँच सकते हैं| गुरु का लाहौर
गुरु का लाहौर जिला बिलासपुर में आनंदपुर साहिब पंजाब से १२ किलोमीटर दूरी पर स्थित है| यह तीन लोकप्रिय गुरुद्वारों का समूह है| ये तीन गुरद्वारे त्रिवेणी साहिब, गुरुद्वारा पुर साहिब और गुरुद्वारा सेहरा साहिब हैं| यह समूह "लाहौर" की तरह बनाने के लिए गठित किया गया था क्योंकि गुरु की शादी के लिए लाहौर जाना राजनैतिक रूप से ठीक नहीं था| इसीलिए गुरु गोबिंद सिंह जी कि शादी जीत कौर के साथ १७३४ में इसी स्थान पर हुई| कीरतपुर साहिब
कीरतपुर साहिब १६२७ में गुरु हर गोबिंद जी द्वारा बनाया गया था| यहाँ पाताल पुरी स्थित है जो सिखों द्वारा उनके मृतकों की राख लेने का स्थान है| यह सतलुज नदी के तट पर नंगल-रूपनगर-चंडीगढ़ मार्ग पर स्थित है| कीरतपुर साहिब सिखों के लिए एक पवित्र स्थान है क्योंकि एक लोककथा के अनुसार गुरु नानक देव यहाँ का दौरा किया जब यह स्थान ज्यादा विकसित नहीं हुआ था| आनंदपुर साहिब
आनंदपुर साहिब पंजाब के जिला रूपनगर में स्थित है और सिखों के लिए सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है| यह वर्ष १६६५ में गुरु तेग बहादुर द्वारा स्थापित किया गया| यहाँ पर होली का त्यौहार "होला मोहल्ला" नाम श्री गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा दिया गया और हर साल १,००,००० से भी अधिक श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है| बाबा नाहर सिंह जी मंदिर
बाबा नाहर सिंह मंदिर गोबिंद सागर झील के तट पर स्थित है जोकि धोल्रा और बजिया मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है | यह बिलासपुर जिले के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है| बाबा नाहर सिंह खुद पीपल वाला, बजिया और डालियान वाला के रूप में जाने जाते थे|यह मंदिर कुल्लू की रानी द्वारा बाबा नाहर सिंह के सम्मान में बनवाया गया था| श्री नैना देवी जी मंदिर भारत में हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है| यह प्रसिद्ध मंदिर राष्ट्रीय राजमार्ग न० २१ पर स्थित है यहाँ से नजदीकी हवाई अड्डा चंडीगढ़ है जो नई दिल्ली के साथ जेट एयरवेज और इंडियन एयरलाइंस के टिकट से जुड़ा हुआ है| चंडीगढ़ से मंदिर की दूरी लगभग १००कि०मी० है| आनंदपुर साहिब और कीरतपुर साहिब से इस स्थान के लिए टैक्सियाँ किराये पर मिल जाती हैं| कीरतपुर साहिब से तीर्थ की दूरी ३० किमी है, जिनमें से १८ किमी पहाड़ी रास्ता है|आनंदपुर साहिब से दूरी २० किलोमीटर है जिसमे ८ किलोमीटर पहाड़ी रास्ता है| पुराने दिनों में लोग आनंदपुर साहिब के पास कॉलन वाला टोबा से मंदिर को जाने के लिए ट्रैक का इस्तेमाल करते थे| श्री नयना देवी जी के लिए पंजाब एवं हिमाचल प्रदेश के महत्वपूर्ण क्षेत्रों से बस सेवा उपलब्ध है| रोपवे
मौसम/मास शुरू होने का समय बंद होने का समय मार्च से सितम्बर सुबह ८:०० बजे सायं ७:०० बजे अक्तूबर सुबह ८:०० बजे सायं ८:०० बजे दिसम्बर से फरबरी सुबह ९:०० बजे सायं ५:३० बजे पालकी
अधिकांश तीर्थयात्री जय माता दी का जप करते हुए पैदल पहाड़ी की चोटी पर पहुँच जाते हैं| दूरी काफी आरामदायक है और डेढ़ घंन्टे के भीतर तय की जा सकती है| आराम सुविधाओं सहित शौचालयों की व्यवस्था भी है| नाश्ते और ठन्डे पानी की भी व्यवस्था यहाँ हर की गई है| फिर भी बोतलबंद / खनिज पानी लाना उचित है| श्री नैना देवी श्राइन बोर्ड द्वारा और भी सुविधाएँ मुहैया करवाई जाएंगी| तीर्थयात्रियों को सुविधाएं
मुफ्त लंगर
मंदिर न्यास श्री नैना देवी जी द्वारा श्रधालुओं के लिए मुफ्त लंगर कि व्यवस्था कि गयी है | यहाँ एक आधुनिक लंगर भवन का निर्माण किया गया है जिसमे लगभग एक समय में ५०० श्रद्धालु बैठकर खाना खा सकते हैं| न्यास द्वारा चपाती एवं पूरी बनाने के लिए आधुनिक मशीने लगाई गयी हैं| न्यास द्वारा लंगर में नाश्ता, दोपहर का खाना एवं रात्रि को भोजन नि:शुल्क उपलब्ध करवाया जाता है| इसके अलावा मांग पर २४ घंटे कभी भी भोजन उपलब्ध करवाया जाता है| मुफ्त सराय
न्यास द्वारा श्रधालुओं कि सुविधा हेतु मंदिर के समीप पटियाला धर्मशाला,लंगर एवं लंगर के समीप धर्मशाला का निर्माण करवाया गया है,जिसमे लगभग १००० शर्धलुओं के नि:शुल्क ठहरने की व्यवस्था है | मूल्य पर सराय
न्यास द्वारा श्रधालुओं कि सुविधा हेतु मात्री आंचल,मात्री शाया एवं लंगर के समीप मात्री शरण का निर्माण करवाया गया है,जिसमे ४५ कमरे और १५ डोरमेट्री में ठहरने की उचित व्यवस्था है | सरकारी विश्राम घर
श्री नैना देवी जी के बस अड्डे के समीप एक सरकारी विश्राम घर है| जिसका प्रबंधन हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा किया जाता है| निजी होटल
मंदिर न्यास द्वारा किसी भी सितारा होटल का निर्माण नहीं किया गया है|उचित आवास पहाड़ी की चोटी पर पाया जा सकता है| मंदिर न्यास द्वारा दुकान का संचालन
न्यास मंदिर परिसर में ०१-०३-१९९४ से दुकान नंबर १ का संचालन कर रहा है| यह दुकान श्रधालुओं के लिए शुद्ध घी की मिठियां,हलवा बेसन लडू,जलेबी और बर्फी उपलब्ध करवाती है| यह दुकान न लाभ न हानि के आधार पर चलायी जा रही है| यहाँ पर अन्य चीजें जेसे कि नारियल,हरा मेवा और धूप भी उपलब्ध करवाया जाता है| इस समय, यहाँ पर १० कर्मचारी काम कर रहे हैं जिनमे १ क्लर्क,५ सेल्समेन,२ सहायक और २ रसोइये हैं| यह दुकान मंदिर के मुख्य द्वार के पास है|विशेष व्यवस्थाएं अतिरिक्त सुरक्षा और अनुशासन के लिए त्योहारों और मेलों के दौरान अतिरिक्त पुलिस बल बुलाया जाता है| मंदिर न्यास के पूरे प्रशासन को नौ खंडों में बेहतर प्रबंधन के लिए विभाजित किया जाता है| अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट और उप जिला मजिस्ट्रेट विशेष दिनों के दौरान मुख्य अधिकारी रहते हैं| मंदिर पूरा दिन व् रात खुला रहता है| अतिरिक्त मोबाइल शौचालय श्रद्धालुओं और पर्यटकों की सुविधा के लिए व्यवस्थित किये जा रहे हैं| जहाँ पर कोई नल नहीं है वहां पानी की उचित व्यवस्था के लिए पानी के टैंकर और घड़ों का इस्तेमाल किया जाता है| मेलों के दौरान अतिरिक्त कर्मचारी लंगर, सफाई और अन्य कार्यों के लिए नियुक्त किये जाते हैं| सफाई का ७० फीसदी कार्य मेलों के दौरान नगर कमेटी (एमसी) को सौंप दिया जाता है| हार नवरात्रे
यह त्यौहार ९ दिन तक चलता है इसलिए इसे नवरात्र कहा जाता है और इस त्यौहार में देवी माँ की पूजा-अर्चना की जाती है| नवरात्र का प्रत्येक दिन नौ देवियों के सम्मान में मनाया जाता है| माता दुर्गा के विभिन्न नाम निमन्लिखित हैं:- शैलपुत्री ब्रह्मचारिणी चंद्रघंटा कुष्मांडा स्कंदमाता कात्यायनी कालरात्रि महागौरी सिद्धिदात्री चैत्र नवरात्री - अप्रैल ४, २०११ से अप्रैल १२, २०११ असुज नवरात्री- सितम्बर २८, २०११ से अक्टूबर ५, २०११ मकर सक्रांति
मकर सक्रांति देश के लगभग सभी राज्यों में अलग - अलग सांस्कृतिक रूपों में मनाई जाती है| लोग भगवान सूर्य का आशीर्वाद लेने के लिए गंगा और प्रयाग जैसी पवित्र नदियों में डुबकियाँ लगाते हैं| दक्ष्णि भारत में मकर सक्रांति पोंगल के नाम से,पंजाब में माघी, गुजरात में उत्तरायण और असाम में माघ बिहू के नाम से मनाई जाती है| यह उत्सव जनवरी में आता है| वसंत पंचमी
यह त्यौहार माता सरस्वती जी के सम्मान में मनाया जाता है, इस त्यौहार के दिन हर तरफ पीला रंग फैला हुआ होता है| देवी माँ को पीले रंग के वस्त्र पहनाये जाते हैं तथा पूजा और यज्ञ किया जाता है| लोग पीले रंग के वस्त्र पहनते हैं और अपने दोस्तों व रिश्तेदारों में पीले रंग की मिठाइयाँ बाँटते हैं| यह त्यौहार फरबरी में आता है| महा शिवरात्रि
यह त्यौहार भगवान शिव और माता पार्बती के सम्मान में मनाया जाता है, इसे भगवान शिव की महा रात्रि के रूप में भी जाना जाता है| कुछ लोग इस दिन व्रत रखते हैं और कुछ लोग श्लोक पढ़ते हैं और भजन गाते हैं| समारोह और पूजा देर रात तक चलती है और भगवान शिव और माँ पार्वती को फल ,नारियल,गंगा जल और बिल पत्र चढ़ाये जाते हैं| यह त्यौहार मार्च में आता है| होली
होली का त्यौहार बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतिक माना जाता है| किंवदंतियों के अनुसार, दानव हिरान्यकशिप अपने बेटे प्रहलाद को मारना चाहता था क्योंकि वह भगवान विष्णु का भक्त था| इसलिए, उसने अपनी बहन होलिका के साथ पुत्र को मारने की योजना बनाई| होलिका ने प्रहलाद को मारने की कोशिश की और उसके साथ आग में बैठ गई| वह आग में जल कर मर गई और प्रहलाद बच गया| यह त्यौहार मार्च में आता है| राम नवम
ी यह त्यौहार भगवान विष्णु के सातवें जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, भगवान श्री राम जो चैत्र मास के नौवें दिन पैदा हुए थे| श्री राम ने दानव राजा रावण को मारा था| यह त्यौहार अप्रैल में आता है | रक्षाबंधन
रक्षाबंधन के त्योहार का अर्थ भाई और बहन के बंधन को और मजबूत करना है| अभी तक परंपरागत तरीके से बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांध कर प्यार व्यक्त करती है| बदले में, भाई बहन से हमेशा के लिए रक्षा का वादा करता है और उसे उपहार देता है| यह त्यौहार अगस्त में आता है| श्री कृष्ण जन्माष्टमी
यह त्यौहार कृष्ण जयंती और कृष्णाष्टमी के नाम से भी प्रसिद्ध है, यह त्यौहार भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है| यह त्यौहार अगस्त में आता है| गणेश चतुर्थी
यह त्यौहार भगवान गणेश के सम्मान में मनाया जाता है, जोकि हिंदू देवताओं के सबसे लोकप्रिय और अच्छे भाग्य के प्रतीक माने गये हैं| गणेश चतुर्थी को भगवान गणेश को दूध और लडूओं का भोग लगाया जाता है| यह त्यौहार नवंबर में आता है| दशहरा
यह त्यौहार विजया दशमी के नाम से भी जाना जाता है,दशहरा सतयुग में श्री राम के रावण पर विजय के रूप में मनाया जाता है| दानव महिषासुर को भी माँ दुर्गा ने इसी दिन मारा था| यह त्यौहार अक्तूबर में आता है| करवा चौथ
इस दिन विवाहित स्त्रियाँ अपने पति की दीर्घ आयु की कामना के लिए बिना भोजन और पानी के कठिन व्रत रखती हैं| आजकल, अविवाहित लड़कियां भी अच्छे जीवन-साथी की प्राप्ति के लिए इस व्रत को रख रही हैं| यह त्यौहार उत्तर भारत में ज्यादातर मनाया जाता है और अक्तूबर मास में आता है| दीपावली
दीपावली या दीवाली भगवान राम के १४ वर्ष के बनवास से वापसी का प्रतीक है| दीवाली की रात रोशनी और आतिशवाजी के द्वारा मनाई जाती है| यह त्यौहार अक्तूबर में आता है| नए साल की शाम
हर साल, नए साल की शाम मंदिर में काफी उत्साह के साथ मनाई जाती है| सारा मंदिर परिसर श्री नैना देवी जी की विशेष पूजा के लिए विशेष रूप से सजाया जाता है| मंदिर न्यास की स्थापना श्री नैना देवी मंदिर न्यास का गठन १७ .१२ .१९८५ हिन्दू लोक अधिनियम १९८४ के तहत किया गया था| इससे पहले, मंदिर का संचालन एक स्थानीय पुजारियों और भागीदारों द्वारा गठित समिति द्वारा किया जाता था|

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